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Restrictions on women : "शादी के बाद ऐसा नहीं चलेगा" पर क्यों?

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Swati Bundela
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शादी के बाद औरतों पर पाबंदियाँ -


शादी के बाद औरतों की नौकरी पर आपत्ति

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अक्सर यह देखा जाता है कि परिवार अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए या अपनी नाक ऊँची रखने के लिए शादी के बाद अपने बेटी बहुओं से नौकरी ना करने की अपेक्षा रखते हैं। साथ ही अक्सर परिवार के सदस्य बहुओं पर नौकरी के पेशे , घंटे और आने जाने के समय  पर पाबंदी लगाने की कोशिश करते हैं।
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कपड़ो और पहनावे में बदलाव


शादी के बाद मर्दों के कपड़े भले ही एक जैसे रहे पर औरतों पर हमेशा साड़ी पहनने का ही दबाव बनाया जाता है। अक्सर परिवार अपनी बहू को जींस यह ड्रेस पहने की अनुमति नहीं देते क्योंकि उन्हें लगता है कि छोटे कपड़े पहनने से उनके परिवार के संस्कारों और आदर्शों पर सवाल उठेंगे।
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"थोड़ा कॉम्प्रोमाइज तो करना ही पड़ता है ना"


माँ हमेशा अपनी बेटियों को सिखाती है कि रिश्ते चलाने के लिए औरतों को ही नीचे झुकना पड़ता है। इसलिए उन्हें हर जगह सिर्फ रिश्तों की खातिर दबाने की कोशिश की जाती है। पर क्या रिश्ते में सारा किरदार सिर्फ औरतों का ही है? क्या एक मर्द उस रिश्ते में अपनी भागीदारी निभाने के लिए कुछ नहीं करेगा?
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"ससुराल में जुबान लड़ा कर दिखाना"


यह शब्द अक्सर बेटियों को अपनी मां से ही सुनने को मिलते हैं। जब भी लड़कियां किसी चीज के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश करती हैं तो उनकी माँ ही उन्हें दबाने की कोशिश करती हैं और यह बताती है कि जितनी आजादी उन्हें अपने मायके में मिल रही है उतनी ही आजादी उन्हें उनके ससुराल में नहीं मिलेगी।
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शादी के बाद औरतों पर बोलने चलने फिरने घूमने और ना जाने उनकी कितनी ही एक्टिविटीज पर अलग-अलग प्रकार की रोक रोक लगाई जाती है। पर क्या यह सब सिर्फ परिवार की इज्जत बचाने के लिए होता है? या फिर औरतों पर अपना हक जमाने के लिए होता है और उन्हें एक नीचे तबके में रखने का tradition चलाने के लिए ?
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शादी के बाद औरतों पर पाबंदियाँ लगाना एक तरीका है उन्हें दबाये रखने का। इस पर ज़रा ध्यान से सोचिये।
सोसाइटी
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