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Photograph: (wforwoman)
2025 वर्क लाइफ़ के लिए एक पूरा रोलरकोस्टर रहा। एम्प्लॉइज़ ने अपने करियर को नए नज़रिए से देखना शुरू किया, वहीं कंपनियों को “इनफिनिट वर्कडे” जैसी नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अब काम सिर्फ़ सैलरी या टाइटल तक सीमित नहीं है—बैलेंस, फ्लेक्सिबिलिटी, पर्पज़ और टेक्नोलॉजी सबसे ज़्यादा मायने रखने लगे हैं। आइए देखें वो 10 वर्कप्लेस ट्रेंड्स जिन्होंने 2025 को डिफाइन किया।
2025 में Work Culture को बदल देने वाले ट्रेंड्स
वर्क-लाइफ़ बैलेंस सबसे ऊपर
पहली बार वर्क-लाइफ़ बैलेंस ने सैलरी को पीछे छोड़ दिया। ग्लोबल Randstad सर्वे के मुताबिक 83% वर्कर्स के लिए बैलेंस, पे से ज़्यादा ज़रूरी है। फ्लेक्सिबल आवर्स और रिमोट वर्क ने जॉब को लाइफ़ के हिसाब से फिट करना आसान बना दिया है, ना कि लाइफ़ को जॉब के हिसाब से। Gen Z इस बदलाव को लीड कर रही है, जबकि रिटायरमेंट के क़रीब पहुँच रहे वर्कर्स अब भी सैलरी को प्राथमिकता देते हैं।
जॉबहगिंग
कुछ एम्प्लॉइज़ जॉब छोड़ने से इनकार कर रहे हैं—और ये लॉयल्टी नहीं, सेफ़्टी का मामला है। अनिश्चित समय में प्रोफ़ेशनल्स ने अपनी जॉब पकड़े रखना ही बेहतर समझा, और यहीं से “जॉब हगिंग” ट्रेंड बना। अब कंपनियों के लिए ज़रूरी हो गया है कि वे ऐसे वर्कप्लेस बनाएं जो ग्रोथ और एंगेजमेंट को सपोर्ट करें, ताकि टैलेंट खुश और जुड़े रहें।
वर्केशनिंग
एम्प्लॉइज़ वेकेशन पर जा रहे हैं, लेकिन लीव नहीं ले रहे। टूरिस्ट डेस्टिनेशन्स पर लैपटॉप्स का दिखना अब आम हो गया है, जो दिखाता है कि लोग अपने वर्क–लाइफ़ बैलेंस के अपने रूल्स बना रहे हैं और साथ-साथ स्ट्रेस को मैनेज कर रहे हैं।
करियरकैटफ़िशिंग
कभी जॉब एक्सेप्ट करके… जॉइन ही नहीं किया? वेलकम टू करियर कैटफ़िशिंग। ख़ासकर Gen Z में पॉपुलर यह ट्रेंड दिखाता है कि यंग प्रोफ़ेशनल्स वर्कप्लेस के वादों को लेकर ज़्यादा सतर्क हैं। अगर जॉब सही महसूस नहीं होती या कोई बेहतर ऑप्शन मिल जाता है, तो घोस्टिंग अब “फेयर गेम” मानी जा रही है।
माइक्रो-रिटायरमेंट
60 का इंतज़ार क्यों? माइक्रो-रिटायरमेंट में एम्प्लॉइज़ कुछ महीनों या एक साल का ब्रेक लेते हैं—ट्रैवल करने, नई स्किल्स सीखने या खुद को रीचार्ज करने के लिए। यह साबित करता है कि आज के वर्कर्स करियर के साथ-साथ पर्सनल फ़ुलफ़िलमेंट भी चाहते हैं।
कांशसअन-बॉसिंग
मिडिल मैनेजमेंट अब कूल नहीं रहा। यंग प्रोफ़ेशनल्स इन रोल्स को स्किप कर रहे हैं क्योंकि इनमें स्ट्रेस ज़्यादा और कंट्रोल कम होता है। इसकी जगह लोग इंडिविजुअल कॉन्ट्रिब्यूटर रोल्स चुन रहे हैं, जहाँ ऑटोनॉमी और बेहतर वर्क-लाइफ़ बैलेंस मिलता है।
करियरमिनिमलिज़्म
कॉरपोरेट लैडर चढ़ना? ज़रूरी नहीं। अब कई लोग प्रमोशन के पीछे भागने के बजाय वैल्यूज़ और स्टेबिलिटी से मैच करने वाली जॉब्स चुन रहे हैं। काम ज़िंदगी का हिस्सा है, ज़िंदगी का केंद्र नहीं।
वर्कप्लेसमेंAI
AI हर जगह है। अमेरिका में 23% एम्प्लॉइज़ हर हफ्ते AI इस्तेमाल करते हैं और 45% साल में कुछ बार। डेटा ऑर्गनाइज़ करने से लेकर आइडियाज़ जनरेट करना, नई स्किल्स सीखना, टास्क ऑटोमेट करना और प्रॉब्लम्स पहचानना—AI अब रोज़ का वर्क साथी बन चुका है। चैटबॉट्स, राइटिंग टूल्स और कोडिंग असिस्टेंट्स 2025 के सबसे हॉट गैजेट्स हैं।
इनफिनिटवर्कडे
वर्कडे अब शाम और वीकेंड तक फैल रहा है। सुबह-सुबह ईमेल्स, एंडलेस मीटिंग्स और लगातार नोटिफ़िकेशन्स “इनफिनिट वर्कडे” बना रहे हैं। हर कुछ मिनट में इंटरप्शन से फ़ोकस मुश्किल हो जाता है। रिमोट और हाइब्रिड वर्क प्रोडक्टिविटी के लिए ब्लेसिंग भी है और कर्स भी।
कम्युनिटीऔरबिलॉन्गिंग
AI और फ्लेक्सिबल आवर्स के बावजूद इंसान कनेक्शन चाहता है। आधे से ज़्यादा एम्प्लॉइज़ कहते हैं कि अगर उन्हें इन्क्लूडेड महसूस नहीं हुआ, तो वे जॉब छोड़ देंगे। इसलिए अब टीम्स को कल्चर, ट्रस्ट और इन्क्लूज़न पर काम करना होगा, ताकि लोग टिके रहें।
फ्रंटियर फ़र्म्स और वर्क का रीडिज़ाइन
कुछ कंपनियाँ खुद को “फ्रंटियर फ़र्म्स” के रूप में लेवल-अप कर रही हैं। ये वर्कप्लेस AI और ह्यूमन-एजेंट टीम्स को मिलाकर बोरिंग टास्क्स ऑटोमेट करते हैं और एम्प्लॉइज़ को हाई-वैल्यू वर्क पर फोकस करने का मौका देते हैं। असली चैलेंज सिर्फ़ प्रोसेसेज़ नहीं, बल्कि वर्क के रिदम को रीडिज़ाइन करना है, ताकि पहले से टूटे सिस्टम को और तेज़ न किया जाए।
2025 ने साबित कर दिया कि काम तेज़ी से बदल रहा है। अब एम्प्लॉइज़ बैलेंस, पर्पज़, कम्युनिटी और टेक्नोलॉजी के स्मार्ट इस्तेमाल को ज़्यादा अहमियत दे रहे हैं। जो कंपनियाँ इन ट्रेंड्स को अपनाकर ह्यूमन-सेंटर्ड वर्कप्लेस बनाएँगी, वही 2026 और आगे टैलेंट गेम जीतेंगी।
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