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Photograph: (bookmyshow)
महिला मित्रता एक ऐसा रिश्ता है, जिसके बारे में फिल्मों, कहानियों और समाज में बहुत कम बात होती है। अक्सर औरतों को एक-दूसरे की दुश्मन के रूप में दिखाया जाता है, कभी सास-बहू की लड़ाई में, कभी बॉस-इम्प्लॉयी की टकराहट में, तो कभी एक ही लड़के के लिए दो लड़कियों की आपसी दुश्मनी में। समाज में यह धारणा बन चुकी है कि महिलाएं एक-दूसरे से हमेशा जलती हैं या फिर उनमें आपस में बनती नहीं है। लेकिन असल ज़िंदगी में महिला-मित्रता इससे बिल्कुल अलग होती है जिसमें अपनापन, समझदारी और बिना शर्त सहारा देने की भावना होती है। बॉलीवुड में कुछ फिल्में हैं जिन्होंने महिला दोस्ती को खूबसूरती से पर्दे पर दिखाया है। चलिए उनके बारे में जानते हैं-
बॉलीवुड के ऐसे महिला किरदार जिन्होंने समझाया ‘महिला दोस्ती’ का मतलब
1. रानी और विजयलक्ष्मी - क्वीन
अगर आपने क्वीन फिल्म देखी है, तो आप इस जोड़ी को जरूर जानते होंगे। रानी को शादी से पहले उसका मंगेतर छोड़ देता है और अकेलेपन में वह पेरिस पहुंचती है जहां उसकी मुलाकात विजयलक्ष्मी से होती है जो एक आज़ाद ख्यालों वाली और बिंदास लड़की है।विजयलक्ष्मी, रानी को उसके कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकालने के लिए प्रोत्साहित करती है और उसे इमोशनल सपोर्ट भी देती है। इस दोस्ती से रानी खुद से प्यार करना सीखती है और आत्मनिर्भर बनती है। विजयलक्ष्मी उसे कभी जज नहीं करती बल्कि वो रानी को वैसे ही अपनाती है जैसी वो है। यही सच्ची दोस्ती की पहचान है।
2. मीरा और वेरोनिका - कॉकटेल
कॉकटेल में मीरा और वेरोनिका की दोस्ती भी महिला मित्रता की एक अनोखी मिसाल है। दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। मीरा सीधी-सादी और संस्कारी जबकि वेरोनिका बिंदास और आज़ाद ख्यालों वाली लड़की जिसे दुनिया की कोई परवाह नहीं है फिर भी, दोनों एक-दूसरे को बिना शर्त अपनाती हैं और अजनबी से दोस्त बन जाती हैं। दोस्ती की यह खूबसूरत कहानी तब चुनौती में आ जाती है जब दोनों को एक ही लड़के से प्यार हो जाता है।
इसके बावजूद न मीरा वेरोनिका से नफरत करती है और न ही वेरोनिका मीरा से। यह दोस्ती हमें सिखाती है कि रोमांस से ऊपर भी एक रिश्ता होता है जिसे दोस्ती कहते हैं जिसमें गहराई, समझ और सम्मान होता है।
3. नैना और अदिति - ये जवानी है दीवानी
इस फिल्म में मुख्य फोकस पुरुष दोस्तों पर है, लेकिन नैना और अदिति की दोस्ती भी अपने आप में खास है। दोनों के पास एक-दूसरे के लिए ज्यादा समय नहीं होता, लेकिन उनके बीच एक साइलेंट बॉन्ड है जो सम्मान, अपनापन और बिना शर्त समझदारी का है। वे एक-दूसरे को जज नहीं करतीं और न ही कोई तुलना या जलन दिखती है। यह दिखाता है कि महिला मित्रता शब्दों से नहीं, भावना और विश्वास से बनती है- even in silence
आपके लिखे विचार बहुत दमदार हैं, बस उन्हें थोड़ा स्पष्ट, प्रवाहपूर्ण और संवेदनशील भाषा में पेश करना ज़रूरी है ताकि पाठक पूरी गहराई से उन्हें महसूस कर सकें। नीचे दोनों फिल्मों की बात को बेहतर रूप में प्रस्तुत किया गया है—ह्यूमनिस्ट, फेमिनिस्ट और भावनात्मक लहजे में:
4. दामिनी, लाज्जो, शिरीन और फलक - 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का'
लिपस्टिक अंडर माय बुर्का चार अलग-अलग उम्र, सोच और हालात की महिलाओं की कहानी है। ये महिलाएं ज़िंदगी के अलग-अलग मोड़ पर हैं। शुरुआत में वे बस अपनी-अपनी कहानियों में उलझी होती हैं लेकिन जैसे-जैसे वे एक-दूसरे को सुनना और समझना शुरू करती हैं वैसे-वैसे उनकी दोस्ती गहरी होने लगती है जिसमें न कोई दिखावा, न कोई शर्म और न ही कोई जजमेंट है।
वे न सिर्फ एक-दूसरे को अपनाती हैं, बल्कि मुश्किल वक्त में सहारा भी बनती हैं। यह फिल्म हमें यह एहसास कराती है कि महिला मित्रता किसी उम्र, हालात या सामाजिक बैकग्राउंड की मोहताज नहीं होती। जब महिलाएं एक-दूसरे की तकलीफें समझती हैं तब वे एक-दूसरे की सबसे बड़ी ताकत बन सकती हैं।
5. मीनाल, फलक और आंद्रेया - 'पिंक'
पिंक तीन महिलाएं मीनाल, फलक और आंद्रेया की कहानी है जो दिल्ली में एक साथ रहती हैं। एक हादसे के बाद वे एक कानूनी लड़ाई में उलझ जाती हैं, जहाँ समाज उन्हें दोषी ठहराता है, उनके किरदार पर सवाल उठाए जाते हैं लेकिन वे हारती नहीं हैं। वे चुप नहीं रहतीं। और इस लड़ाई में उनकी सबसे बड़ी ताकत उनकी आपसी दोस्ती है।
तीनों का बैकग्राउंड अलग है लेकिन उनमें एक चीज़ समान है जो एक-दूसरे को बिना शर्त समझने और साथ निभाने की भावना है। वे मिलकर एक बड़ी बात कहती हैं कि “ना” मतलब ना होता है। इस फिल्म की दोस्ती हमें ये सिखाती है कि जब महिलाएं एकजुट होती हैं तो वे सिर्फ एक-दूसरे का सहारा नहीं बनतीं बल्कि पूरी व्यवस्था से सवाल पूछने की हिम्मत भी जुटा लेती हैं।