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Dear Society... अगर आपको लड़कियों के ब्लाउज़ पहनने से कोई परेशानी नहीं है तो क्रॉप टॉप से क्यों?

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Swati Bundela
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कब बदलेगी सोसाइटी की सोच अन्धविश्वाश की भी कोई सीमा होती है, मगर सारी सीमाओं को पार कर हर परीस्तिथि में अपने अनुसार नियम बदलने वाली हमारी डिअर सोसाइटी कभी बाज नहीं आती। सोसाइटी ने बहुत सारी रेखाएं बनाई है, जो केवल इनकी सहूलियत को स्वीकारती है बाकी किसी और के वयक्तित्व की इन्हे कोई परवह नहीं, इनकी कड़वी बातों से बचने के लिए लडकियां बेशक खुदको चार दीवारी में कहीं कैद करले, उन्हें तब भी ज़रा सी शर्म नहीं आएगी । इसी सोसाइटी का हिस्सा होके वह हमारी कहीं हर बात, ज़िन्दगी के तौर तरीको पर और हर पहनावे पर यूँ सवाल करेंगे मानो उनका जन्मसिद्ध अधिकार हो सवाल करना।





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ब्लाउज़ पहनने से कोई परेशानी नहीं है तो क्रॉप टॉप से क्यों?

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घर पर और बाहर भी लड़को को शर्ट पहनना या नहीं पहनना सब उनकी मर्ज़ी से होता है, फिर क्यों लड़कियों को क्रॉप टॉप तक पहनने के लिए इज़्ज़ाजत मांगनी पड़ती है पर अगर लडकियां कुछ ऐसा पहने या न पहने अपनी मर्ज़ी से ये सोसाइटी स्लट शेमिंग करने से पीछे नहीं हटती। 

लड़को के लिए बॉडी हेयर बिलकुल नार्मल है नेचुरल है मगर लड़कियों के बॉडी हेयर्स पर लोग क्यों बिना मांगी सलहा देते है ?उन्हें वैक्स या शेव करवाने के लिए कहते है।

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बच्चे की ज़िम्मेदारी सिर्फ माँ की ही क्यों हो ?कब बदलेगी सोसाइटी की सोच ?



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माँ घर बच्चो को ख्याल रखे उनकी छोटी से बड़ी ज़रूरतें पूरी करें तब क्यों उनका ये फ़र्ज़ है उन्होंने जन्म दिया है कहकर उनका सब किया भुला दिया जाता है मगर जब पिता बच्चे का ख्याल रखें सारी सोसाइटी ताली बजाने आ जाती है। जब बच्चा दोनों का है तो सिर्फ ज़िम्मेदारी  मेरी अकेले की कैसे हुई?

बच्चो के स्कूल होमवर्क से लेकर उनके कॉम्पेटेशन तक सब माँ ही करें, घर भी माँ ही देखे, बाहर का सारा काम भी माँ करें और यहीं नहीं ये सब काम करने के बाद सोसाइटी के ताने भी सुने ? मगर क्यों ? क्या हमारा मन नहीं करता कभी छुट्टी लेने का हर कामो से ? कभी सोचा है कितना मुश्किल होता है एक साथ इतने सारे काम अकेले करना। नहीं, सोचोगे भी कैसे ? पूरा दिन मेरी खामियां निकालने के बाद वक़्त नहीं मिलता होगा। 









कैसे बदलेगी ये सोच सोसाइटी की?









सारे काम काम लड़कियों के कंधो पर डालकर ये सारी आज़ादियाँ क्या सोचकर लड़को के देते है। सोसाइटी बनती है समानता से, ना की फ़र्क करने से। जबतक सोसाइटी दोनों को बराबर का अधिकार नहीं दे सकती तब तक उन्हें कोई उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए की सारा काम महिला करें। कब बदलेगी सोसाइटी की सोच कब बदलेगी सोसाइटी की सोच

सोसाइटी सबसे मिलकर बनती है महिला,पुरुष और lgbtq सब बनाते है अपने सहयोग से इससे संतुलित। सभी कामो को बराबर बाटकर हमे बनाना चाहिए सोसाइटी को जेंडर इक्वल। 









सोसाइटी ओपिनियन
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