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क्या सिन्दूर ही है शादीशुदा औरतों की पहचान ?

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Swati Bundela
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भारतीय विवाह में सिन्दूर एक बहुत ही पवित्र चीज़ मानी गई है। "सिन्दूर" शब्द सुनते ही हमारे आखों के सामने एक शादीशुदा महिला की मांग में सिन्दूर भरी तस्वीर आती है। क्या किसी भी औरत के शदीशुदा होने की पहचान उसके सिन्दूर से होनी चाहिए ? क्या किसी भी औरत का उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है ? क्या शादी के बाद अपने पति के नाम का सिन्दूर ही उसकी पहचान बन कर रह जाता है ? आज हम इन्ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे। 

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क्या सिन्दूर ही है शादीशुदा औरतों की पहचान ?

हजारों-हजार वर्षों से यह रंग विवाहित स्त्री की पहचान और उसके सामाजिक रुतबे का पर्याय बना हुआ है। एक दौर ऐसा भी आया, जब इसे दकियानूसी और आउटडेटेड मान लिया गया, जिसे सिर्फ रीति-रिवाज मानने वाली स्त्रियां ही लगाती हैं, लेकिन देखा जाए तो इसका चलन कम जरूर हुआ था, मगर खत्म कभी नहीं हुआ।

आखिर शादीशुदा महिला के लिए सिन्दूर लगाना जरुरी क्यों 

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सिंदूर लगाने या सिंदूरदान का इतिहास लगभग पांच हजार साल पहले का माना जाता है। धार्मिक और पौराणिक कथाओं में भी इसका वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार देवी माता पार्वती और मां सीता भी सिंदूर से मांग भरती थीं। ऐसा कहा जाता है कि पति को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए सिंदूर जरूरी है।सिन्दूर को पति की लम्बी उम्र का सूचक भी माना गया है। विवाहित  महिलाएं मांग में सिंदूर भरती हैं, ताकि उनके घर में लक्ष्मी का वास हो और सुख-समृद्धि आए। 

पुराणों के इन तथ्यों से सिन्दूर की अहमियत का पता चलता है। लोगों का मानना है कि शादीशुदा महिला के लिए सिन्दूर बहुत अहम है। लेकिन सवाल यह है कि क्या अपने पति की लम्बी उम्र और उसको बुरी नज़र से बचने के लिए कोई महिला अपने अस्तित्व को दावं पर लगा सकती है। 

सिन्दूर न लगाने वाली महिलाओं को समाज की सुननी पड़ती है 

यह जरुरी नहीं कि अगर आप की शादी हो चुकी है तो आपको सिन्दूर लगाना ही पड़ेगा। यह पूरी तरह से किसी भी महिला का फैसला होता है कि वह किस तरह के कपडे पहने या सिन्दूर लगाए या नहीं। याद रखें कि सिन्दूर सिर्फ महिला के शादीशुदा जीवन की एक खूबसूरत निशानी हो जो पति-पत्नी के मध्य संबंधों को दिखती है। सिन्दूर से किसी भी महिला की कोई पहचान नहीं बनती। समाज के इस दकियानूसी सोच को बदलना बहुत जरुरी है।  

सिन्दूर का वैज्ञानिक गुण 

सिन्दूर भले ही किस महिला से उसक आस्तित्व नहीं छीन सकता। लेकिन ऐसा भी नहीं कि सिन्दूरलगने का रिवाज़ में कोई खोट हो। दरअसल सिन्दूर को मांग में भरने के कई वैज्ञानिक फायदे भी सामने आये हैं। सिन्दूर का संबंध मन और शरीर से है। शरीर के जिस हिस्से यानी सिर पर सिंदूर लगाया जाता है, वह बहुत ही कोमल होता है। इस स्थान को 'ब्रह्मरंध्र' कहते हैं। सिंदूर में पारा होता है यानि मरकरी, जो एक दवा का काम करता है। यह ब्लडप्रेशर को नियंत्रण में रखता है, जिससे तनाव और अनिद्रा दूर भागते हैं। साथ ही यह चेहरे पर झुर्रियां भी नहीं पड़ने देता है। 



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