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इतिहास इस बात का गवाह है कि किस तरह महिलाओं को एक ट्रॉफी की तरह जीता जाता था। युद्ध में जीते हुए राजाओं से महारानियों की शादी कर दी जाती थी और महाराजा उन्हें एक ट्रॉफी या कहें इनाम की तरह स्वीकार करते थे। कई महाराजाओं ने तो अपनी बेटियों को अपने दुश्मनों तक के घरों में बियाह दिया ताकि उनकी राजनीति की उम्र लंबी रहें। भारत में, राजपूत महारानियों की शादी मुगलों के शहंशाहों से कर दी जाती थी ताकि देश में शांति और सुरक्षा बरक़रार रहे। आज के समय में भी ज्यादातर मर्दों की ख्वाहिश रहती है कि उनकी होने वाली पत्नी खूबसूरत, अच्छे घर से ताल्लुक रखने वाली और उनकी बातों को समझने वाली हो। एक ओर जहां कुछ मर्दों को अपनी बीवी से सिर्फ और सिर्फ सहयोग और प्यार की उम्मीद होती है वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जिनके लिए औरत का खूबसूरत होना ही सबसे अधिक मायने रखता है।
'ट्रॉफी वाइफ' के करेक्टर और एक्शन को भी किया जाता है जज
इसमे कोई दो राय नही कि ये सोसाएटी महिलाओं के लिए कितनी ही तरह की बातें बनाती है। तो इसमे कोई हैरानी की बात नही अगर ये सोसायटी किसी खूबसूरत, जवान महिला को किसी अमीर आदमी से शादी करने पर 'ट्रॉफी वाइफ' कहती है। दरअसल इस शब्द के साथ लोगों की उस महिला ते लिए बाकी तरह की जजमेंट भी जुड़ी होती है जैसे उसे ‘prostitute’, ‘whore’, ‘slut’, ‘man-eater, कहना। लेकिन ये बिल्कुल समझ नही आता कि ये सोसाएटी इतना सेलेक्टिव जजमेंट करती कैसे है। मर्द क्यों नही 'ट्रॉफी हस्बेंड (पति)' कहलाते? इस तरह के लेबल्स मर्दों पर क्यों नही लगाएं जाते?
'ट्रॉफी वाइफ' बनने के लिए है Eligibility क्राइटेरिया
मर्दों की कुछ इस तरह कि डिमांड होती है कि उनकी वाईफ जितनी सुंदर और परफेक्ट हो सकती है उतनी सुंदर बने। कही कोई कमी ना रह जाए। उसकी इनकी प्रिटी-प्रिटी चेहरा हो कि उस पर वो गर्व कर सकें। वैसे आजकल के लड़को ने डिमांड में कुछ बढ़ोत्तरी भी कर दिया है जैसे कि लड़की सुंदर होने के साथ-साथ पढ़ी-लिखी, चतुर-चालाक भी होनी चाहिए। मुझे चिंता है कि लड़कियां इस Eligibility Criteria को पास कर भी पाएंगी या नहीं। पता नहीं बेचारियों की शादी हो भी पाएगी या नही, पता नही बिना टेलेंट वाले, अपने पिता जी के पैसों को बर्बाद करने का जिम्मा उठाए हुए नमूनें हम लड़कियों को स्वीकार करेंगें भी या नही।
ये 'ट्रॉफी वाइफ' औरतों को औरत नही एक चीज़ बनाता है
'ट्रॉफी वाइफ' (trophy wife) को लोग बार्बी डॉल की तरह देखते हैं जो अपना सारा टाईम अपने पति के पैसों को खर्च करने में लगाती थी। वो सुंदरता की मूरत थी जिसके पास देने के लिए कुछ नही था बजाए अपनी बॉडी के। कोई उस चमक-दमक के पीछे की औरत को पहचानने की कोशिश ही नही करता। किसी भी लड़की को उसकी शादी से उसके करेक्टर और पर्सनेलिटी को जज बिल्कुल भी नहीं किया जाना चाहिए। एक औरत चाहे जवान या बूढ़ी, शादीशुदा या अविवाहित खुद के लिए ऑस्कर का अवॉर्ड है।
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