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जानिए Toxic masculinity क्या है और यह क्यों है समाज के लिए खतरा

टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी पुरुषों से अपेक्षित कुछ व्यवहार एवं दृष्टिकोण है जो पुरुषों को एक ख़ास तरीके से सोचने और व्यव्हार करने पर मजबूर करता है। साथ ही साथ पुरुषों की प्रधानता और शक्ति प्रदर्शन का दवाब बनाता है।

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Shruti
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Toxic masculinity

(Image Credit - Freepik)

What is toxic masculinity : टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी पुरुषों से अपेक्षित कुछ व्यवहार एवं दृष्टिकोण है जो पुरुषों को एक ख़ास तरीके से सोचने और व्यव्हार करने पर मजबूर करता है। साथ ही साथ पुरुषों की प्रधानता और शक्ति प्रदर्शन का दवाब बनाता है। जैसे कि मर्द को दर्द नहीं होता जैसी धारणाएं प्रचलित करना। इस रूढ़िवादी सोच को प्रचलित करने में फिल्मों का भी बड़ा हाथ है। कई बार ये सोच समाज के हित में नहीं होती। कई बार इससे स्त्री द्वेष और हिंसक स्वभाव भी बढ़ता है। साथ ही ये समाज में तनाव भी बढ़ाता है। ये कुछ बातें हैं जो इस टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी को दर्शाती हैं

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जानिए क्या है टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी

1. औरतों को डिस्पोजेबल समझना

औरतों का सम्मान करना अति आवश्यक है। भारत देश में तो औरतों को पूजा जाता है। ऐसे में यदि कोई औरतों का सम्मान नहीं करता और उन्हें सिर्फ ऑब्जेक्ट की तरह देखता है तो यह टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी के लक्षण हैं।

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2. हिंसा करना

यदि अपना काम निकलवाने या अपनी बात को मनवाने के लिए कोई हिंसा का सहयोग लेता है तो भी यह समाज के लिए खतरनाक हो सकता है। खासकर की घरेलू हिंसा जैसी कुरीतियां भी टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी का ही एक रूप है।

3. अपनी वाइफ या पार्टनर को नीचा दिखाना

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इंसान को हमेशा हर किसी का सम्मान करना चाहिए। किसी को भी अपने से ऊपर या नीचे नहीं समझना चाहिए। इस समाज में हर कोई बराबर का हिस्सेदार है। ऐसे में यदि कोई अपनी वाइफ या अपने पार्टनर को नीचा दिखाता है या अपने आप को उससे प्रधान समझता है तो यह भी टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी ही कहलाती है।

4. "लड़के तो लड़के ही रहेंगे" का बहाना बनाना

इंसान अपने सही या गलत आचरण का खुद जिम्मेदार होता है। ऐसे में किसी के गलत व्यवहार को उसके लिंग से जस्टिफाई नहीं किया जा सकता। कई बार असामाजिक घटनाओं पे लोग ऐसे बहाने देते हैं कि "लड़के लड़के ही रहेंगे" इत्यादि जो कि सरासर गलत है।

5. अपनी फीलिंग्स को इग्नोर करना

कई बार लड़कों को बचपन से सिखाया जाता है कि वह अपनी फीलिंग्स ज्यादा व्यक्त न करें। यदि उनको दर्द हो रहा है तो ज्यादा व्यक्त न करें या उनको रोना आ रहा है तो वह न रोए। ऐसी चीजों को नॉर्मलाइज करना बिल्कुल सही नहीं है। यह भी टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी की ही एक देन है। हर इंसान को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का पूरा हक है।

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