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जब भी महिलाएं नारीवाद की ओर अपना कदम रखती है या अधिकार के लिए लड़की है तो उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिसमें से एक पितृसत्ता है, महिलाओं को अपने अधिकार के लिए लड़ने से रोकता है। वही इसके बारे में बात करने से पहले, पितृसत्ता क्या है यह जाना जरूरी है?
दरअसल पितृसत्ता एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें पुरुषों का महिलाओं पर वर्चस्व रहता है। इस व्यवस्था के कारण पुरुषों को महिलाओं से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। वही इसमें महिलाओं को पुरुषों की संपत्ति माना गया है। लेकिन क्या ऐसी विचारधारा होना सही है? जाहिर है कि नहीं, हालांकि यह भी नहीं कह सकते कि महिलाएं शक्तिहीन है उनके पास कोई अधिकार नहीं होता है। बदलते समय के साथ ऐसी विचारधारा में भी कहीं ना कहीं बदलाव आ रहा है।
बिल्कुल नहीं, हर राज्य में हर देश में हर समाज अभी भी पितृसत्ता फैली हुई है। महिलाओं को , ट्रांसजेंडर को अभी भी इस इस व्यवस्था के आगे झुकना पड़ता है। महिलाएं हर पल अलग-अलग भेदभाव के आधारों पर पितृसत्ता से रूबरू होती हैं। महिलाओं को अलग अलग तरीके से उत्पीड़न और दमन का शिकार होना पड़ता है। कहीं पर महिलाओं को आजादी नहीं होती तो कहीं पर महिलाएं हर रोज शोषण की शिकार होती हैं। यहां तक की कानून और एजुकेशन तक में पितृसत्ता को प्राथमिकता दी जाती है।
ऐसा बिल्कुल नहीं है, ऐसा कह देना गलत होगा। क्योंकि जरूरी नहीं कि सभी पुरुषों की सोच ऐसी हो। ऐसे पुरुष भी है जो औरतों के अधिकार के लिए लड़ते हैं, नारीवाद को फॉलो करते हैं। कहीं ना कहीं उन पुरुषों के वजह से भी बदलाव आ रहा है जो नारीवाद विचारधारा के कदम पर चलते हैं।
इस व्यवस्था का प्रभाव सिर्फ महिलाओं पर ही नहीं बल्कि पुरुषों पर भी पड़ता है। दरअसल यह विचारधारा पुरुषों पर अपनी मर्दानगी दिखाने का प्रेशर डाल देता है। हम सब ने यह बात सुनी होगी कि लड़की रो नहीं सकते हैं, उन्हें बचपन से ही मजबूत रहना होता है। अपनी जिंदगी खुलकर नहीं जी पाते हैं। इसीलिए पिता सकता सिर्फ औरतों के लिए नहीं बल्कि पुरुषों के लिए भी चुनौती है।
पितृसत्ता क्या है ?
दरअसल पितृसत्ता एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें पुरुषों का महिलाओं पर वर्चस्व रहता है। इस व्यवस्था के कारण पुरुषों को महिलाओं से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। वही इसमें महिलाओं को पुरुषों की संपत्ति माना गया है। लेकिन क्या ऐसी विचारधारा होना सही है? जाहिर है कि नहीं, हालांकि यह भी नहीं कह सकते कि महिलाएं शक्तिहीन है उनके पास कोई अधिकार नहीं होता है। बदलते समय के साथ ऐसी विचारधारा में भी कहीं ना कहीं बदलाव आ रहा है।
क्या पितृसत्ता का सामना हर महिला करती हैं
बिल्कुल नहीं, हर राज्य में हर देश में हर समाज अभी भी पितृसत्ता फैली हुई है। महिलाओं को , ट्रांसजेंडर को अभी भी इस इस व्यवस्था के आगे झुकना पड़ता है। महिलाएं हर पल अलग-अलग भेदभाव के आधारों पर पितृसत्ता से रूबरू होती हैं। महिलाओं को अलग अलग तरीके से उत्पीड़न और दमन का शिकार होना पड़ता है। कहीं पर महिलाओं को आजादी नहीं होती तो कहीं पर महिलाएं हर रोज शोषण की शिकार होती हैं। यहां तक की कानून और एजुकेशन तक में पितृसत्ता को प्राथमिकता दी जाती है।
क्या सत्ता का मतलब है कि सारे पुरुष गलत है
ऐसा बिल्कुल नहीं है, ऐसा कह देना गलत होगा। क्योंकि जरूरी नहीं कि सभी पुरुषों की सोच ऐसी हो। ऐसे पुरुष भी है जो औरतों के अधिकार के लिए लड़ते हैं, नारीवाद को फॉलो करते हैं। कहीं ना कहीं उन पुरुषों के वजह से भी बदलाव आ रहा है जो नारीवाद विचारधारा के कदम पर चलते हैं।
क्या इस विचारधारा का प्रभाव पुरुषों पर भी पड़ता है?
इस व्यवस्था का प्रभाव सिर्फ महिलाओं पर ही नहीं बल्कि पुरुषों पर भी पड़ता है। दरअसल यह विचारधारा पुरुषों पर अपनी मर्दानगी दिखाने का प्रेशर डाल देता है। हम सब ने यह बात सुनी होगी कि लड़की रो नहीं सकते हैं, उन्हें बचपन से ही मजबूत रहना होता है। अपनी जिंदगी खुलकर नहीं जी पाते हैं। इसीलिए पिता सकता सिर्फ औरतों के लिए नहीं बल्कि पुरुषों के लिए भी चुनौती है।