देश में सुसाइड रेट में बढ़ोत्तरी: 11 सितम्बर को तमिलनाडु में एक छात्रा ने ख़ुदकुशी करली। पिछले महीने भी मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम NEET की परीक्षा के प्रेशर से कई शहरों में स्टूडेंट्स के सुसाइड करने के मामले दर्ज किये गए। कोरोना महामारी के दौरान 15-24 साल की उम्र के बीच के एडल्ट्स, खास कर स्टूडेंट्स में आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। इसके पीछे इस उम्र के युवाओं में अकेलापन, करियर को लेकर चिंता सबसे बड़ी वजह मालूम होती हैं।
देश में सुसाइड रेट में बढ़ोत्तरी: डिप्रेशन, एंग्जायटी और टेंशन है वजह
पुरे देश में सुसाइड की रोकथाम के लिए कई प्रोजेक्ट्स चलाये जा रहें हैं और हमारे देश में भी सुसाइड के लगातार बढ़ते मामलों में सरकार अवेयरनेस प्रोग्राम के जरिये जल्द से जल्द इस मुश्किल की घडी को ख़त्म कर देना चाहती है। एक स्टडी के अनुसार हमारे देश में कुल आबादी का 37 परसेंट हर साल आत्महत्या के रास्ते को अपनाता है। सुसाइड करने वालों में हर 5 में से 2 लड़कियां या महिलाएं होती हैं।
बहरहाल, देखा जाये तो स्टडी केवल उन्हीं आंकड़ों की है जिनके मामले दर्ज किये जाते हैं, वार्ना हमारे देश में हज़ारों सुसाइड के मामलों को घर के अंदर ही दबा दिया जाता है। भारत में भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत, आत्महत्या के प्रयास को दंडनीय अपराध मन गया है। शायद इसकी वजह से आधे से ज्यादा केस कभी दर्ज ही नहीं किये जाते और न ही उन मामलों की कोई जांच हो पाती है।
गल्फ न्यूज में छपी रिपोर्ट में, केरल की लोकल मीडिया के आंकड़े को प्रकाशित किया गया। जिससे पता चला कि केरल में पिछले तीन महीनों में आत्महत्या से कम से कम 30 मौतों की रिपोर्ट की गई है। वहीं दिल्ली में कोविड रोगियों का इलाज करने वाले एक डॉक्टर ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान प्रेशर और एंग्जायटी में खुद को मार डाला। कुछ ऐसे ही हालात गुजरात के देखने को मिले, जहाँ एक महिला और उसके दो बेटों ने अपने पति के कोरोना से मौत के बाद सुसाइड कर लिया था।
ये एक मेन्टल हेल्थ प्रॉब्लम है और भारत में लगातार सुसाइड के मामलों में बढ़ोत्तरी के लिए सरकार को कुछ सेहत कदम उठाने की जरुरत है।