Marriage Equality vs Compromise: सिर्फ लड़की से एडजस्टमेंट की उम्मीद क्यों? शादी बराबरी की या समझौते की?

क्या शादी सिर्फ समझौते पर टिकी होती है या बराबरी का रिश्ता होती है? समाज में हमेशा लड़की से ही एडजस्टमेंट की उम्मीद क्यों की जाती है? जानिए इस विषय पर गहराई से।

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Sakshi Rai
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Photograph: (theconversation)

Why is Only the Woman Expected to Adjust: शादी को प्यार, सम्मान और आपसी समझ का बंधन माना जाता है, लेकिन क्या यह सच में बराबरी का रिश्ता होता है? हमारे समाज में अक्सर यह देखा जाता है कि शादी के बाद लड़की से ही एडजस्टमेंट की उम्मीद की जाती है। उसे नए परिवार में घुलने-मिलने, अपनी आदतें बदलने और कई बार अपने करियर या सपनों से समझौता करने के लिए कहा जाता है। लेकिन सवाल यह उठता है - क्या यह रिश्ता वाकई बराबरी का है या सिर्फ एक समझौता?

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समाज में यह धारणा बनी हुई है कि एक लड़की को शादी के बाद हर हाल में एडजस्ट करना चाहिए, जबकि लड़कों से ऐसी अपेक्षाएँ कम ही की जाती हैं। घर, परिवार और रिश्तों को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी ज़्यादातर महिलाओं के कंधों पर डाल दी जाती है। लेकिन क्या शादी में दोनों को बराबर समझौते करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए?

सिर्फ लड़की से एडजस्टमेंट की उम्मीद क्यों? शादी बराबरी की या समझौते की? 

हमारे समाज में शादी को दो लोगों के बीच एक पवित्र बंधन माना जाता है, लेकिन जब जिम्मेदारियों और एडजस्टमेंट की बात आती है, तो ज्यादातर उम्मीदें लड़की से ही की जाती हैं। शादी के बाद लड़की को अपना घर छोड़कर ससुराल जाना होता है, नए रिश्तों को अपनाना पड़ता है, अपनी आदतें बदलनी पड़ती हैं, और कई बार करियर तक से समझौता करना पड़ता है। लेकिन क्या यह ज़रूरी है कि केवल लड़की ही हर चीज़ को अपनाए और बदले?

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समाज की पुरानी सोच

समाज में हमेशा से यह धारणा रही है कि लड़की को शादी के बाद एडजस्ट करना ही चाहिए। बचपन से ही उसे सिखाया जाता है कि शादी के बाद उसका असली घर उसका ससुराल होगा, और वहाँ उसे हर हाल में खुद को ढालना होगा। वहीं, लड़कों को इस तरह की सीख कम ही दी जाती है। उनसे यह उम्मीद नहीं की जाती कि वे लड़की के लिए अपने घर-परिवार में बदलाव लाएँ या उसे सहज महसूस कराने के लिए एडजस्ट करें।

एडजस्टमेंट सिर्फ एकतरफा क्यों?

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शादी दो लोगों के बीच होती है, तो फिर एडजस्टमेंट भी दोनों तरफ से क्यों नहीं होना चाहिए? जब लड़की अपना घर, अपनी आदतें, और कई बार अपने सपने तक छोड़कर नए माहौल में खुद को ढालने की कोशिश करती है, तो क्या लड़के की कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती? शादी में दोनों को बराबर समझौते करने चाहिए ताकि रिश्ता मजबूत और स्वस्थ बना रहे।

करियर और सपनों से समझौता

शादी के बाद लड़कियों से उम्मीद की जाती है कि वे घर-परिवार को प्राथमिकता दें और अपने करियर या सपनों को पीछे छोड़ दें। कई बार उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए कहा जाता है, क्योंकि "घर संभालना" उनकी ज़िम्मेदारी मानी जाती है। वहीं, लड़कों से ऐसी अपेक्षा बहुत कम रखी जाती है। अगर शादी बराबरी का रिश्ता है, तो सपनों और करियर को लेकर भी बराबरी होनी चाहिए।

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रिश्तों में समानता ज़रूरी

शादी एक साझेदारी है, जहाँ दोनों लोगों को मिलकर आगे बढ़ना चाहिए। अगर सिर्फ एक व्यक्ति बार-बार एडजस्ट करता रहेगा, तो रिश्ता बोझ बन सकता है। इसलिए ज़रूरी है कि शादी को बराबरी का रिश्ता माना जाए, न कि सिर्फ समझौते का नाम दिया जाए।

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