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वियतनाम युद्ध के विरोध में हुए आंदोलन से प्रभावित हुई थी रंजना निरुला
यूनाइटेड स्टेट्स में पढ़ाई करते हुए रंजना निरुला ने पहली बार वियतनाम युद्ध के विरोध प्रदर्शन में हुए आंदोलन को देख था। शुरुवाती 70 के दशक में वो भारत वापस आयी और यहाँ भी लेफ्ट मूवमेंट से जुड़ गई। 1978 में वो CITU की फुल टाइम वर्किंग सदस्य बन गई। CITU के महासचिव ने उन्हें याद करते हुए बताया की उन्होनें वर्किंग क्लास महिलाओं और फैक्ट्री वर्कर्स के साथ फरीदाबाद और दक्षिण दिल्ली में बहुत काम किया।
वर्किंग महिलाओं के लिए आवाज़ उठाती रही रंजना निरुला
रंजना निरुला आल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन (AIDWA) की संस्थापकों ने से एक थी। इसके साथ ही वो दिल्ली स्टेट समिति ऑफ़ CPI(M) की भी सदस्या थी। वो वर्किंग संपादक भी थी पत्रिका "द वॉइस ऑफ़ वर्किंग वीमेन" की।
आल इंडिया कोऑर्डीनेशन की संयोजक बनी
2009 में जब CITU ने आल इंडिया कोऑर्डीनेशन समिति बनायीं आशा कर्मियों की तो सवो इसकी पहली संयोजक बनी। CITU की राष्ट्रीय महासचिव ने बतया की निरुला ने 1970 के ज़माने में वर्किंग महिलाओं के मुद्दों को उठाना शुरू किया जो उस समय कोई नहीं सोचता था। बैंकों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय का मुद्दा उन्होनें सबसे पहले उठाया था। उनको याद करते हुए महासचिव ने बोला की वो बहुत केयरिंग और अपप्रोचेबल थी और साथ ही साथ बहुत क्रिटिकल भी थी।
महिलाओं के हक़ की लिए लड़ती रही
निरुला ने सारी उम्र महिलाओं के बराबरी करे हक़ की वकालत की। सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों की आलोचना भी निरुला ने हमेशा की। उनका जाना भारत के ट्रेड आंदोलन के लिए बहुत बड़ी हानि है। AIDWA की प्रेजिडेंट ने उन्हें याद करते हुए बताया की उन्होनें अपने हर काम को दृढ़ निश्चय और उत्साह से किया और हर इंसान की हमेशा मदद करती रही।