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रिलेटिव्स एक ऐसा शब्द जिसे शायद कोई इंट्रोडक्शन की ज़रूरत ही नहीं। हम बड़े ही तो उनके घर रहकर हुए होते हैं। हम यह कह सकते हैं की वें हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। पर आजकल के सिटी - लाइफ कल्चर के रहते अधिकतर बच्चे अपने रिलेटिव्स से मिल ही नहीं पाते। इस गलती का पूरा श्रेय उनके माता - पिता को जाता है। हालतें इतनी खराब है की बच्चे अपने ग्रैंड पैरेंट्स व अपने ममेरे रिलेटिव्स से भी नहीं मिले होते हैं कभी। हम सभी के रिलेटिव्स कुछ इस वैराइटीज के होते हैं - रिश्तेदार के प्रकार
कई बार हम हमारे क्लोज रिलेटिव्स को तो जानते होते हैं परंतु जब बात पैरेंट्स के रिलेटिव्स की आए तो हम अपने हाथ खड़े कर देते हैं। जब बचपन में माता पिता अपने बच्चों को उनके रिलेटिव से नहीं मिला पाते तो बाद में बड़े होकर वे अपने पढ़ाई एवं करियर में इतना बिजी हो जाते हैं कि वे अपनी पूरी लाइफ में कभी कुछ लोगों से मिल ही नहीं पाते। यह गलत है, पेरेंट्स को समय-समय पर अपने बच्चों को उनके होमटाउन या उनके गांव लेकर आते रहना चाहिए।
हमारे कुछ रिलेटिव ऐसे होते हैं जो अगर हमारे घर आए तो हमें अच्छा लगता है। हमारे कजीन्स में से कुछ तो हमारे फेवरेट होते ही हैं। यह रिलेटिव अक्सर हमारे माता-पिता के क्लोज कांटेक्ट में होते हैं और जिनके घर पर हमारा आना-जाना बना रहता है। रिश्तेदार के प्रकार
हमारे कुछ रिलेटिव्स तो ऐसे होते ही हैं जिन्हें अगर हम फोन लगाएं या उनसे मिलें तो वह जैसे हमें सारे गांव, शहर, देश-दुनिया सबकी खबर दे देते हैं। वें हमें कोई न्यूज़ रिपोर्टर की तरह लगते हैं। उन्हें एक इनफॉर्मेशन यहाँ से वहाँ पहुंचानी ही होती है।
एक उम्र के बाद जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, स्पेशली लड़कियां तब कई बार उनके रिलेटिव्स उनके घर आकर बस उनकी शादी की ही बात करते हैं। उनके माता-पिता को उनके लिए लड़का ढूंढने को बोलते हैं। "कोई लड़का मिला", "हमने इसके लिए लड़का देख रखा है", "फालना -धिमकाना का लड़का अच्छा है", पता नहीं और क्या - क्या कहते हैं।
कुछ रिलेटिव ऐसे भी होते हैं जो सिर्फ एग्जाम के रिजल्ट आने पर फोन करते हैं। खुद के बच्चों के अच्छे मार्क्स आने पर दूसरों को उनके बारे में बताते रहते हैं। दूसरों को कम अंक लाने पर कई बार इनडायरेक्ट रूप से ताने भी मारते हैं। आजकल सोशल मीडिया के ज़माने में वे ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर अपने बच्चों की तारीफों के पुल ही बांधते रहते हैं। रिश्तेदार के प्रकार
तरह के रिलेटिव्स
1) जिसने हम कभी नहीं मिले
कई बार हम हमारे क्लोज रिलेटिव्स को तो जानते होते हैं परंतु जब बात पैरेंट्स के रिलेटिव्स की आए तो हम अपने हाथ खड़े कर देते हैं। जब बचपन में माता पिता अपने बच्चों को उनके रिलेटिव से नहीं मिला पाते तो बाद में बड़े होकर वे अपने पढ़ाई एवं करियर में इतना बिजी हो जाते हैं कि वे अपनी पूरी लाइफ में कभी कुछ लोगों से मिल ही नहीं पाते। यह गलत है, पेरेंट्स को समय-समय पर अपने बच्चों को उनके होमटाउन या उनके गांव लेकर आते रहना चाहिए।
2) जिनके आने पर हमें खुशी मिलती है
हमारे कुछ रिलेटिव ऐसे होते हैं जो अगर हमारे घर आए तो हमें अच्छा लगता है। हमारे कजीन्स में से कुछ तो हमारे फेवरेट होते ही हैं। यह रिलेटिव अक्सर हमारे माता-पिता के क्लोज कांटेक्ट में होते हैं और जिनके घर पर हमारा आना-जाना बना रहता है। रिश्तेदार के प्रकार
3) जिनके पास सारी इनफार्मेशन होती है
हमारे कुछ रिलेटिव्स तो ऐसे होते ही हैं जिन्हें अगर हम फोन लगाएं या उनसे मिलें तो वह जैसे हमें सारे गांव, शहर, देश-दुनिया सबकी खबर दे देते हैं। वें हमें कोई न्यूज़ रिपोर्टर की तरह लगते हैं। उन्हें एक इनफॉर्मेशन यहाँ से वहाँ पहुंचानी ही होती है।
4) जिनका जीवन लक्ष्य ही हमारी शादी करवाना होता है
एक उम्र के बाद जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, स्पेशली लड़कियां तब कई बार उनके रिलेटिव्स उनके घर आकर बस उनकी शादी की ही बात करते हैं। उनके माता-पिता को उनके लिए लड़का ढूंढने को बोलते हैं। "कोई लड़का मिला", "हमने इसके लिए लड़का देख रखा है", "फालना -धिमकाना का लड़का अच्छा है", पता नहीं और क्या - क्या कहते हैं।
5) जो सिर्फ अपने बच्चों की ही तारीफ करते हैं
कुछ रिलेटिव ऐसे भी होते हैं जो सिर्फ एग्जाम के रिजल्ट आने पर फोन करते हैं। खुद के बच्चों के अच्छे मार्क्स आने पर दूसरों को उनके बारे में बताते रहते हैं। दूसरों को कम अंक लाने पर कई बार इनडायरेक्ट रूप से ताने भी मारते हैं। आजकल सोशल मीडिया के ज़माने में वे ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर अपने बच्चों की तारीफों के पुल ही बांधते रहते हैं। रिश्तेदार के प्रकार
तरह के रिलेटिव्स