Widows: भारत में सती प्रथा का प्रचलन काफ़ी सदियों से चलता आ रहा था और आज भी कुछ क्षेत्रों में यह प्रचलित है। विवाहित स्त्री को हमारे यहाँ एक ग्रहलक्ष्मी के रूप में देखा जाता है और एक विधवा को विपरीत नज़रो से देखा जाता है। विधवा होना, एक महिला के लिए पाप बन गया और समाज के ताने बाने सुनने के लिए उसे तैयार रहना पड़ता था। प्राचीन भारत में महिलाओं के पास विकल्प होते थे। अपने पति के देहांत के बाद या तो वो सती प्रथा के अनुसार अपने आप को जला लेती थी या वो ब्रम्हचारी बन सकती थी।
प्राचीन भारत में ब्रम्हचारी का पालन करती हुई
यही ब्रम्हचारी महिलाये आगे जाके समाज के तिरस्कार का हिस्सा बनी। इन महिलाओं के ऊपर ये दोष लगाया गया कि इन्होंने अपने पति का साथ छोड़ मोह माया को अपनाया। इन महिलाओं के लिए समाज ने अलग नियम और कानून बनाये जिसके अनुसार इनकी ज़िन्दगी काफी दूभर हो गयी।
समाज ने इनके ऊपर काफी बंधन लागये जैसे कि किसी सम्मेलन में न जाना वरना वातावरण अशुद्ध हो जायेगा, पवित्र स्थान जैसे विवाह या किसी शुभ स्थान में शामिल न होना , अपने आश्रम में बिना शोर मचाये शांति से रहना, बाल न रखना या विवाह न करना। बाहर निकलना भी इनके लिए मुश्किल था और इन्हें अलग स्नान घर दिए जाते ताकि ये लोग दूसरों के संपर्क में न आएं। विधवा औरतें समाज में भेदभाव की विक्टिम बनती जा रही है। ख़ास तौर पर ग्रामीण शेत्रों में। ग्रामीण शेत्रों में विधवा होने पर औरत की पहचान पर सवाल उठाए जातें है।
जानिए फिल्म “वाटर” के माध्यम से (Water)
2005 में बनी फिल्म “वाटर” ने बनारस की विधवाओं की कहानी दर्शाई कि कैसे समाज में उनका किसी इंसान को छूना पाप या अशुद्ध था। विधवाओं को या तो सती प्रथा के अनुसार जला दिया जाता था और वह जो कि इसके खिलाफ थी उन्हें समाज से बेदखल कर दिया जाता था। इन विधवाओं का होना या ना होना बराबर था और इनके पति के मर जाने के बाद एक रोजमर्रा की जिंदगी जीना इनके लिए मुश्किल था। आज भी हमारे समाज में इन विधवाओं की इज्जत नहीं की जाती पर एक औरत ऐसी है जिसने अपने दम पर वाराणसी में विधवाओं के लिए आश्रम खोला।
एक महान क्रांतिकारी सावित्रीबाई फुले (Revolutionary Savitribai Phule)
3 जनवरी 1831 आज के ही दिन जन्मी सावित्रीबाई फुले एक महान सामाजिक क्रांतिकारी रही है। उन्होंने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जंग लड़ी। इसके अलावा, सती प्रथा जैसी कुप्रथा पर अंकुश लगवाने के लिए हर संभव प्रयास किया। उन्होंने विधवाओं के सिर मुंडवाने की प्रथा का बहिष्कार किया।
कैसे आ पाएगा समाज की सोच में बदलाव
ऐसे समय में आते हुए जहां विधवाओं का फिर से शादी करना मान्य है और लिंग में भेदभाव कम हो रहा है क्या ऐसी औरतों के साथ यह होना चाहिए? समाज में लोगों को यह सिखाना चाहिए की इनके साथ कैसे बर्ताव करना है और इन्हें कैसे अच्छा महसूस करवाना है।
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