क्यों सोसाइटी वर्किंग वुमन से ही सिर्फ घर संभालने की उम्मीदें रखती है? आज लगभग हर लड़की फिनांशियल इंडिपेंडेंस का मतलब समझती और इसलिए ज़्यादा से ज़्यादा लड़कियां आज वर्किंग हैं और अपने करियर में हमेशा आगे बढ़ना चाहती है। ऐसे में हर लड़की की लाइफ में सबसे बड़ी बाधा के रूप में सामने आती है शादी और इसको लेकर उनपर किया जाने वाला तरह-तरह का जजमेंट। आज भी एक लड़की के शादी के क्वालिफिकेशन लिस्ट में सोसाइटी को सबसे ज़्यादा इस बात में रूचि रहती है कि क्या लड़कियां अपने जॉब्स और करियर के साथ-साथ सही तरीके से घर संभाल पाएंगी या नहीं।
पैट्रिआर्की है इस सोच की सबस बड़ी वजह
हमारे यहां जहाँ एक तरफ लड़कों को बचपन से ये सिखाया जाता है कि उसे अपने डिसिशन्स खुद लेने चाहिए ताकि आगे जा कर वो अपने लाइफ को अच्छे से लीड कर सके वहीं दूसरी ओर लड़कियों को घर के काम समझाए जाते हैं ताकि आगे जा कर वो किसी और का घर अच्छे से संभाल पाए। इस पैट्रिआर्की की सोच के कारण ही आज भी कई घरों में एक लड़की की पढ़ाई से पहले उसके घर के कामों के स्किल्स को निखारने पर फोकस किया जाता है।
महिलाओं को पहले से ही समझा जाता आया है सॉफ्ट नेचर का
बायोलॉजिकली अगर देखा जाए तो एक आदमी और एक महिला में बहुत डिफरेंसेस होते हैं और इन्हीं का सहारा लेकर सदियों से महिलाओं को "वीकर जेंडर" घोषित कर दिया गया है। सोसाइटी आज भी इस बात को मानने में अक्षम है कि एक लड़की ना सिर्फ फिजिकली बल्कि मेंटली और इमोशनली भी एक लड़के से ज़्यादा स्ट्रांग हो सकती है। यही कारण है कि महिलाओं को हमेशा से "सॉफ्ट" समझा जाता आया है। इसलिए ये उम्मीद की जाती है कि की लड़की को हमेशा कम्फर्टेबल रहने के लिए घर के अंदर ही रहना चाहिए और घर को अच्छे से संभालना चाहिए।
ये है कम्पलीट हिपोक्रिसी
आज ज़्यादातर मेन अपने लाइफ-पार्टनर के तौर पर वर्किंग वुमन एक्सपेक्ट करते हैं क्योंकि आज के इस महंगाई के दौर में घर साथ मिलकर चलाने में ही सबको समझदारी दिखती है। लेकिन वहीं मेन जो घर के फिनान्सेस में जहाँ महिलाओं से हेल्प एक्सपेक्ट करते हैं घर के कामों में किसी तरह की मदद नहीं करते हैं और महिलाओं को घर सारा कमा खुद से करना पड़ता है क्योंकि उनके सोच की कंडीशनिंग ही इस तरह से हुई है। अब अगर ये हिपोक्रिसी नहीं है तो क्या है?
सुपरवूमन सिंड्रोम भी है एक वजह
हमारे यहां आज ऐसी कई महिलाएं हैं जो अपने घर और करियर को सही से मैनेज करने की जद्दोजहद में रोज़ लगी रहती हैं। ऐसे में वो खुद पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाती हैं और मानसिक तनाव का शिकार भी हो सकती हैं। इस बीमारी को हम "सुपरवूमन सिंड्रोम" कह सकते हैं। इस सिंड्रोम के कारण ही आज आज हर महिला से ये एक्सपेक्ट किया जाता है कि वो अपने घर को अपने जॉब के साथ मैनेज कर पाएगी। सोसाइटी इस सुपरवूमन सिंड्रोम में किसी तरह का एक्सेप्शन देखने के लिए तैयार ही नहीं है।
सोसाइटी वर्किंग वुमन
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