Advertisment

महिलाओं को उनके गृहकार्य के लिए भुगतान मिलना चाहिए !

author-image
Swati Bundela
New Update

Advertisment

हाल ही में, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक केस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि "यह धारणा कि होम मेकर्स "काम" नहीं करती या वे घर में इकोनॉमिक वैल्यू ऐड नहीं करती हैं, एक समस्यापूर्ण विचार है जो कई वर्षों से कायम है और अब इसे दूर किया जाना चाहिए", जिसके बाद इस विषय पर कम से कम लेखों के माध्यम से तो चर्चा शुरू हुई। ऐसा नहीं है कि भारत में इस विषय पर कभी किसी ने विचार नहीं किया। किया है, सवाल भी खड़े किये हैं लेकिन ये मुद्दा कभी महिला सशक्तिकरण की चर्चाओं के कोर में नहीं आ सका। महिलाओं के बाहर जाकर काम करने को तो एहमियत मिली पर उनके घरेलू श्रम को हमेशा ही नज़रअंदाज़ किया गया।

गृहकार्य का भुगतान क्यों मिलना चाहिए?

Advertisment

हम अक्सर ही अपने घर में पुरुषों को अपनी पत्नी से ये कहते हुए सुन लिया करते हैं कि "पैसे तो मैं कमाता हूँ, तुम तो सिर्फ़ बैठी रहती हो" और केवल पुरुष ही नहीं महिलाएँ ख़ुद भी पुरुषों को ही अपना कर्ता-धर्ता मानती हैं। जो महिलाएं अपने श्रम का हिसाब माँगती हैं, उनकी हँसी उड़ाई जाती है और ये तर्क दिया जाता है कि "तुम्हारी सभी ज़रूरतें पूरी हो तो रही हैं"। इस तर्क को मान लेना ही महिलाओं को पुरुषों के अधीन बनाता है। ज़रा सोचिये कि आप कहीं जॉब कर रहे हैं और आपको पैसे ना दिये जाएँ, पैसे तो छोड़िये आपके काम पर ध्यान भी ना दिया जाए तो आपको कैसा लगेगा? क्या आप किसी ऐसी जॉब को 'हाँ' कह सकेंगे जहाँ सैलेरी देने की बजाय आपकी "ज़रूरतें पूरी की जाएँ"? अपने हाथ में पैसें न हों तो बार-बार किसी और के आगे हाथ फैलाना पड़ता है। लगभग हर "गृह स्वामिनी" अपने ऊपर खर्च किये गए पैसों को एहसान समझती है, और इस कोशिश में लगी रहती है कि वो अपने खर्च कम से कम रखे क्योंकि भीख तो किसी को भी अच्छी नहीं लगती ना। इस वजह से महिलाएँ हर रिश्ते में ख़ुद को कम आंकती हैं, और इसी कम में गुज़ारा कर लेती हैं।

महिलाओं को अपने काम से कभी छुट्टी नहीं मिलती, खाना बनाने से लेकर बड़ों की सेवा करने तक का सारा काम महिलाओं के सर पर ही आता है। बच्चे हो जाने पर काम छोड़ना हो या नौकरी से लौटने के बाद कपड़े धोने हों, ये सब महिलाएँ ही करती हैं। US में हुई एक स्टडी के अनुसार, भारत में महिलाओं का लगभग 66% समय अनपेड वर्क करने में जाता है जबकि पुरुषों का केवल 12% समय ही घर में कामों में जाता है। फ़िर भी पुरुष बड़ी आसानी से इन चीज़ों को नज़रअंदाज़ कर पाते हैं। ऑफिस में ओवरटाइम करते वक़्त इन पुरुषों को कभी ख़्याल नहीं आता कि ये आराम से लेट तक काम कर पा रहे हैं क्योंकि इनके बच्चों को संभालने के लिए घर पर एक पत्नी है। ये ऑफिस से लौट कर टीवी देखने में इतने मगन हो जाते हैं कि इन्हें खाना परोस कर लाती अपनी माँ या पत्नी को देख कर ध्यान ही नहीं आता कि अगर ये औरतें नहीं होतीं तो ये टीवी नहीं देख पाते।
Advertisment

