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मुंबई पुलिस के एक बयान में कहा गया है कि रिपब्लिक टीवी के साथ-साथ कुछ न्यूज़ चैनल अपनी टीआरपी बढ़ा रहे हैं। पुलिस ने बताया कि एक रिपोर्ट के अनुसार दर्शकों के नंबर्स में गलत तरीकें से बढ़ोत्तरी की जा रही है। पुलिस ने दावा किया कि उन्होंने दो ऐसे चैनलों के मालिकों को गिरफ्तार किया है और साथ ही रिपब्लिक टीवी को भी नोटिस भेजा है। चैनल के मालिक-एंकर अर्नब गोस्वामी ने पुलिस पर पलटवार करते हुए कहा, "रिपब्लिक वापस लड़ेगा, सुशांत सिंह राजपूत मामले, पालघर मामले और किसी अन्य मामले में रिपब्लिक अपनी जांच जारी रखेगा।" इस TRP Scam में रिपब्लिक टीवी अकेला नहीं है, बाकी मराठी चैनल जैसे फॉक्स मराठी और बॉक्स सिनेमा भी जांच के दायरे में हैं। रिपोर्ट के अनुसार और चैनल के बयान से ऐसा लग रहा है कि ये TRP सुशांत सिंह राजपूत के मौत के मामले, रिया चक्रवर्ती के फॉलो-अप और उसी के आसपास की खबरों के बिल्ड-अप से जुड़ी हुई हैं।
इन सब मामलों को ध्यान में रखते हुए सवाल यह उठता है कि इतने दिनों से खबर के नाम पर न्यूज़ चैनल्स के तरफ से जो पुलाव पकाया जा रहा था, उसका फ़ायदा किसे पहुंचा? क्या असलियत में न्यूज़ एंकर्स अपने दर्शकों को सच और महत्वपूर्ण खबरें पहुंचाने में रुचि रखते हैं? न्यूज़ चैनल्स की प्राथमिकता जनता है या उनकी रेटिंग?
मीडिया पर नज़र रखने वाली और स्वतंत्र फिल्म प्रोड्युसर, हरिनी कैलामूर बताती हैं कि यह पहली बार नहीं है कि टीआरपी में हेराफेरी की बात सुनी गई है। साल 2000 के शुरुआती दिनों में इसी तरह का मामला सामने आया था, जिसमें CNBC ने मुंबई में एक ब्रेकिेग न्यूज़ चलाया था। "यह पहली बार नहीं है और यह आखिरी बार भी नहीं होगा, क्योंकि सिस्टम बहुत क्लिंक है। किसी भी खबर का मूल्यांकन करने का तरीका नॉन-ट्रांसपेरेंट है। TRP ही केवल एक इंपोर्टेंट चीज़ है जो विज्ञापनदाताओं, विज्ञापन एजेंसियों को अपने तरफ अट्रेक्ट करता है। लेकिन कोई भी सिस्टम को बदलना नहीं चाहता क्योंकि यह आसान और सुविधाजनक है। यह कोई नई समस्या नहीं है ... हमारे पास तब से है जब से हमारे पास प्राईवेट न्यूज़ चैनल हैं। "
यह जानकर कि TRP बढ़ेगी, न्यूज चैनल के एंकर्स बेकार के डिबेट कराते हैं और सोचते हैं कि वियूवर्स इसी को देखना पसंद करेंगे। खबर के नाम पर हमें सनसनीखेज और सीरीयस एजेंडे को जिस तरह से परोसा जाता है, वह दिखाता है कि न्यूज चैनल के एंकर्स समझते हैं कि दर्शकों की अपनी कोई समझ नही है और यह हमारी बुद्धिमत्ता का अपमान है। क्या हमें उन चैनल्स से बेहतर कंटेट की मांग नही करनी चाहिए जिनके लिए हम पैसा दे रहे हैं? क्या हमें एसी स्टूडियो से चीखने वाले एंकर्स की बजाय उन मुद्दों पर ध्यान नही देना चाहिए जो आम जनता के लिए जरूरी है? सुशांत सिंह राजपूत मामले में - जब तक सीबीआई इस मामले की जांच कर रही थी, तब तक मीडिया हॉउसेस अपने मीडिया ट्रायल में लगे हुए थे। और एक सुपरस्टार के मौत के मामलें को तोड़-मरोड़ के रख दिया। क्या अब दर्शकों को कोई भी खबर सुनने या देखने से पहले सोचना पड़ेगा?
