LOHRI 2022: हर त्यौहार का धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव होता है और वहीं सब धर्मो के लोगों को एकसाथ जोड़े रखता है। ऐसे ही लोहड़ी का त्यौहार है जो पतंग और डोर से सब को जोड़ देता है और पूरे आसमान को रंग बिरंगी पतंगों से भर देता है। लोहड़ी सम्पूर्ण उत्तर भारत में बहुत धूम-धाम से मनाया जाने वाला त्यौहार है पर पंजाब में इस त्यौहार की धूम अलग ही देखने को मिलती हैं। हर त्यौहार को मनाने के अलग-अलग कारण बताएं गए हैं । ऐसे ही लोहड़ी को मनाने के कुछ कारण यह है-
फसलों से जुड़ा है यह त्यौहार
लोहड़ी के अवसर पर फसल की पूजा और पारंपरिक तौर और कटाई और बुनाई की जाती है। इसीलिए यह किसानों का ख़ास पर्व है, उनकी मेहनत का फल इस दिन मिलता है। फसल के अच्छी होने पर भांगड़ा- गिद्दा आदि नाच और लोक गीत के साथ लोग अपना हर्ष- उल्लास व्यक्त करते है। गावों में लोहड़ी सार्वजनिक स्थान पर इक्कठे होकर मनाई जाती है पर कोविड के चलते इसका चलन कम हो गया है।
दूल्हा भट्टी की कहानी
लोहड़ी के अफसर पर दूल्हा भट्टी की कहानी बहुत मशहूर है। बड़े बुजर्गो के अनुसार पंजाब में एक व्यापारी लड़कियों को बेचने का धंधा करता था, दूल्हा भट्टी ने उससे लड़कियों को छुड़ाया और उनकी शादी करवाई। कुछ लोगों का मानना था कि वो डाकू था और एक गरीब घर की लड़की को बेटी बनाकर उसकी शादी करवाई। कहानी चाहे कुछ भी हो इस त्यौहार को मनाने की वजह लोगों में उसकी सचाई की भावना आज भी कायम रखना है।लोहड़ी कैसे मनाई जाती है? लोहड़ी के दिन क्या होता है ?
1. लोहड़ी की रात को गोबर के उपलों में आग लगाई जाती है और उसमे तिल, गजक, मूंगफली, रेवड़ी डाली जाती है। ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि घर का वातावरण शुद्ध होता है और शांति, सुख, समृद्धि का वास होता है।
2.जिन घरों में बच्चा होता है या नई शादी होती है वहां लोहड़ी का ख़ास महत्व होता है। उसे "पहली लोहड़ी" कहा जाता है और बहुत धूम- धाम से मनाई जाती है। रिश्तेदारों और आस- पास के लोगों को मूंगफली, गजक, रेवड़ी, तिल, पॉपकॉर्न, बांटी जाती है।
3. रात को अग्नि के फेरे लिए जाते है और सुख शांति की कामना की जाती है। इस दिन सरसों का साग, गन्ने के रस की खीर हर घर में बहुत चाव से बनती है।
4. बच्चे, लड़कियों का समूह एकत्रित होकर घरों में लोहड़ी मांगने जाते है, और बोलियाँ बोलते है। आज कल इसका चलन कम होता जा रहा है।
5.लोहड़ी पर पतंगों का विशेष महत्व है। बच्चे सुबह सुबह छत पर चढ़कर पतंग चढ़ाने चले जाते है शाम तक यह सिलसिला चलता रहता है।