सरकार को महिलाओं के भुगतान के लिए कोई नीति लानी ही चाहिए। ये कदम महिलाओं में तो आत्मविश्वास लाएगा ही, इससे पुरुषों को भी घर के काम "काम" लगेंगे और वो ख़ुद भी इन कामों में हाथ बँटाने के लिए आगे बढ़ेंगे। जब घरेलू कार्यों को इज़्ज़त मिलेगी तो किचन केवल महिलाओं का नहीं रह जाएगा। ये लैंगिक समानता की तरफ एक बेहतरीन कदम होगा और नारीवाद के लिए बड़ी जीत होगी।


Advertisment

हमारे समाज में काम का मतलब बाई डिफ़ाॅल्ट पुरुषों का काम हो जाता है।


कैरोलीन क्रियाडो पेरेज़ ने अपनी किताब 'इनविज़िबल विमेन' में लिखा है कि "काम ना करने वाली कोई महिला एग्ज़िस्ट ही नहीं करती, हाँ अपने काम के लिए कीमत न पाने वाली महिलाएँ ज़रूर एग्ज़िस्ट करती हैं"। आईलैंड में महिलाओं ने अपने काम की एहमियत बताने के लिए जब एक दिन का ब्रेक लिया था तो पूरे देश में उथल-पुथल मच गयी थी। लेकिन आज भी स्थिति बहुत बदली नहीं है, ख़ास करके प्रगतिशील देशों में। घर का हेड हमेशा पुरुष होता है क्योंकि इनके हाथ में सत्ता होती है। परिवार में सारे मुख्य फै़सले पुरुष ही लेते हैं, यहाँ तक कि कोई महिला बच्चे को जन्म देगी या गर्भपात कराएगी, ये भी पुरुष ही तय करते हैं। और भले ही इकोनॉमी इसका एक लौता कारण ना हो, पर अहम कारणों में से एक है। इसीलिए ज़रूरी है कि अब महिलाओं को उनके काम का हिसाब दिया जाए।
Advertisment

सरकार को महिलाओं के भुगतान के लिए कोई नीति लानी ही चाहिए। ये कदम महिलाओं में तो आत्मविश्वास लाएगा ही, इससे पुरुषों को भी घर के काम "काम" लगेंगे और वो ख़ुद भी इन कामों में हाथ बँटाने के लिए आगे बढ़ेंगे। जब घरेलू कार्यों को इज़्ज़त मिलेगी तो किचन केवल महिलाओं का नहीं रह जाएगा। ये लैंगिक समानता की तरफ एक बेहतरीन कदम होगा और नारीवाद के लिए बड़ी जीत होगी।

हालाँकि हमारे देश में हर स्त्री की स्थिति अलग है। कई महिलाएँ आज भी अपने काम को "प्यार" समझती हैं, और ख़ुद इसकी कीमत लगाने की बात सुन कर नाराज़ हो जाती हैं, वहीं ज़्यादातर महिलाएं अपने घर में घरेलू हिंसा ( इसका भी एक कारण अनपेड वर्क है) का शिकार होती हैं और ये भले ही महिलाओं के खिलाफ़ पितृसत्ता की साज़िश हो लेकिन सच तो यही है कि हम कितना भी चाह लें जब तक ये महिलाएँ ख़ुद इन बंधनों से आज़ाद नहीं होना चाहेंगी, कोई कुछ नहीं कर सकता। अगर कोई स्त्री आज मुफ़्त में काम करके मार खा रही है तो कल पति से पैसे लेने के लिए इससे भी ज़्यादा टॉर्चर होगी। इसलिए बहुत सारी महिलाएँ ऐसी नीति का लाभ नहीं उठाना चाहेंगी। लेकिन कमसे कम जो महिलाएँ अपने श्रम का हिसाब माँग रही हैं, उन्हें तो भुगतान मिलना ही चाहिए। एक स्त्री दूसरी स्त्री को सशक्त कर सकेगी। समय के साथ महिलाओं में चेतना जगेगी और जो स्त्रियाँ आज इसका विरोध कर रही हैं, वे अपने काम का हिसाब माँगेंगी।
Advertisment

पढ़िये: मेरे साथ घर का काम करने में तुम्हें शर्म क्यों आती है?

#फेमिनिज्म महिलाओं को गृहकार्य के लिए भुगतान मिलना चाहिए
Advertisment