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Makar Sankranti: कुमाऊं में मकर संक्रांति पर्व है घुघुतिया त्यार

देशभर में मनाया जाने वाला पर्व मकर संक्रांति उत्तराखंड में अलग ही महत्व रखता है। कुमाऊं में इसे घुघुतिया या उत्तरायणी पर्व से मनाते हैं। आइए जाने इस फ़ीचर्ड ब्लॉग से उत्तराखंड के मकर संक्रांति पर्व उत्तरायणी को

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Prabha Joshi
14 Jan 2023
Makar Sankranti: कुमाऊं में मकर संक्रांति पर्व है घुघुतिया त्यार

कुमाऊंनी में घुघुतिया त्यार

Uttrayeni Parv Vishesh: देशभर में आज मनाया जा रहा है मकर संक्रांति त्यौहार। उत्तराखंड के कुमाऊं में मकर संक्रांति पर्व को ‘उत्तरायणी’ या ‘घुघुतिया त्यार’ कहा जाता है। यहां इसे काले कौवा त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। यह अपनी विशेषता तीन दिन तक रखता है। एक अलग ही धूम मचाता उत्तरायणी पर्व, कुमाऊं में क्या कौतुक करता है आइए जाने!

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देव भूमि की शोभा है घुघुतिया त्यार

देव भूमि उत्तराखंड के कुमाऊं संस्कृति में बहुत प्राचीन काल से उत्तरायणी पर्व को ‘कौवे’ से जोड़ा जाता रहा है। लगभग 3 दिन तक मनाए जाने वाले इस उत्सव में कौवे को विशेष रूप से भोजन दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पर कौवे का बहुत ही महत्व रहा है।

कैसे मनाते है घुघुतिया पर्व

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कुमाऊं में मकर संक्रांति पर्व को मनाने के लिए घरों में दो-तीन दिन पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। घर की महिलाएं घर को सजाना शुरू कर देती हैं। गुड़ और आटे से बने पकवान जिन्हें घुघुते कहते हैं बनाए जाते हैं। इसके साथ ही गुड़ और आटे के बने पूरी, संतरे, ढाल, तलवार आदि छोटे-छोटे मॉडल रूप में बनाए जाते हैं। फिर इन सभी को एक माला में पिरोया जाता है। 

उत्तरायणी पर्व के दूसरे दिन माताएं अपने बच्चों के गले में ये माला डालती हैं। बच्चे ख़ुशी में झूम उठते हैं। गले में माला दिखाकर बच्चे कौव्वे को जोर-जोर से बुलाते हैं, कहते—"काले कौवा काले, घुघूती माला खा ले"। यह एक प्रकार से प्राचीन परंपरा के अनुसार काले कौवा को बुलाना होता है, और उसे माला दिखाकर खाने को निमंत्रण देना होता है। इस दौरान कुछ देर तक कव्वे को निमंत्रण दे-देकर गाते हुए फिर सब बच्चे साथ में बैठकर घुघूती माला से एक एक चीज़ खाते हैं। पूरी माला कौन जल्दी खाता है—इस पर खेल खेल जाता है। यह देखने में बहुत रोचक होता है। 

इस तरह यह पर्व कुमाऊं लोक संस्कृति में एक अलग ही प्रभाव डालता है। आज भी इस उत्तरायणी पर्व को लोग इसी प्रकार घर भर में मनाते हैं। गांव से पलायन करते हुए लोग शहर में आ गए हैं, लेकिन कुमाऊं संस्कृति का प्रभाव आज भी सबके कण-कण में बसा है। आज अलग-अलग राज्यों कुमाऊंनी और गढ़वाली समाज जगह-जगह मेले आयोजित करता है और अपनी संस्कृति को दिखाता है।

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