सलोनी चोपड़ा एक जानी - मानी अभिनेत्री और मॉडल हैं जो हिंदी फिल्मों और टी.वी. सीरियल्स में काम करती हैं। उन्होंने अपना टेलीविजन डेब्यू ' गर्ल्स ऑन द टॉप ' नामक सीरियल से किया था। इसमें उनकी परफॉर्मेंस को बहुत सराहा भी गया था। इसके अलावा वे फ़िल्मों में बतौर अभिनेत्री और असिस्टेंट निर्देशक के रूप में भी काम कर चुकी हैं। उन्होंने एक किताब भी लिखी है जिसका शीर्षक है ' रेस्क्यूड बाय ए फेमिनिस्ट - एन इंडियन टेल ऑफ़ इक्वालिटी एंड अदर मिथ्स '।
शीदपीपल के साथ एक एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान सलोनी चोपड़ा ने ये बातें कहीं
प्रश्न 1) जब आप फिल्म इंडस्ट्री में एंटर हुई, तब अपने लुक्स या अपीयरेंस को लेकर आपको किन स्टीरियोटाइप्स का सामना करना पड़ा था?
वें बताती हैं कि जब वे पहली बार फ़िल्म इंडस्ट्री में आई थीं तब लोग उन्हें कहा करते थे की तुम नोज जॉब करा दो। नोज जॉब कराने से तुम्हारे सारे एंगल्स ठीक हो जाएंगे और तुम और खूबसूरत दिखोगी। उन्हें ये भी कहा जाता था की तुम्हारे बूब्स बहुत स्मॉल है। वे कहती हैं कि आपके नोज के लुक के कारण आपको ईजिली कास्ट नहीं किया जाता था। पर वे कहती हैं कि वे नोज जॉब नहीं करवाना चाहती। वो आपने आप में यूनिक और जैसी हैं वैसा ही रहना चाहती हैं।
प्रश्न 2) आपको क्या लगता है कि न्यूजपेपर्स और मैगजींस के मैट्रिमोनियल एड्स में बदलाव की ज़रूरत है?
वे कहती हैं की डेफिनेटली इसमें बदलाव की ज़रूरत है। सोसाइटी हमेशा ऐसी वाइफ्स चाहती हैं जो सुंदर हो ताकि जो बच्चा है वो भी सुंदर हो सके। यह एक गलत सोच है। लड़कियां हमेशा एक ऐसा पति चाहती हैं जो स्मार्ट, इंटेलेक्चुअल हो या उसकी जॉब अच्छी हो आदि। वे हमेशा एक लड़के की स्मार्टनेस को उसके लुक्स से ज्यादा अहमियत देती है। वहीं दूसरी और अगर हम लड़को को देखें तो वे हमेशा एक लड़की के लुक्स को उसके ब्रेंन से ज्यादा भाव देते हैं। हमें समाज की इस सोच को बदलना होगा। ऐसा तभी हो सकता है जब हम इस चेंज के लिए इंडिविजुअल के बजाय जो लोग पावर में हैं उन्हें ये रिस्पॉन्सिबिलिटी दें। जैसे कि इनफ्लूएंसर, एक्टर्स या ब्रांड्स आदि।
प्रश्न 3) क्या ये सब इन बातों पर निर्भर करता है कि हम किस माइंडसेट के साथ बड़े होते हैं?
सलोनी कहती हैं कि ये इस पर भी निर्भर करता है कि मैन किस माइंडसेट के साथ बड़े हुए हैं। वे कहती हैं कि कई महिलाएं इस बात से सहमत नहीं हैं पर जब बात उनके बेटों की आए तो उन्हें भी एक सुंदर, पतली, गोरी लड़की चाहिए। वे बताती हैं कि सोसाइटी का पूरा ' आइडिया ऑफ़ ब्यूटी ' ये कंसीडर करता है कि एक बार लड़की माँ बन जाए उसके बाद वो अपने आप को इन ब्यूटी स्टैंडर्ड्स से फ्री कर सकती हैं। सलोनी चोपड़ा का मानना है कि एक इंडियन सोसाइटी में हम अभी तक एक लड़की को उसके करियर, प्रोफ़ेशन, एजुकेशन, या ब्रेन के लिए नहीं सराहते हैं जो कि हमें करना चाहिए।