Advertisment

''पितृसत्ता की पहली शिक्षा, घर से ही मिलती है" - रत्ना पाठक शाह

author-image
Swati Bundela
New Update
हमेशा-ही लड़कियों को एक तय व्यवहार करने को कहा जाता है। यह व्यवहार समाज द्वारा तय और निश्चित किया गया होता  है। व्यवहार के साथ-ही लड़कियों को अनेक तरह की पाबंदियों से भी बांध दिया जाता है। बचपन से ही लड़कियां अपने शौक, घर के कामों से जोड़ लेती है। और घर-घर खेलते हुए, एक तय साँचे में ढ़ल जाती है। लड़कियों का बचपन से ही घर-काम को शौक बना लेना, हमारे सामने एक प्रश्न-चिन्ह बना देता है। इन प्रश्न-चिन्हों का जवाब खोजने के लिए, हमने बात की अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह से।
Advertisment




रत्ना पाठक शाह भारतीय फ़िल्म एवं टेलीविज़न अभिनेत्री हैं। इनकी शादी, हिंदी सिनेमा के सबसे बेहतरीन कलाकारों में से एक नसीरुद्दीन शाह से हुईं है। रत्ना पाठक एक मशहूर कॉमिक टीवी शो साराभाई v/s साराभाई का भी हिस्सा रहीं। इनके द्वारा निभाए गए, तमाम किरदारों के कारण इन्हें लोगों से काफ़ी सराहना भी मिली। 2017 में आई इनकी एक फिल्म, लिप्स्टिक अन्डर माय बुरखा (Lipstick Under My Burkha) में ये एक बेजोड़ किरदार निभाती और कई स्टीरियोटाइप (stereotype) तोड़ती नज़र आई।
Advertisment




रत्ना पाठक शाह हमेशा-से ही मुखर रहीं हैं और कई बार इन्हें औरतों के हक व सम्मान के लिए आवाज उठाते भी देखा गया है।

Advertisment

''पितृसत्ता की पहली शिक्षा, घर से ही मिलती है" - रत्ना पाठक शाह।



लड़कियां ये काम कर सकती है और ये नहीं; सबकुछ खुद-ब-खुद कैसे तय हो जाता है, इसपर रत्ना पाठक शाह कहती है - '' पितृसत्ता की पहली शिक्षा, घर से ही मिलती है और सबकुछ वही से तय हो जाता है। अगर वो लड़की है तो उसे ऐसा व्यवहार करना है और अगर वो लड़का है तो उसे ऐसा। पर सीमाएँ सबकी तय होती है। पितृसत्ता ने हर किसी पर अपना कब्ज़ा किया है।''

Advertisment


लड़कियों को बचपन से, दी जाने वाली शिक्षा पर रत्ना आगे बताती है - ''हमने लड़कियों को उनके बचपन से ही यह समझा रखा है कि एक समय बाद तुम्हारी शादी होगी और फिर वही इंसान तुम्हारी रक्षा करेगा। यह कितनी खोंखली मानसिकता है। और सबसे अजीब बात यह है कि इस खोंखली मानसिकता के साथ हम सदियों से जी रहे है।''

पढ़िए : पितृसत्ता क्या है? कैसे लड़ सकते हैं इससे हम ?

सोसाइटी रत्ना पाठक शाह
Advertisment