इलाहाबाद हाईकोर्ट का चौंकाने वाला फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक? जानें पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादास्पद फैसले पर रोक लगाई, जिसमें नाबालिग से यौन उत्पीड़न को बलात्कार का प्रयास नहीं माना गया था। जानें पूरा मामला और इसका कानूनी प्रभाव।

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Vaishali Garg
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हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले ने व्यापक चर्चा और विवाद को जन्म दिया, जिसमें अदालत ने कहा था कि किसी नाबालिग लड़की के स्तन पकड़ना और उसके पायजामे की डोरी खींचना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता। इस निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल संज्ञान लेते हुए इसे असंवेदनशील और अमानवीय करार दिया और इस पर रोक लगा दी।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट का चौंकाने वाला फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक? जानें पूरा मामला

मामला क्या है?

उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में एक 11 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ दो पुरुषों, पवन और आकाश, द्वारा कथित यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया। आरोप था कि इन दोनों ने लड़की के स्तन पकड़े, उसके पायजामे की डोरी खींची और उसे एक पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। प्रारंभ में, इन आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और पोक्सो अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियुक्तों के द्वारा किए गए कार्य बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आते, बल्कि ये गंभीर यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आते हैं। अदालत ने तर्क दिया कि बलात्कार के प्रयास के लिए आवश्यक है कि वह तैयारी के चरण से आगे बढ़कर वास्तविक प्रयास की ओर अग्रसर हो, और इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया

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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश में की गई टिप्पणियां कानून के दायरे से बाहर हैं और असंवेदनशीलता को दर्शाती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश के पैराग्राफ 24, 25 और 26 पर विशेष रूप से रोक लगाई और कहा कि इस तरह की टिप्पणियां न्यायपालिका की संवेदनशीलता पर सवाल उठाती हैं।

कानूनी विशेषज्ञों की राय

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में अदालतों को अत्यधिक संवेदनशीलता और सतर्कता बरतनी चाहिए। ऐसे मामलों में न्यायिक टिप्पणियों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है, और इसलिए न्यायाधीशों को अपने शब्दों का चयन सोच-समझकर करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न्यायपालिका की जिम्मेदारी और संवेदनशीलता को दर्शाता है।

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समाज पर प्रभाव

इस मामले ने समाज में महिलाओं की सुरक्षा और न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं। यह आवश्यक है कि न्यायपालिका और समाज मिलकर ऐसे मामलों में संवेदनशीलता और सतर्कता बरतें, ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके और समाज में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादास्पद फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक ने न्यायपालिका की संवेदनशीलता और जिम्मेदारी को उजागर किया है। यह मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में न्यायिक प्रणाली को कैसे और अधिक संवेदनशील और प्रभावी बनाया जा सकता है, ताकि पीड़ितों को त्वरित और उचित न्याय मिल सके।