Bollywood Sexist Dialogues: पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय सिनेमा ने रोमांस और हैप्पी एंडिंग के नाम पर महिलाओं के ओब्जेक्टिफिकेशन को नॉर्मलाइज़ कर दिया है। कई भारतीय फिल्मों ने हमेशा से दिखाया है कि सहमति (CONSENT) सिर्फ एक मिथ है और अगर महिलाएं "नहीं" कहती हैं, तो यह बाद में "हां" में बदल जायेगा यानी लड़की की न में ही हाँ है।
ये है इंडियन सिनेमा के कुछ 'पॉपुलर' Bollywood Sexist Dialogues :
एक हाथ में गर्लफ्रेंड, एक हाथ में ट्रॉफी - स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2 (2019)
एक महिला की ट्रॉफी से तुलना करना सही है ? लेकिन इस तरह का एक बयान अब हमें लगभग चौंकाता भी नहीं है, है ना?
बूढ़ी हो या जवान, मेलोड्रामा दुनिया की सारी औरतों के खून में है- 2 स्टेट्स (2014)
जब कोई आदमी किसी चीज पर अपनी फीलिंग्स एक्सप्रेस करता है, तो वह खुद को व्यक्त कर रहा होता है। जब कोई महिला उसी तरह रियेक्ट करती है, तो उसे मेलोड्रामैटिक समझा जाता है।
प्यार से दे रहे हैं, रख लो, वरना थप्पड़ मारके भी दे सकते हैं- दबंग (2010)
फिल्म में सोनाक्षी का पैसे लेने से इंकार करने पर हीरो ये डायलॉग बोलता है। आपको लगता 'थप्पड़ मारना' जैसे डायलॉग से प्यार होता है ? ऐसे डायलॉग बिगड़े हुए लोगो को और बिगाड़ रहे है।
तू हां कर या ना कर, तू है मेरी किरण- जादू तेरी नज़र
ऐसा लगता है बॉलीवुड में "consent" शब्द की कोई एहमियत ही नहीं है। ये गाने सुन के लड़के सोचते है की लड़की की मर्ज़ी ज़रूरी ही नहीं है। अगर लड़के को कोई पसंद है तो वो लड़की के पीछे ज़बरदस्ती जा सकता है ,जबकि असल में इसके बहुत बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते है। Bollywood Sexist Dialogues Bollywood Sexist Dialogues
वो मेरी बंदी है- कबीर सिंह (2019)
इस फिल्म को देख के और इस डायलॉग ने यूथ के दिमाग में काफी बड़े पैमाने पर गलत बाते भर दी है।
अकेली लड़की खुली हुई तिजोरी की तरह होती है - जब वी मेट (2007)
हिंदी फिल्मो में महिलाओं का ओब्जेक्टिफिकेशन कब ख़त्म होगा? क्या लड़की और तिजोरी में कोई फरक नहीं है ?
शादी से पहले लड़किया सेक्स ऑब्जेक्ट होती हैं या शादी के बाद they object to sex- कम्बख्त इश्क (2009)
हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां पुरुषों को इस तरह के वाक्यों वाली स्क्रिप्ट लिखने के बारे में सोचने का भी अधिकार है।