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Still From Masaan
10 साल पहले एक फिल्म आई थी, जिसने दो ऐसे लोगों को लॉन्च किया जो आज बॉलीवुड के मजबूत सितारे बन चुके हैं। ये थे एक्टर विक्की कौशल और डायरेक्टर नीरज घायवान की डेब्यू फिल्म। वरुण ग्रोवर द्वारा लिखी गई इस फिल्म में दुख, जाति, प्यार और आज़ादी की दो कहानियां एक साथ चलती हैं और ये सब बनारस की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि में दिखाया गया है।
‘मुसाफ़िर हैं हम भी’: 10 साल बाद भी मसान क्यों खास है?
जब बॉलीवुड में बड़ी स्टारकास्ट और पार्टी सॉन्ग्स का दौर था, तब मसान एक शांत कविता की तरह आई। इसने दो कहानियाँ दिखाई। दीपक (विक्की कौशल), जो निचली जाति से है और शमशान घाट पर काम करता है, और देवी (ऋचा चड्ढा) जो एक हादसे के बाद समाज की शर्म और दबाव से लड़ रही है। शालू (श्वेता त्रिपाठी) और दीपक की प्रेम कहानी बनारस के घाटों की शांत झीलों जैसी खूबसूरत लगती है।
विक्की कौशल के करियर की शुरुआत
मसान से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करने वाले विक्की कौशल ने इस मौके पर एक भावुक सोशल मीडिया पोस्ट शेयर की। उन्होंने शूट के दौरान की कुछ तस्वीरों के साथ लिखा: "10 साल हो गए! बहुत कुछ सीखने को मिला, बहुत कुछ बदल गया… शुक्रिया हर चीज़ के लिए। मुसाफ़िर हैं हम भी, मुसाफ़िर हो तुम भी। किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी।"
श्वेता त्रिपाठी ने भी इस उपलब्धि का जश्न पुरानी यादों को ताज़ा करके मनाया। उन्होंने फिल्म के 10 साल पूरे होने पर नीरज, वरुण, ऋचा और विक्की का शुक्रिया अदा किया।
वो फिल्म जिसने बॉलीवुड को नए चेहरे दिए
मसान ने जाति भेदभाव, पितृसत्ता और समाज की दोहरी सोच जैसे मुद्दों को शांति लेकिन मजबूती से दिखाया। इस फिल्म को 'कान्स और न्यू यॉर्क दलित फिल्म फेस्टिवल' जैसे बड़े मंचों पर भी दिखाया गया, और आज इसे प्रोग्रेसिव भारतीय सिनेमा का अहम हिस्सा माना जाता है।
यह फिल्म दुख, अपराधबोध और closure (अधूरी कहानियों को पूरा करने की चाह) की एक भावुक कहानी है, जो बनारस की पृष्ठभूमि में देवी और दीपक के ज़रिए दिखाई जाती है। देवी एक दुखद हादसे के बाद समाज की शर्म और अपने अंदर के दर्द से जूझती है। उसे अपने ग़म को चुपचाप सहना पड़ता है क्योंकि लोग उसकी इच्छाओं को ही गुनाह मान लेते हैं।
दीपक (विक्की कौशल का ब्रेकआउट रोल) एक निचली जाति से है, जो प्यार करता है लेकिन अपनी प्रेमिका की अचानक मौत के बाद टूट जाता है। इन दो कहानियों के ज़रिए मसान हमें दिखाती है कि ग़म कई रूप लेता है कभी चुप, कभी उफनता हुआ और असली राहत तब मिलती है जब हम सब कुछ भुलाकर नहीं, बल्कि यादों के साथ आगे बढ़ते हैं।
डायरेक्टर नीरज घायवान आज भारतीय सिनेमा का एक जाना-पहचाना नाम बन चुके हैं। मसान में उनकी बारीक नज़र और सामाजिक मुद्दों को दिखाने का तरीका ऐसा था कि इस फिल्म को बॉलीवुड की सराही गई क्लासिक फिल्मों में जगह मिल गई। 1मसान के बाद भी उन्होंने कई शानदार और क्रिटिकली अक्लेम्ड फिल्में बनाई। उनकी हाल की फिल्म Homebound को कान्स फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहना मिली और अब यह टोरोन्टो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2025 में भी दिखाई जाएगी।