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Photograph: (yourstory)
Are Girls Still Denied Equal Education or Is Society Changing: शिक्षा हर बच्चे का मूल अधिकार है, लेकिन जब बात लड़कियों की शिक्षा की आती है, तो समाज में आज भी कई तरह की बाधाएँ देखने को मिलती हैं। सदियों से लड़कियों की पढ़ाई को लेकर संकीर्ण मानसिकता रही है, जहाँ उन्हें घरेलू कामों और पारिवारिक जिम्मेदारियों तक सीमित रखा जाता था। हालांकि, समय के साथ सोच में बदलाव आया है और अब अधिक से अधिक लड़कियां शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं।
भारत में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई सरकारी योजनाएँ चलाई गई हैं, जिससे स्कूली शिक्षा का स्तर सुधरा है। फिर भी, कई ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों में लड़कियों की पढ़ाई को अब भी प्राथमिकता नहीं दी जाती। समाज धीरे-धीरे बदलाव की ओर बढ़ रहा है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बदलाव सभी लड़कियों तक समान रूप से पहुँच पा रहा है?
क्या लड़कियां आज भी शिक्षा के समान अधिकार से वंचित हैं, या बदलाव की ओर बढ़ रहा है समाज?
हर परिवार में बच्चों की पढ़ाई एक अहम मुद्दा होती है। जब किसी घर में बच्चा जन्म लेता है, तो माता-पिता का पहला सपना होता है कि वह अच्छी शिक्षा पाए और अपने पैरों पर खड़ा हो सके। लेकिन जब बात लड़की की पढ़ाई की आती है, तो कई परिवारों में आज भी इसे उतनी प्राथमिकता नहीं दी जाती, जितनी एक लड़के की पढ़ाई को दी जाती है।
शिक्षा का पहला संघर्ष
गांवों और छोटे शहरों में अब भी कई परिवार लड़कियों की शिक्षा को कम जरूरी मानते हैं। कुछ सोचते हैं कि लड़की को पढ़ाकर क्या करना, आखिर उसे तो शादी करके घर ही संभालना है। कई मामलों में घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर परिवार पहले लड़कों की पढ़ाई पर ध्यान देता है, जबकि लड़कियों को घरेलू कामों में लगा दिया जाता है।
कुछ जगहों पर, भले ही माता-पिता अपनी बेटियों को स्कूल भेजना चाहते हैं, लेकिन सामाजिक दबाव, परिवहन की दिक्कतें, स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी और लड़कियों की सुरक्षा को लेकर डर जैसी समस्याएँ उनकी शिक्षा के रास्ते में रुकावट बन जाती हैं।
समाज में बदलाव की ओर कदम
हालांकि, बीते कुछ सालों में सोच में बदलाव आया है। अब कई परिवारों में लड़कियों की पढ़ाई को भी लड़कों के समान महत्व दिया जाने लगा है। सरकार ने भी कई योजनाएँ चलाई हैं, जैसे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, मिड-डे मील योजना, और फ्री स्कूल एजुकेशन जैसी पहल, जिससे अधिक लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं।
इसके अलावा, कई ऐसी लड़कियां भी हैं, जिन्होंने कठिनाइयों के बावजूद पढ़ाई जारी रखी और समाज में अपनी पहचान बनाई। जैसे कि कल्पना चावला, जिन्होंने भारत से निकलकर अंतरिक्ष में अपनी जगह बनाई, या मलाला यूसुफजई, जो दुनिया भर में लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज उठाती हैं।
लोगों की बदलती सोच
शहरों और कस्बों में अब अभिभावकों की सोच बदल रही है। वे समझ रहे हैं कि लड़की की शिक्षा सिर्फ उसका भविष्य नहीं बदलती, बल्कि पूरे परिवार और समाज को मजबूत बनाती है। शिक्षित लड़की अपने अधिकारों को समझती है, आत्मनिर्भर बनती है और आने वाली पीढ़ियों को भी शिक्षित करती है।
हालांकि, अभी भी पूरी तरह से बदलाव नहीं हुआ है। कुछ जगहों पर आज भी लड़कियों की पढ़ाई शादी के आगे रोक दी जाती है। लेकिन धीरे-धीरे यह सोच बदल रही है, और उम्मीद है कि आने वाले समय में हर लड़की को शिक्षा का समान अधिकार मिलेगा।