Karan Oberoi Rape Case: पीड़िता की पहचान उजागर करने के मामले में पूजा बेदी सहित 8 के खिलाफ कोर्ट में कार्यवाही जारी रहेगी

मुंबई की सत्र अदालत ने करण ओबेरॉय रेप केस में पीड़िता की पहचान उजागर करने के आरोप में पूजा बेदी समेत आठ लोगों के खिलाफ कार्यवाही रोकने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने साक्ष्यों को पर्याप्त मानते हुए आरोपों को खारिज नहीं किया।

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Priya Singh
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Karan Oberoi Rape Case

Photograph: (News18)

Karan Oberoi Rape Case: Court proceedings will continue against 8 people including Pooja Bedi in the case of revealing the identity of the victim: अभिनेता करण ओबेरॉय के खिलाफ 2019 में दर्ज बलात्कार मामले में एक नया मोड़ आया है। इस केस में पीड़िता की पहचान उजागर करने के आरोपों का सामना कर रही एक्ट्रेस पूजा बेदी और सात अन्य के खिलाफ सत्र न्यायालय ने कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद हैं, जो आरोपियों की संलिप्तता का संकेत देते हैं, इसलिए इस मुकाम पर आरोप खारिज नहीं किए जा सकते।

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पीड़िता की पहचान उजागर करने के मामले में पूजा बेदी सहित 8 के खिलाफ कोर्ट में कार्यवाही जारी रहेगी

News18 की खबर के अनुसार, यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 228A के तहत दर्ज किया गया है, जो यौन अपराधों की पीड़िताओं की पहचान उजागर करने को दंडनीय अपराध मानती है। शिकायतकर्ता महिला ने आरोप लगाया है कि करण ओबेरॉय की गिरफ्तारी के तुरंत बाद, मई 2019 में पूजा बेदी के आवास पर आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उसकी पहचान उजागर की गई। इस प्रेस मीट में मौजूद अन्य लोगों में अभिनेत्री अन्वेषी जैन, चैतन्य भोसले, वर्के पटानी, गुरबानी ओबेरॉय, शेरिन वर्गीस, अभिनेता सुधांशु पांडे और अधिवक्ता दिनेश तिवारी शामिल थे।

शिकायतकर्ता ने जून 2019 में अंधेरी मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट में इस संबंध में औपचारिक शिकायत दर्ज की थी। कोर्ट ने पुलिस को मामले की जांच कर रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए थे। पुलिस जांच में पुष्टि हुई कि 5 मई 2019 को हुई उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में शिकायतकर्ता का नाम और अन्य व्यक्तिगत जानकारी उजागर की गई थी। इसके वीडियो कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं और व्यापक रूप से साझा किए गए।

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कोर्ट ने 26 फरवरी 2021 को इस खुलासे को धारा 228A का उल्लंघन मानते हुए पूजा बेदी और अन्य के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया। अप्रैल 2022 में आरोपियों ने मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देते हुए सत्र न्यायालय में याचिका दायर की थी। उनका तर्क था कि किसी भी आरोपी ने जानबूझकर पीड़िता की पहचान उजागर नहीं की, न ही उनमें कोई "सामान्य इरादा" या "दोषी मनोभाव" था।

लेकिन पीड़िता ने इन दावों का खंडन करते हुए कोर्ट में कहा कि ग्रुप द्वारा उसकी पहचान उजागर करने से उसे सामाजिक कलंक, मानसिक तनाव और निजता के उल्लंघन का सामना करना पड़ा। उसने यह भी बताया कि वीडियो और सोशल मीडिया प्रसार के चलते कुछ लोग उसके घर तक पहुंच गए और उसने डर व असुरक्षा महसूस की।

इन सभी तथ्यों पर विचार करते हुए, सत्र न्यायालय ने कहा कि भले ही नाम केवल एक या दो लोगों ने लिया हो, लेकिन अगर एक सामान्य इरादा साबित होता है तो सभी आरोपी दोषी माने जा सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि ये सारे बचाव तर्क ट्रायल के दौरान प्रस्तुत किए जा सकते हैं, लेकिन फिलहाल आरोपों को खारिज करने का कोई आधार नहीं है।

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