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हमारे भारत में पब्लिक प्लेस पर ब्रेस्टफीडिंग भी कहीं ना कहीं बाकी सारे टॉपिक्स की तरह एक टैबू की तरह देखी जाती है। महिलाओं को पब्लिक जगह पर ब्रेस्टफीडिंग करने के काफी शर्मिंदा महसूस करवाया जाता है। पर क्या भारत में पब्लिक में ब्रेस्टफीडिंग कराने के लिए महिलाओं को सचमुच शर्मिंदा महसूस करने की जरूरत है ?
भारत में पब्लिक में ब्रेस्टफीडिंग को टैबू क्यों माना जाता है ?
भारत में पब्लिक में ब्रेस्टफीडिंग करना अभी भी महिलाओं के लिए टाइम ही माना जाता है। कुछ सर्वे के अनुसार यह कहा जाता है कि भारत में सिर्फ 6% महिलाएं हैं अपने बच्चों को आरामदायक परिस्थिति में पब्लिक में ब्रेस्टफीड कर पाती हैं उसके अलावा कहीं ना कहीं सभी महिलाओं को पब्लिक में प्रस्तुत करने के लिए काफी शर्मिंदा महसूस होता है।
पब्लिक में ब्रेस्टफीडिंग को गलत नजर से देखने और एक टैबू समझने का मुख्य कारण कहीं ना कहीं हमारे आसपास ब्रेस्ट को ओवर सेक्सुअलाइज करना भी होता है।
कई रिपोर्ट से सर्वे यह बताते हैं कि मीडिया और टीवी एड्स में महिलाओं को एक वस्तु की तरह दिखाया जाता है जिस कारण मुख्यतः महिलाएं सोचती हैं कि पब्लिक में बेस्ट फिट करने से उनकी ब्रेस्ट को गलत नजर से देखा जाएगा। यह परेशानी शहरी इलाकों में बहुत ज्यादा है क्योंकि गांव के इलाकों में ब्रेस्टफीडिंग कहीं ना कहीं काफी नॉर्मल माना जाता है और उससे जुड़ी कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं की जाती है।
हाल ही में सेलिना जेटली को उनकी ब्रेस्टफीडिंग फोटो के लिए ट्रोल किया गया था
अभिनेत्री सेलिना जेटली ने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम पोस्ट पर 9 साल पुरानी अपनी ब्रेस्ट फीडिंग फोटो को डालते हुए अपने कैप्शन में बताया कि किस तरह उन्हें इस ब्रेस्टफीड फोटो के लिए लोगों द्वारा रोल किया गया और भला बुरा कहा गया।
उन्होंने बताया, "उस वक्त मैं और मेरे 1 महीने के जुड़वा बच्चे बहुत ही इंजॉय कर रहे थे। दुबई के एक अच्छे दिन पर मैं अपने c-section चाइल्डबर्थ से रिकवर कर रही थी और मेरे बच्चे हवा में ऐसे ही अपने पैर मार रहे थे। मुझे कभी समझ नहीं आया कि मुझे ट्रोल क्यों किया गया। अगर आपका वजन ज्यादा है तो आपको फोन किया जाता है अगर आप अच्छे लग रहे हैं तो आपको रोल किया जाता है आपके बच्चे किस तरह से फ्री फील कर रहे तो उस पर आपको चाइल्ड नेगलेक्ट कहा जाता है और ये सब गलत है।"
"इससे पहले कि हम किसी को उनकी पिक्चर के ऊपर जज करना शुरू करें हमें जान लेना चाहिए कि इसके पीछे बहुत सारी कहानियां हो सकती हैं और यह इंपरफेक्ट भी हो सकते हैं। उस समय मैं इन सब से खुद को डिस्टिक नहीं करना चाहती थी क्योंकि यह मेरा पहला मदरहुड था और मैं इस दिन को याद करके अपनी अच्छी मेमोरीज को ही याद करना चाहती हूं। मैं उम्मीद करती हूं कि लोग समझेंगे कि दुनिया में परफेक्ट मदर बनने का कोई रास्ता नहीं होता।", सेलिना ने आगे कैप्शन में लिखा।
ब्रेस्टफीडिंग को कहीं ना कहीं अभी भी एक टैबू की तरह देखा जाता है जबकि हम सभी को इससे बाहर निकलने की जरूरत है ताकि हर मां अपने बच्चे को ब्रेस्टफीड करने के लिए फ्री महसूस करें।