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सिंदूर दान
ज्यादातर भारतीय शादियों में एक परंपरा जो सबसे आम है वो है सिंदूर दान की रस्म। फेरों के बाद, दूल्हा दुल्हन के माथे में सिंदूर भर देता है। यह सिंदूर दुल्हन के लिए शादी का एक स्पष्ट संकेत बन जाता है। मुझे यह परंपरा पूरी तरह से सेक्सिस्ट लगती है क्योंकि दूल्हे के शरीर पर इस तरह का कोई अंकन नहीं किया गया है और न ही दूल्हे को अपने जीवन में शादी की कोई भी निशानी को दिखाने की ज़रुरत पड़ती है , वही दुल्हन को पूरी ज़िन्दगी वो सिंदूर पहनना पड़ता है। माना जाता है की सिंदूर लगाने से पति की उम्र बढ़ती है, तो क्या पत्नी की उम्र बढ़ने के लिए पति को कुछ नहीं करना चाहिए ?
नाम बदलना
ये हर जगह होता है और बेहद आम भी है, शादी के बाद पहला नाम और सरनेम बदलना। एक व्यक्ति का नाम उसकी पहचान होता है। नाम एक ऐसा होता है जो सभी आधिकारिक दस्तावेजों पर लिखा होता है और इसको बदलना बहुत ही बड़ा कार्य हो सकता हैं। फिर भी, भारतीय शादियों में 'पवित्र नियमों' के अनुसार दुल्हन के पहले और सरनेम को बदलने की एक रस्म है। लेकिन सवाल ये हैं कि, अकेली दुल्हन ही क्यों? दूल्हा क्यों नहीं?
कन्यादान
लोग कहते हैं,दान का सबसे बड़ा रूप जो एक इंसान अपने जीवन में कर सकता हैं वो हैं उसकी खुद की बेटी का दान। कई अलग-अलग संस्कृतियों में कन्यादान की रस्म निभाई जाती हैं जो की पूरी तरह से सेक्सिस्ट हैं। पूरी रस्म बेटी को दान के रूप में देने के बारे में होती है। अब यहाँ बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या एक दुल्हन का कोई मालिक होता हैं और क्या दुल्हन कोई सामान या वास्तु होती हैं जिसे किसी को दिया जाये? एक महिला खुद में भी एक इंसान ही होती हैं और उसका खुद पे पूरा हक़ हैं, उसकी 'ownership' कोई और शादी के बाद भी नहीं ले सकता । एक महिला खुद की मालिक होती हैं, न ही उसके माता-पिता या उसके पति किसी भी तरह से दुल्हन के मालिक हैं। इसलिए, यह रिचुअल क बारे में सबको फिरसे सोचने का समय आ गया हैं।
विदाई
हर पिता का कमजोर पल उसकी बेटी की विदाई होती है। दुल्हन अपने माता-पिता का घर (मायका) को छोड़ती है और अपने पति के घर जाने के लिए तैयार किये गए गाड़ी की ओर चलती है। यह हर शादी का सामान्य 'अंत' होता है। अकेली लड़की को अपना घर क्यों छोड़ना पड़ता है, दूल्हे को क्यों नहीं करना पड़ता है? या इससे भी बेहतर कि दोनों अपने घरों को छोड़कर एक साथ क्यों नहीं रहते? भारतीय शादी की सेक्सिस्ट रस्में