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Weird Customs: 5 बातें जिन्हें इंडियन सोसाइटी को आज कस्टम नहीं बुलाना चाहिए

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Swati Bundela
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1. दामाद के पैर धोना


इंडियन सोसाइटी का आज भी ये नियम है कि बेटी के शादी वाले दिन से लेकर जब तक हो सके, पेरेंट्स अपने दामाद के पैर खुद धोते हैं। जहाँ एक ओर ये आज भी सोसाइटी में बिछे हुए इनक्वॉलिटी को बयां करता है वहीं दूसरी तरफ इसके कारण बड़े-बुजुर्गों का अपमान भी होता है। इसके थ्रू एक लड़की को ये समझाया जाता है कि उसकी "रिस्पांसिबिलिटी" उठाने वाले इंसान की "सेवा" करनी कितनी ज़रूरी है। ये कस्टम अगर जल्द ख़त्म नहीं हुआ तो समाज से इनक्वॉलिटी कभी जा ही नहीं पायेगी।
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2. पति के पैर छूना


आपने भी ये कभी ना कभी तो अपने आस-पास ये ज़रूर देखा होगा कि महिलाएं अपने पति के पैर छूती हैं। इस कस्टम का इसलिए कोई मायने-मतलब नहीं बनता है क्योंकि शादी तो दो इक्वल लोगों के बीच होती है ना फिर पति को "अपरहैंड" कैसे मिल जाता है। लेकिन आज भी हम कई फेस्टिवल्स में महिलाओं को ऐसा करते हुए देख सकते हैं। ये कस्टम सॉईटी की वहीं पुरानी सोच का एक्सटेंशन है कि पति भगवन होता है।
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3. बिना किसी शर्म के दहेज़ का लेन-देन


आज भी जिस तरह सोसाइटी में
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दहेज़ का लेन-देन चलता है, ये समझना बहुत मुश्किल हो गया कि वाकई सोसाइटी में एड्यूकेटेड लोग बढे हैं भी या नहीं। दहेज़ को आज भी किसी भी शादी को फ़िनलाईज़ करने का सबसे इम्पोर्टेन्ट फैक्टर माना जाता है। आज भी उसी शान से लड़के वाले अपने बेटे को दहेज़ के नाम पर सबसे ज़्यादा रुपियों के लिए बेच देते हैं। फिर चाहे सरकार कितने भी कानून लगा दें, दहेज़ प्रथा के अंत की अभी भी कुछ उम्मीद नहीं की जा सकती है।

4. पति के लिए फ़ास्ट रखना

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हमारी सोसाइटी में किसी के मेडिकल हिस्ट्री को देखने की ज़रूरत नहीं है, सिर्फ पत्नी के बार-बार फ़ास्ट रखने से पति की उम्र बढ़ जायेगी। सोसाइटी आज भी इस घटिया सोच से आगे नहीं बढ़ पाया है और आज भी महिलाएं इस रिचुअल का पालन करती हैं। किसी और की उम्र बढ़ाने के लिए किसी और का फास्टिंग ऑब्ज़र्व करना अगर अजीब नहीं है तो क्या है?

5. महिलाओं का पूरे घर के बाद खाना खाना

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कई घरों में आज भी ये मान्यता है कि महिलाओं को घर के सभी सदस्यों के बाद ही खाना खाना चाहिए। इस कस्टम का जन्म इस बिलीफ पर हुआ है कि मर्द घर का "ब्रेडविनर" होता है और इसलिए उसकी हर इच्छा का पालन होना ज़रूरी है और वहीं महिलाएं दिनभर में ऐसा भी कौन सा काम करती हैं जो उन्हें अपने पसंद का खाना बनाने या खाने का हक़ हो। चाहे परिस्थिति कितनी भी गंभीर क्यों ना हो जाए इस कस्टम में ज़्यादा बदलाव अक्कपेट नहीं किया जाता है और अगर कोई इसके खिलाफ कुछ कहे तो उसे बड़ों से बदतमीज़ी के लिए सुनाया जाता है।
#फेमिनिज्म सोसाइटी
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