कानूनी रडार के तहत इसका उत्तर होना चाहिए - हाँ। इससे पहले, यह बताया गया था कि एनबीएसए ने न्यूज़ चैनल आजतक को फर्जी ट्वीट दिखाने के मामले में 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था, और चैनल्स आजतक, ज़ी न्यूज़, इंडिया टीवी और न्यूज़ 24 को ऑर्डर दिया था कि नैतिकता के उल्लंघन के लिए सब माफी मांगे। लेकिन सवाल उठता है कि चैनल में एडिटर फ़िल्टर्स होने के बावजूद ऐसे फर्जी जानकारी कैसे फैली? क्या फर्ज़ी खबरों को जानबूझकर के हवा में तैरने की अनुमति दी जाती है? क्या यह न्यायिक और नैतिक रूप से गलत नहीं है?
इस अन्य उदाहरण पर विचार करें: पूरे SSR कवरेज के दौरान, एंकर नविका कुमार और राहुल शिवशंकर की अगुवाई में टाइम्स नाउ ने राजपूत के मृत शरीर के फोटोज़ को बार-बार चलाया और अपने न्यूज़ में बातों से ही पॉसमार्टम कर एक सुसाईड के मामले को मर्डर का रूप दे दिया। बॉलीवुड हस्तियों के व्हाट्सएप चैट तक खुलेआम दिखाएं। हाल ही में, एम्स की मेडिकल रिपोर्ट के बाद, जिसमें कथित तौर पर दावा किया गया था कि राजपूत की मौत एक आत्महत्या थी, हत्या नहीं थी, न्यूज़ चैनल ने एक तेज यू-टर्न लिया और एक चैनल ने एक शो दिखाया कि “क्या वे जो हत्या का रोना रो रहे थे और मुंबई पुलिस का अपमान कर रहे थे, अब माफी मांगेगें? "
इस तरह के व्यवहार पर जनता से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह इन न्यूज़ चैनल्स पर आंख बंद करके भरोसा करें? क्या उन्हें मामलें की गंभीरता को बनाए रखते हुए, अपने विचारों को साईड में रखकर रिपोर्टिंग नही करना चाहिए?
ब्रॉडकास्टिंग चैनल और टीआरपी के दुष्चक्र से बाहर निकलने के लिए, हमें अपने दर्शकों फोकस को रीयल न्यूज़ पर फोकस करना ज़रूरी है। हमें उन खबरों की मांग करनी चाहिए जो हमें सोचने पर, देश में चल रहें अन्याय के खिलाफ बोलने पर मजबूर कर दे, न कि हमें एक ही मुद्दे पर सीमित कर दें।
इन सब मामलों को ध्यान में रखते हुए सवाल यह उठता है कि इतने दिनों से खबर के नाम पर न्यूज़ चैनल्स के तरफ से जो पुलाव पकाया जा रहा था, उसका फ़ायदा किसे पहुंचा? क्या असलियत में न्यूज़ एंकर्स अपने दर्शकों को सच और महत्वपूर्ण खबरें पहुंचाने में रुचि रखते हैं? न्यूज़ चैनल्स की प्राथमिकता जनता है या उनकी रेटिंग?
खबरों की सत्यता पर बड़ा सवाल
मीडिया पर नज़र रखने वाली और स्वतंत्र फिल्म प्रोड्युसर, हरिनी कैलामूर बताती हैं कि यह पहली बार नहीं है कि टीआरपी में हेराफेरी की बात सुनी गई है। साल 2000 के शुरुआती दिनों में इसी तरह का मामला सामने आया था, जिसमें CNBC ने मुंबई में एक ब्रेकिेग न्यूज़ चलाया था। "यह पहली बार नहीं है और यह आखिरी बार भी नहीं होगा, क्योंकि सिस्टम बहुत क्लिंक है। किसी भी खबर का मूल्यांकन करने का तरीका नॉन-ट्रांसपेरेंट है। TRP ही केवल एक इंपोर्टेंट चीज़ है जो विज्ञापनदाताओं, विज्ञापन एजेंसियों को अपने तरफ अट्रेक्ट करता है। लेकिन कोई भी सिस्टम को बदलना नहीं चाहता क्योंकि यह आसान और सुविधाजनक है। यह कोई नई समस्या नहीं है ... हमारे पास तब से है जब से हमारे पास प्राईवेट न्यूज़ चैनल हैं। "
यह जानकर कि TRP बढ़ेगी, न्यूज चैनल के एंकर्स बेकार के डिबेट कराते हैं और सोचते हैं कि वियूवर्स इसी को देखना पसंद करेंगे। खबर के नाम पर हमें सनसनीखेज और सीरीयस एजेंडे को जिस तरह से परोसा जाता है, वह दिखाता है कि न्यूज चैनल के एंकर्स समझते हैं कि दर्शकों की अपनी कोई समझ नही है और यह हमारी बुद्धिमत्ता का अपमान है। क्या हमें उन चैनल्स से बेहतर कंटेट की मांग नही करनी चाहिए जिनके लिए हम पैसा दे रहे हैं? क्या हमें एसी स्टूडियो से चीखने वाले एंकर्स की बजाय उन मुद्दों पर ध्यान नही देना चाहिए जो आम जनता के लिए जरूरी है? सुशांत सिंह राजपूत मामले में - जब तक सीबीआई इस मामले की जांच कर रही थी, तब तक मीडिया हॉउसेस अपने मीडिया ट्रायल में लगे हुए थे। और एक सुपरस्टार के मौत के मामलें को तोड़-मरोड़ के रख दिया। क्या अब दर्शकों को कोई भी खबर सुनने या देखने से पहले सोचना पड़ेगा?
