Women's Freedom: जानिए महिलाओं के जीवन में आज़ादी का असली मायना क्या है?

एक महिला की ज़िंदगी में आज़ादी बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन सच यह है कि उसे अभी तक पूरी आज़ादी मिली नहीं है। हमें अक्सर लगता है कि आज की औरत के पास सब कुछ है, जो पहले के ज़माने की औरतों के पास बिल्कुल भी नहीं था।

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Rajveer Kaur
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Freedom For Women(FREEPIK)

Photograph: (File Image )

The Real Meaning of Independence for Women: एक महिला की ज़िंदगी में आज़ादी बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन सच यह है कि उसे अभी तक पूरी आज़ादी मिली नहीं है। हमें अक्सर लगता है कि आज की औरत के पास सब कुछ है, जो पहले के ज़माने की औरतों के पास बिल्कुल भी नहीं था। लेकिन उसके पीछे जो शर्तें और त्याग हैं, उनके बारे में कोई बात नहीं करता। अगर वह ऑफिस जाती है, तो घर भी संभालना पड़ता है। शादी के बाद ज़्यादातर समझौते उसी को क्यों करने पड़ते हैं? कपड़े पहनने में भी पाबंदियाँ हैं जैसे कौन से पहन सकती है और कौन से नहीं। अगर कुछ गलत होता है, तो आज भी दोष औरत के ही सिर पर डाला जाता है। ऐसी मानसिकता के बीच औरत के लिए आज़ादी के क्या मायने हैं? आइए, इसी पर बात करते हैं।

जानिए महिलाओं के जीवन में आज़ादी का असली मायना क्या है?

अर्थिक आजादी 

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सबसे पहली बात, औरत को आर्थिक आज़ादी की बहुत ज़रूरत है। अगर उसके पास अपना पैसा होगा तो उसे किसी से इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और ना ही अपनी ज़रूरतों के लिए किसी दूसरे पर निर्भर होना पड़ेगा। अक्सर घरों में देखा जाता है कि महिलाएँ काम करके पैसा कमाती भी हैं, लेकिन उनके पैसे उनसे ले लिए जाते हैं। कई बार तो उन्हें कमाने का मौका ही नहीं दिया जाता। आर्थिक आज़ादी ही वह कुंजी है, जिससे महिला अपने फैसले खुद ले सकती है और आत्मसम्मान के साथ जी सकती है।

भावनात्मक (इमोशनल) आज़ादी

दूसरा पहलू है भावनात्मक (इमोशनल) आज़ादी। जब आप अपनी भावनाओं के लिए किसी दूसरे पर निर्भर होते हैं, तो आपका नियंत्रण उनके हाथ में होता है। वह जब चाहें आपको दुख पहुँचा सकते हैं और आपका खुश रहना भी उनके व्यवहार पर निर्भर हो जाता है। लेकिन जब महिला अपनी भावनाओं के लिए खुद पर निर्भर हो जाती है, तो वह अपने लिए वही करती है जो उसे खुशी देता है। वह दूसरों के साथ सीमाएँ (boundaries) तय करना सीखती है और अपनी भलाई के लिए “ना” कहने की हिम्मत भी पा लेती है।

समाजिक आजादी 

तीसरी ज़रूरत है सामाजिक आज़ादी। अक्सर महिलाओं को बाहर निकलने की स्वतंत्रता नहीं मिलती। शादी के बाद उनके पुराने दोस्त उनसे छूट जाते हैं और सिर्फ पति के दोस्त व उनकी पत्नियाँ ही उनका छोटा-सा सामाजिक दायरा बन जाते हैं। लेकिन हर महिला के पास यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपने दोस्तों से मिल सके, अपना नेटवर्क बना सके और अपनी पहचान समाज में कायम कर सके। सामाजिक आज़ादी का मतलब है – अपने तरीके से अपना जीवन जीना, रिश्ते बनाना और एक ऐसा सर्कल होना जिसमें वह सहज महसूस करे।

विचारों की आजादी 

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इसके अलावा, महिला को विचारों की आज़ादी भी मिलनी चाहिए। नई चीज़ें सीखने की, पढ़ने-लिखने की, यात्रा करने की, और सबसे अहम – खुद को अपने तरीके से व्यक्त करने की। उसकी आवाज़ सिर्फ घर की चार दीवारों तक सीमित न रहे, बल्कि समाज तक पहुँचे।

अंत, महिला की आज़ादी सिर्फ घर से बाहर जाने या नौकरी करने तक सीमित नहीं है। असली आज़ादी तब है जब वह आर्थिक, भावनात्मक, सामाजिक और बौद्धिक तौर पर खुद के फैसले खुद ले सके। जब वह बिना डर और बिना रोक-टोक के अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जी