Movies That Inspired: जब फिल्म Pad man आई तो लगा बदलाव आएग लेकिन क्या सच में आया?

फिल्म Pad Man ने पीरियड्स और स्वच्छता पर जागरूकता बढ़ाई, इसने महिलाओं की सेहत और हाइजीन से जुड़ी गंभीर समस्याओं को सामने लाया। लेकिन क्या लोगों की सोच बदली?

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Sakshi Rai
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PADMAN

Photograph: (Youtube)

When Pad Man Released Did Change Really Happen?: फिल्म Pad Man जब रिलीज़ हुई, तो इसने Periods और स्वच्छता पर खुलकर बात करने का एक नया दौर शुरू किया। यह फिल्म अरुणाचलम मुरुगनाथम की सच्ची कहानी पर आधारित थी, जिन्होंने ग्रामीण महिलाओं के लिए सस्ते सैनिटरी पैड बनाने का अभियान शुरू किया। इसने एक ऐसे विषय पर रोशनी डाली, जो भारतीय समाज में अक्सर उपेक्षित रहता है। महिलाओं की मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं, जागरूकता की कमी, शर्म और स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही जैसी सच्चाइयों को इस फिल्म ने बड़े पर्दे पर लाकर एक अहम संदेश दिया।

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फिल्म देखने के बाद बहुत से लोगों को लगा कि अब समाज में बदलाव आएगा। लोग Periods पर खुलकर बात करेंगे, सैनिटरी पैड्स की उपलब्धता बढ़ेगी, और महिलाओं को स्वच्छता से जुड़े बेहतर संसाधन मिलेंगे। लेकिन क्या सच में ऐसा हुआ?

 जब फिल्म Pad man आई तो लगा बदलाव आएग लेकिन क्या सच में आया?

फिल्म के बाद कुछ बदलाव जरूर हुए। कई जगहों पर सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनें लगाई गईं और कई सामाजिक संगठनों ने इसे एक मिशन की तरह अपनाया। कुछ स्कूलों और गांवों में जागरूकता अभियान चलाए गए, जिससे लड़कियों को मासिक धर्म के बारे में सही जानकारी मिलने लगी। सोशल मीडिया पर भी लोगों ने खुलकर इस विषय पर बात करना शुरू किया।

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लेकिन जब ज़मीनी हकीकत की बात आती है, तो तस्वीर अब भी पूरी तरह बदली नहीं है। आज भी भारत के कई गांवों में लड़कियों को Periods के दौरान स्कूल जाने से रोका जाता है। कई महिलाएं अब भी कपड़े या असुरक्षित साधनों का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं, क्योंकि या तो उन्हें सैनिटरी पैड उपलब्ध नहीं होते या फिर वे इन्हें खरीद नहीं सकतीं। Periods को लेकर शर्म और चुप्पी का माहौल अब भी बना हुआ है।

समस्या सिर्फ सैनिटरी पैड्स तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिकता से जुड़ी हुई है। फिल्म ने लोगों को सोचने पर मजबूर जरूर किया, लेकिन समाज की जड़ें इतनी गहरी हैं कि बदलाव रातोंरात नहीं आ सकता। कई घरों में आज भी यह विषय ‘छुपाकर रखने’ वाला माना जाता है। बेटियां अपनी माँ से भी इस पर बात करने में हिचकती हैं और पुरुष वर्ग अब भी इसे महिलाओं का ‘निजी मुद्दा’ मानकर चलता है।

बदलाव लाने के लिए सिर्फ फिल्मों या सोशल मीडिया की चर्चा ही काफी नहीं है। ज़रूरी है कि हम इस विषय पर खुलकर बात करें और इसे सामान्य मानें, जैसे कोई और स्वास्थ्य से जुड़ा विषय होता है। स्कूलों में लड़कियों को ही नहीं, बल्कि लड़कों को भी इस विषय पर सही जानकारी दी जानी चाहिए ताकि समाज में झिझक कम हो। सरकारी योजनाओं को और मजबूत बनाने की जरूरत है, जिससे हर वर्ग की महिलाओं तक सैनिटरी सुविधाएं आसानी से पहुंच सकें।

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फिल्म Pad Man ने इस बदलाव की शुरुआत की थी, लेकिन इसे पूरी तरह से हकीकत में बदलने के लिए समाज को अभी और लंबा सफर तय करना बाकी है।

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