आखिर क्यों महिलाओं को मां बनने के बाद desexualize माना जाता है?
मां बनने के बाद महिलाओं की एक अलग ही छवि बना दी जाती है जहां उन्हें अपना शरीर एवं पूरा समय अपने बच्चे को समर्पित कर देना होता है। अगर कोई महिला इस लीक से हटकर चलती है तो उसे एक अच्छी मां का दर्जा नहीं दिया जाता। समाज में उसे एक कठोर औरत कहा जाता है जो ममता से परे है और जो अपनी इच्छाओं को मातृत्व से ऊपर रखती है।
पिछड़ी सोच की उपज
हमारे समाज में, माताओं को देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है जो अगली पीढ़ी की जन्मदाता होने के लिए पवित्र और महान हैं। दर्द और बलिदान सहकर एक पीढ़ी का पोषण करने की उनकी शक्ति के लिए उनकी प्रशंसा की जाती है। मातृत्व को त्याग का पर्याय माना जाता है क्योंकि समाज अपेक्षा करता है कि माताएँ अपने बच्चों की परवरिश करते समय निस्वार्थ और त्यागपूर्ण हों।
उनसे उम्मीद की जाती है कि वे जीवन के सभी सुखों को छोड़ दें और खुद को उस बच्चे के पालन-पोषण के लिए समर्पित कर दें जिसे भविष्य का नेता माना जाता है। गर्भवती होने के दौरान से ही उन्हें देवी के समान माना जाता है और उनसे उम्मीद की जाती है कि वह अपना सर्वस्व अपने होने वाले बच्चे पर न्योछावर करदे और सब छोड़ दे चाहे वह उनका सजना सवरना है या उनकी अपनी सेक्सुअल डिजायर।
आखिर यह भेदभाव क्यों?
सबसे पहले हमें खुले दिमाग से यह सोचना चाहिए कि बच्चे की जिम्मेदारी सिर्फ एक मां की न होकर पिता की भी है| दोनों की वजह से एक बच्चे को जिंदगी मिलती है और वे दोनों ही उसकी परवरिश के लिए जिम्मेदार हैं| तो आखिर समाज क्यों सिर्फ और सिर्फ एक औरत से यह गुंजाइश करता है कि वह जीवन के अहम भाग को अपने बच्चे पर न्योछावर कर दें। उसकी भी अपनी जिंदगी है जहां उसे भी अपनी सेक्सुअल डिजायरस (sexual desires) को पूरा करने का हक है।
1. किसी भी शोध के अनुसार या साइंस ने कभी भी ऐसा तो नहीं कहा कि सेक्स का आधार सिर्फ और सिर्फ प्रजनन है। लेकिन क्या यह सही है?
2. क्या महिलाओं को सिर्फ इसलिए जीवन में सुखों की तलाश बंद कर देनी चाहिए क्योंकि वे मां हैं?
3. क्या महिलाओं को अपने व्यक्तित्व को सिर्फ इसलिए भूल जाना चाहिए कि वे एक जीवन का पालन-पोषण कर रही हैं?
4. वास्तव में, जब पुरुष पिता बनते हैं तो समाज पुरुषों का यौन शोषण क्यों नहीं करता है? पुरुष पिता होने के बाद भी आनंद लेने और इच्छाएं रखने का अधिकार क्यों रखते हैं?
5. क्या यह पितृत्व के बाद के जीवन की एक विकृत समझ की ओर इशारा नहीं करता है ?
अब समय आ गया है ऐसी समाज के निर्माण का जहां महिला को किसी भी बंधन में ना बांधा जाए और उसको अपनी सेक्सुअलिटी और प्राथमिकताओं के अनुसार जीने दिया जाए।