क्या हमें न्यूज़ चैनल्स से बेहतर खबरों की मांग नहीं करनी चाहिए?
कानूनी रडार के तहत इसका उत्तर होना चाहिए - हाँ। इससे पहले, यह बताया गया था कि एनबीएसए ने न्यूज़ चैनल आजतक को फर्जी ट्वीट दिखाने के मामले में 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था, और चैनल्स आजतक, ज़ी न्यूज़, इंडिया टीवी और न्यूज़ 24 को ऑर्डर दिया था कि नैतिकता के उल्लंघन के लिए सब माफी मांगे। लेकिन सवाल उठता है कि चैनल में एडिटर फ़िल्टर्स होने के बावजूद ऐसे फर्जी जानकारी कैसे फैली? क्या फर्ज़ी खबरों को जानबूझकर के हवा में तैरने की अनुमति दी जाती है? क्या यह न्यायिक और नैतिक रूप से गलत नहीं है?
सवाल यह उठता है कि इतने दिनों से खबर के नाम पर न्यूज़ चैनल्स के तरफ से जो पुलाव पकाया जा रहा था, उसका फ़ायदा किसे पहुंचा? क्या असलियत में न्यूज़ एंकर्स अपने दर्शकों को सच और महत्वपूर्ण खबरें पहुंचाने में रुचि रखते हैं? न्यूज़ चैनल्स की प्राथमिकता जनता है या उनकी रेटिंग?
इस अन्य उदाहरण पर विचार करें: पूरे SSR कवरेज के दौरान, एंकर नविका कुमार और राहुल शिवशंकर की अगुवाई में टाइम्स नाउ ने राजपूत के मृत शरीर के फोटोज़ को बार-बार चलाया और अपने न्यूज़ में बातों से ही पॉसमार्टम कर एक सुसाईड के मामले को मर्डर का रूप दे दिया। बॉलीवुड हस्तियों के व्हाट्सएप चैट तक खुलेआम दिखाएं। हाल ही में, एम्स की मेडिकल रिपोर्ट के बाद, जिसमें कथित तौर पर दावा किया गया था कि राजपूत की मौत एक आत्महत्या थी, हत्या नहीं थी, न्यूज़ चैनल ने एक तेज यू-टर्न लिया और एक चैनल ने एक शो दिखाया कि “क्या वे जो हत्या का रोना रो रहे थे और मुंबई पुलिस का अपमान कर रहे थे, अब माफी मांगेगें? "
इस तरह के व्यवहार पर जनता से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह इन न्यूज़ चैनल्स पर आंख बंद करके भरोसा करें? क्या उन्हें मामलें की गंभीरता को बनाए रखते हुए, अपने विचारों को साईड में रखकर रिपोर्टिंग नही करना चाहिए?
इसका क्या हल है?
ब्रॉडकास्टिंग चैनल और टीआरपी के दुष्चक्र से बाहर निकलने के लिए, हमें अपने दर्शकों फोकस को रीयल न्यूज़ पर फोकस करना ज़रूरी है। हमें उन खबरों की मांग करनी चाहिए जो हमें सोचने पर, देश में चल रहें अन्याय के खिलाफ बोलने पर मजबूर कर दे, न कि हमें एक ही मुद्दे पर सीमित कर दें।