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'एक ही तो थप्पड़ है, एडजस्ट कर लो': डोमेस्टिक वायलेंस में कोई एडजस्टमेंट न करें

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Swati Bundela
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डोमेस्टिक वोइलेंस के खिलाफ एक्शन: तापसी पन्नू की फिल्म 'थप्पड़' तो सबको याद होगी। फिल्म में महिलाओं से जुडी एक गंभीर समस्या को दिखाया गया था। आज हम बात करे रहें हैं, महिलाओं के ऊपर हो रहें अत्याचार और घरेलू हिंसा की। इंडिया में वैसे तो घरेलू हिंसा के खिलाफ कई सज़ा बना दी गयी है, लेकिन फिर भी इस समाज में हर दिन कोई न कोई महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती रहती है। 

बचपन से सिखाया जाता है एडजस्ट करना

हमेशा से ही महिलाओं को अपने खिलाफ हो रहे अत्याचार को उनकी किस्मत बता कर छुओ रह जाने की हिदायत दी जाती है। दरअसल, चुप रहना और घरेलू हिंसा के खिलाफ कोई आवाज़ न उठाना, अपने-आप में एक जुर्म है। बचपन से ही लड़कियों को बात दिया जाता है कि शादी के बाद जीवन में हर बदलाव को एक्सेप्ट करलेना है। लेकिन खुद को किसी के लिए बदल लेना कहा तक सही है? क्या शादी में औरत का वजूद खो जाना, कोई बड़ी बात नहीं?

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'एक ही तो थप्पड़ है, एडजस्ट कर लो'

डोमेस्टिक वोइलेंस, इंडिया में सबसे ज्यादा महिलाओं की मौत घरेलू हिंसा से होती है। चाहे दहेज़ के लिए बहुओं को जला देना या ससुराल में मिल रही मानसिक प्रताड़ना और यातना से महिला का सुसाइड। कहीं न कहीं ये सब की शुरुआत एक 'थप्पड़' से होती है। तापसी की फिल्म में भी महिलाओं के समाज को देखने के इस नज़रिये को बदलने की कोशिश की गई है।

डोमेस्टिक वायलेंस में कोई एडजस्टमेंट न करें

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कई बार घर की बड़ी-बूढी महिलाओं को कहते सुना होगा- "एक ही तो थप्पड़ है, एडजस्ट करलो"। दरअसल, असली समस्या की जड़ है, हर गलत चीज़ के खिलाफ एडजस्ट करलेना। शादी के बाद नए घर में एडजस्ट होना हो या नयी फॅमिली में खुद को शामिल करने की जद्दोजहद हो, पति के हिसाब से खुद की पसंद न<असंद को बदललेना हो या ससुराल में कपड़ों से एडजस्टमेंट करना हो।

महिलाएं हर जगह खुद को सिचुएशन के हिसाब से ढलती रहती हैं। लेकिन बात जब मार-पिट या आत्मसम्मान की आये तो उसमे एडजस्ट करना बेवकूफी है। थप्पड़ एक हो या दो, अपमान एक लाइन में हो या माँ हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। महिलाओं को किसी भी हाल में गलत के लिए एडजस्ट करने की कोई जरुरत नहीं।

एडजस्टमेंट नहीं, इंडिपेंडेंट होना है जरुरी

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शादी में महिलाओं को हर तरह से खुद को एडजस्ट करना पड़ता है। लेकिन अब जमाना काफी बदल चूका है। ये जान लेना बेहद जरूरी है कि शादी एडजस्टमेंट से नहीं बल्कि सपोर्ट से चलती है। घरेलु हिंसा का एक और कारण ये भी है कि जब महिला इंडिपेंडेंट न होकर पूरी तरह से अपने पति और ससुराल की ज़िम्मेदारी बन जाती है तो ऐसे में उसका घर में कोई महत्व नहीं रह जाता। इसीलिए खुद को अपनी ही नज़रों में गिराने से बेहतर है, कोशिश करके गिरना। अगर महिलाएं घरेलू हिंसा के खिलाफ एक कदम भी बढ़ाएं तो सरकार और प्रशासन खुद आगे बढ़ पर उनका साथ देगा।

  



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