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क्यों टूटती हुई शादियों को नहीं मिलती है सोसाइटी की एक्सेप्टेन्स?

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Swati Bundela
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हमारे देश में आज भी टूटती हुई शादियों को लेकर सोसाइटी की एक्सेप्टेन्स में ज़्यादा अंतर नहीं आया है। हमारे देश में सदियों से शादी को एक "पवित्र बंधन" माना गया है जिसका हर किसी के जीवन में सबसे ज़्यादा महत्व होना चाहिए। यही सबसे बड़ी वजह है कि सोसाइटी डिवोर्स को एक्सेप्ट करने में अक्षम है। इसलिए भले कितनी भी मुश्किलों का सामना क्यों न करना पर जाए माना यही जाता है कि शादी को साड़ी उम्र निभाना ज़रूरी है। आज इस सोच के लेकर लोगों का नजरिया बदल तो रहा है लेकिन अभी भी इसमें ज़्यादा कोई सुधार नहीं आया है। आखिर क्यों नहीं मिलती टूटती हुई शादियों को सोसाइटी की एक्सेप्टेन्स?





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बचपन से डाली जाती है शादी की लम्बी उम्र की बातें

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हमारी सोसाइटी में बचपन से ही बच्चों के विशेषकर लड़कियों के दिमाग में ये बात डाल दी जाती है कि जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य होता है शादी करना और उसे सारी उम्र निभाना। बचपन में जल्दी ये समझ में भी नहीं आता है कि क्या ये बात सही है या नहीं और जब तक हम इसे समझने लगते हमारी सोच की पूरी तरह से कंडीशनिंग इनके बेसिस पर ही कर दी जाती है। शादी को एक रेस की तरह बच्चों को समझाना आगे जाकर सोसाइटी को बहुत नुक्सान पहुंचा सकता है। ऐसे में आगे जाकर शादी तोड़ना और उसपर सोसाइटी की एक्सेप्टेन्स का ना मिलना ज़्यादा हैरान नहीं करता है। 

सोसाइटी की एक्सेप्टेन्स : सोसाइटी को नहीं पता कम्पेटिबिलिटी का मतलब

हमारे देश में आज भी "अरेंज्ड मैरिज" का कांसेप्ट काफी प्रचलित है और यही कारण है कि सोसाइटी में कम्पेटिबिलिटी को लेकर कोई बात नहीं करता है। जिस इंसान से आपको शादी के लिए "अर्रेंज" किया जा रहा है उसके साथ आपको ये सोसाइटी कम्पेटिबिलिटी भी नहीं करने देती है क्योंकि अरेंज्ड मैरिज में "कोर्टशिप" को ज़्यादा इम्पोर्टेंस दिया ही नहीं जाता है। ऐसे में ये बहुत ही लाज़मी है कि शादी के बाद आपको अपने पार्टनर के सतह एडजस्टमेंट में दिक्कत हो सकती है और आपकी शादी टूट सकती है।

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लोगों में चेंज स्वाभाविक बात है 

वक़्त के साथ लोगों में चैंजेस संभव है और ये भी मुमकिन है कि उनके इन्तेरेस्ट्स में परिवर्तन आए। यही वजह है कि मिडिल एज में लोगों की शादियां टूटती है लेकिन सोसाइटी को ये बात समझाना कठिन है। हर इंसान में पवर्तन होता है और उन परिवर्तनों को अपनाना हर किसी के बस की बात नहीं है और इस कारण शादी तोड़ना बिलकुल गलत नहीं है।

कानून है भी है इसमें हाथ 

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हमारे देश के कानून के हिसाब से शादी करने में ज़्यादा से ज़्यादा 2 घंटे का समय लग सकता है लेकिन वहीं अगर डिवोर्स लेने जाओ तो ये प्रकरण एक साल तक चल सकता है। ये हाल तब है जब एक रिश्ते को दोनों लोग अपनी रज़ामंदी से तोड़ रहे हैं। वहीं अगर ये डिवोर्स की मांग किसी एक इंसान की हो तो ये प्रकरण और लम्बा चल सकता है। ऐसे में सोसाइटी के लिए इन चीज़ों को लेकर एक्सेप्टेन्स आने में अब भी बहुत समय है।





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सोसाइटी की एक्सेप्टेन्स



#फेमिनिज्म सोसाइटी
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