Breaking Stereotypes: समाज को समझने की जरूरत कि स्टाइल और साइज का आपस में कोई रिश्ता नहीं

हमारे समाज में स्टाइल और साइज को एक साथ जोड़कर देखा जाता है जिससे हम किसी व्यक्ति के फैशन को बहुत ज्यादा लिमिटेड कर देते हैं। ऐसा व्यवहार ज्यादातर महिलाओं के साथ होता है।

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Rajveer Kaur
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Teenager Girls

Photograph: (File Image)

Challenging Societal Beauty Standards: महिलाओं के साइज को लेकर समाज हमेशा चिंतित रहता है और उस हिसाब से ही उन्हें कपड़े पहनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जैसे 'प्लस साइज' की महिलाएं अगर वन पीस या फिर वेस्टर्न कपड़े पहनना चाहती हैं तो उनकी बॉडी shaming की जाती हैं। इसलिए बहुत सारी महिलाएं स्टाइल करते समय हमेशा साइज का ध्यान रखती हैं और अपनी चॉइस के कपड़े नहीं पहन पाती। समाज अक्सर इन दो कॉन्सेप्ट को एक साथ जोड़ता है जिससे स्टीरियोटाइप सोच बनी रहती है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सीमित होती है। 

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समाज को समझने की जरूरत कि स्टाइल और साइज का आपस में कोई रिश्ता नहीं

स्टीरियोटाइप सोच का नतीजा 

इसमें सबसे बड़ा हाथ फैशन और मीडिया का है जिन्होंने इतने सालों में एक माइंडसेट बना दिया कि स्टाइल और साइज एक साथ जुड़े हुए हैं और अब लोगों के दिमाग में से यह चीज खत्म नहीं हो रही है। ऐतिहासिक रूप से, फैशन और मीडिया ने ऐसी कहानियों को आगे बढ़ाया है कि कुछ स्टाइल स्पेसिफिक साइज से संबंधित हैं जैसे पतले लोगों के लिए "स्लिम-फिट" और प्लस साइज लोगों के लिए "बैगी"। यह सच्चाई नहीं हैं। सटाइल प्रेफरेंस, क्रिएटिविटी और पहचान के बारे में है, न कि किसी पैमाने पर एक संख्या के बारे में।

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चॉइस खत्म हो जाती है

जब समाज यह मान लेता है कि साइज पर स्टाइल निर्भर है, तो यह स्वायत्तता (Autonomy) को बाधित करता है। किसी भी व्यक्ति के स्टाइल से उसका व्यक्तित्व दिखाई देता है और उसकी सोच भी झलकती है लेकिन जब हम स्टाइल और साइज को एक साथ जोड़ देते हैं तो वह व्यक्ति अपनी चॉइस के कपड़े पहन ही नहीं पता है क्योंकि उसके ऊपर सामाजिक दबाव बहुत ज्यादा होता है। इस तरह कारण महिलाओं को ऐसे कपड़े भी पहने पड़ते हैं जो उनके साथ रिजोनेट नहीं करते या फिर जिन्हें पहनकर उन्हें खुशी नहीं मिलती है। इससे उनका कॉन्फिडेंस भी कम होता है और खुद को व्यक्त करने में भी परेशानी आती है।

चुनौतीपूर्ण सौंदर्य मानक (Beauty Standards)

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हमारे समाज में ऐसे अनरियलिस्टिक ब्यूटी स्टैंडर्ड आज भी मौजूद हैं। इनसे हमेशा ही इनसिक्योरिटी पैदा होती है और हम खुद को स्वीकार ही नहीं कर पाते हैं। जब हम स्टाइल को साइज से जोड़ देते हैं तो इससे ऐसे स्टैंडर्ड को मजबूती मिलती है जैसे उदाहरण के लिए, "सुंदरता" को पतलेपन के बराबर मानना जिसका मतलब है की पतली महिलाएं ज्यादा सुंदर होती है। यह शरीर के प्रति Insecurities को बढ़ाता है। 

स्टाइल के लिए पतले होने की जरूरत नहीं

हम लोग वजन कम करने को बहुत ज्यादा स्वस्थ होना मान लेते हैं। हमें लगता है कि अगर हमें अपनी मनपसंद कपड़े पहने हैं तो इसके लिए हमें पहले अपना वजन कम करना होगा तब ही हम स्टाइलिश कपड़े पहन सकते हैं या फिर जो हमें अच्छा लगता है। यह एक बहुत ही रूढ़िवादी सोच है जिसके लिए हमें बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत है। ऐसे में आप अकेले नहीं है। बहुत सारे लोगों की ऐसी सोच है जिस कारण वह कभी भी अपने मन की कर ही नहीं पाते हैं या फिर अपनी चॉइस को फॉलो ही नहीं कर पाते लेकिन अभी बहुत सारे ऐसे ब्रांड हैं जो प्लस साइज को ध्यान में रखते हुए कपड़े डिजाइन करते हैं और दूसरे लोगों को भी कॉन्फिडेंस देते हैं कि साइज मैटर नहीं करता है। 

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खुद को सेलिब्रेट करें

स्टाइल करने का मतलब यह नहीं है कि हमें खुद को छुपाना है या फिर हमें किसी सामाजिक ढांचे में फिट होना है। जब हम अपनी बॉडी पर कुछ भी स्टाइल करते हैं तो हम खुद को सेलिब्रेट कर रहे होते हैं। हमें यह सोचने की बिलकुल जरुरत नहीं है कि हमारी स्पेसिफिक बॉडी साइज के लिए क्या अच्छा लगता है। स्टाइल का एक ही मकसद होता है कि हम खुद को इसके जरिए व्यक्त करें।

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