Housewives Suicide 2020 Data: COVID-19 महामारी के प्रकोप ने भारत में संक्रमण के कारण कई लोगों की जान ले ली, लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 में कई महिलाओं ने, खास कर हाउसवाइव्स ने आत्महत्या किया है। हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में 1.53 लाख लोगों की मौत आत्महत्या से हुई, जो 2019 की तुलना में 10 % ज्यादा है। छात्र सबसे कमजोर वर्ग थे क्योंकि 2019 से 21.20 प्रतिशत की बढ़त आत्महत्या के रेट में दिखाई देती है। बिजनेसमैन और नौकरीपेशा लोगों के आत्महत्या के मामलों में 16.50 प्रतिशत और डेली सैलरी वालों में 15.67 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।बढ़त देखि गयी है।
Housewives Suicide 2020 Data: पिछले 2020 में करीब 14% ज्यादा हाउसवाइफ ने आत्महत्या का रास्ता चुना
हाउसवाइफ की आत्महत्या के मामले 2020 के आंकड़ों में काफी हाईलाइट हुए। कोरोना महामारी के बीच, जहाँ एक और लोग संक्रमण से मारे जा रहे थे वहीं हताशा निराशा ने कई लोगों को आत्महत्या के लिए भी मजबूर कर दिया। इसमें सबसे ज्यादा रेट महिलाओं और वो भी घरेलु महिलाओं की संख्या ज्यादा है, जिन्होंने आत्महत्या का रास्ता चुना।
वर्ष 2019 की तुलना में, महामारी के दौरान 14.6 प्रतिशत अधिक गृहणियों (Housewife) ने अपना जीवन समाप्त कर लिया। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 22,372 गृहणियों की आत्महत्या से मौत हुई है। आखिर एक साल में अचानक हाउसवाइफ के आत्महत्या मामले में इतनी बढ़ता का पता तो केवल मामला-दर-मामला विश्लेषण द्वारा निर्धारित किया जा सकता है, लेकिन हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि यह एक ऐसा समय था जब दुनिया के अधिकांश लोग अपने घरों में कैद थे।
ऐसी हालत में कई केसेस सुनने में आये जब महिलाओं से घरेलु हिंसा में बढ़त हुई। शायद इसका एक बड़ा कारण ये भी हो सकता है कि महामारी के दौरान सभी का घरों में रहने के कारण महिलाओं पर हिंसा और भावनात्मक और शारीरिक हमलों में वृद्धि हुई, जो उनके आत्महत्या कि वजह बना।
आखिर क्या हो सकती है आत्महत्या में बढ़ोत्तरी की वजह
2018 में लैंसेट की एक रिपोर्ट से पता चला है कि कम उम्र में माँ बनना, कम उम्र में शादी, घरेलू हिंसा, आर्थिक निर्भरता और कम सामाजिक स्थिति ने कई महिला गृहिणियों को अपना जीवन समाप्त करने के लिए प्रेरित किया है। महिलाओं के डिप्रेशन में जाने के कई कारणों में दहेज, प्रताड़ना और अनचाही शादियां भी शामिल हैं।
क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक और एक नामचीन लेखक; डॉ प्रेरणा कोहली ने इस मामले के बारे में शी द पीपल से बात की और कहा कि अक्सर महिलाएं पोस्टपार्टम (प्रेगनेंसी के बाद) डिप्रेशन और प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर से गुजरती हैं, जो अक्सर उनके घरवालों द्वारा इग्नोर कर दिया जाता है। महिलाओं को चाहिए की वो प्रेगनेंसी के बाद भी खुद का उतना ही ख्याल रखें जितना प्रेगनेंसी के दौरान रखा करती थीं।
डॉ. कोहली ने कहा, ''मेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर या पोस्टपार्टम डिप्रेशन उतनी ही गंभीर समस्या है, जितनी कि मेजर डिप्रेशन। डिप्रेशन में आत्महत्या के खतरे और बढ़ जाते हैं, इसीलिए हमें किसी भी तरह का कोई चांस नहीं लेना चाहिए।"
कई बार महिलाओं के लिए हालत ही इतने दूभर बना दिए जाते हैं कि वे आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाती हैं। महिलाओं में आत्महत्या की बढ़ती संख्या में इस संकट को अपने सबसे छोटे रूप में देखा जा सकता है और इसकी ओर शायद ही ध्यान दिया जाता है। सवाल यह है कि हम गृहणियों को कैसे सुरक्षित महसूस कराएंगे? महिलाओं को उनके जीवन के मूल्य को देखने में मदद करने के लिए राज्य या हमें एक समाज के रूप में क्या उपाय करने चाहिए?