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आत्महत्या रोकी जा सकती है सिर्फ हमे थोड़ा सेंसिटिव होने की ज़रूरत है

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Swati Bundela
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अक्सर हम जीवन की इस भागदौड़ में कई धुंधला जाते हैं सपनो को पाने की दौड़ में ऐसे खो जाते हैं की अपनों की कीमत नहीं समझ पाते।  ऐसा ही कुछ हुआ बॉलीवुड स्टार सुशांत सिंह राजपूत के साथ।  बॉलीवुड का यह चहीता सितारा कुछ ही दिनों में जनता के दिलों पर राज करने लगा था।  अपनी मासूम सी लुक्स और कमल अदाकारी से जल्द ही उन्होंने वो मुकाम पाया जो शायद ही किसीके बस की बात होती है।  सुशांत ने अपनी लाइफ में काफी स्ट्रगल भी किया पर फिर भी उन्हें ज़िंदादिली की मिसाल माना जाता था। सुशांत सिंह राजपूत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह बात साबित हो चुकी है की उन्होंने सुसाइड किया था और उनकी मौत गला घुटने से ही हुई है। कहा जाता है की वो पिछले छह महीनो से डिप्रेशन से गुज़र रहे थे।

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कोई सोच भी नहीं सकता की बाहर से इतना ज़िंदा दिल दिखने वाला इंसान अंदर से कितना टूटा हुआ था डिप्रेशन कहने में सिर्फ एक मामूली सा शब्द है पर कोई सोच सकता है की डिप्रेशन किसी की जान भी ले सकता है ? आज सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद सारी दुनिया यह कह रही है की उन्हें अपने दोस्त और परिवार से बात करनी चाहिए थी पर क्या किसी ने सोचा की उनके पास कोई था उनसे बात करने के लिए?



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जब भी कोई सुसाइड जैसा भयानक कदम उठता है तो उसके इस एक्शन के लिए वो लोग रेस्पोंसिबल है जो शायद उसे समझना ही नहीं चाहते थे। उसने हिंट दिया होगा समझाया होगा पर अपनी ज़िन्दगी के अम्बिशन्स के आगे हमने उसे अनसुना कर दिया।

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हम सब यह कहते हैं पर अगर हम खुद पर गौर करें तो क्या हम अपने आस-पास कितने ऐसे व्यक्तियों को पहचान पाते हैं या कितने ऐसे लोगों की मदद कर पाते हैं ? हमे यह सोचना चाहिए की अपने आस -पास हमारे जो दोस्त हैं या जो हमारे चाहनेवाले हैं हम कितना उनसे  अटैच्ड रहते हैं या उनकी कितनी परवाह करते हैं।



और अगर हमारे सामने कोई खुल के आता भी है तो हम कितने अच्छे पेशेंट लिस्टनर बनते है ? नहीं हमारे पास किसी और के लिए समय ही नहीं है, पैसा कमाने की होड़ में हम इतने खो चुके हैं की हमे ध्यान नहीं रहता की इसके अलावा भी हमारी एक दुनिया है।  आज हम सब दुःख में हैं सुशांत के जाने से पर क्या हमने कभी सोचा है की अगर हम पहले से थोड़े सतर्क और जागरूक होते तो आज यह नहीं होता कोई हमारे बीच से ऐसे नहीं जाता।
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जब लोग हमारे पास होते हैं तब हमे उनकी कदर नहीं होती पर जब वो चले जाते हैं तो हम दुखी होते हैं। इस दुःख से बचने के लिए हमे अपने आस-पास की सब चीज़ों के लिए शुक्रगुज़ार होना चाहिए।



हमे अपने आस-पास के लोगो के लिए थोड़ा सेंसिटिव होने की ज़रूरत है किसी के खुलकर सामने आने को लेकर कभी मज़ाक उड़ाकर या मेम्स बनाने की बजाये उसे समझने की कोशिश करना ज़्यादा बेटर होगा। अपना केयरफ्री और सेल्फिश ऐटिटूड छोड़कर अगर हम एक दूसरे के साथ थोड़ा सेंसिटिव होकर रहने की कोशिश करेंगे तो बहुत बेटर होगा और दुनिया थोड़ी अच्छी जगह होगी रहने के लिए।
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सेहत
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