हमने अक्सर अपने आस पास लोगों को औरतों से यह कहते हुए सुना है कि एडजस्ट करो, लेकिन ये एडजस्टमेंट और अपनी ख्वाहिशों के साथ कॉम्प्रोमाइज सिर्फ औरत ही क्यों करे। जब हम हर चीज़ में बराबरी की बात करते हैं तो एडजस्टमेंट सिर्फ औरत के लिए ही क्यों?
बचपन में एक छोटी बच्ची का दूध का गिलास आधा भर दिया जाता है ताकि घर के वारिस का गिलास पूरा भरा जा सके। बचपन से ही उसके अस्तित्व को दबाने की कोशिश की जाती है। एक बड़ी बहन की सुरक्षा के लिए उसका छोटा भाई जो खिलौनों से खेलता है उसके साथ जाता है। छोटा होने पर भी अपनी बड़ी बहन को ऑर्डर देने का हक रखता है।
जब बात पैसों की कमी और शिक्षा की होती है तो लड़की का स्कूल छुड़वा दिया जाता है ताकि घर का पुरुष पढ़ सके। शिक्षा तो शिक्षा होती है न फिर लड़के की ज़्यादा ज़रूरी और लड़की की कम कैसे हो सकती है। वजूद तो हर इंसान का होता है तो महत्व केवल पुरुष के वजूद को ही क्यों? सबको खाना खिलाकर सबसे आखिर में सोती है और सुबह सबसे पहले उठती है फिर भी एडजस्ट करना सिर्फ उसी के हिस्से में क्यों?
गलत हो या सही जवाब हमेशा औरत से मांगा जाता है। उनके ऊपर पति, पिता, ससुर के द्वारा फैसले थोप दिया जाते हैं और उनसे उम्मीद की जाती है कि वो उन्हे बिना किसी सवाल के स्वीकार कर लें। आखिर कब तक ऐसा ही चलेगा। औरतों के स्वाभिमान की कदर होनी चाहिए। इस समाज को बदलने की जरूरत है , औरतों को उनका हक , उनकी self respect का सम्मान करने की ज़रूरत है। ऐसे ही महिला प्रेरक मुद्दों पर बात करके हम समाज में सुधर ला सकते हैं।
अब ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें महिलाओ ने नाम ना कमाया हो। वो हर काम में आगे हैं। तो फिर समाज उनकी इच्छाओं का , अभिलाषाओं का गला घोंटकर उन्हें एडजस्ट करने के लिए कैसे कह सकता है। हमें बदलना होगा, इस समाज को बदलना होगा। औरतों की सेल्फ रिस्पेक्ट की रिस्पेक्ट करनी चाहिए।