/hindi/media/post_banners/BbNFwJvrorp21yRVuCil.jpg)
समाज को पेरेंट्स के इंसानी अस्तित्व से जाने क्या समस्या है, जो उन्हें अपने बच्चों का भगवान बना देता है। पैदा होने के साथ ही हमारे मन में बड़ों(खास कर पेरेंट्स) की इज़्ज़त करने का कांसेप्ट ठूस दिया जाता है और इस मायाजाल में बच्चे और पेरेंट्स दोनों बराबर फँसे हुए हैं। दोनों में से कोई भी साधारण जीवन नहीं जी पाता। पेरेंट्स को सब कुछ भगवान बनके करना पड़ता है इसलिए वो जो भी करते हैं केवल अपने बच्चों के लिए करते हैं। उनकी अपनी एक ज़िंदगी है जिसमें उन्हें गलतियाँ करने का और अपने बारे में सोचने का हक है, ये तो कभी उनके खयाल में ही नहीं आता और बेचारे बच्चे पेरेंट्स की कही हुई हर बात पत्थर की लकीर की तरह मानते हैं।
आपके सारे फंडामेंटल राइट्स घर के अंदर कदम रखते ही छिन जाते हैं। हज़ारों की भीड़ को प्राइवेसी पर लेक्चर देना, मम्मी को कमरे में नॉक करके आने के लिए बोलने से आसान है। बचपन से आपके हर काम में पैरेंट्स इतनी दखल देते हैं कि आप कभी भी खुद को पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं देख पाते। आप बालिग होकर भी नाबालिग ही रह जाते हैं। लगभग एक तिहाई उम्र इस तरह से रहने के बाद जब आप अपनी ज़िंदगी का कोई बड़ा फैसला बिना पेरेंट्स को इन्वॉल्व किये लेते हैं तो आप पूरी तरह से कांफिडेंट नहीं हो पाते।
भारत में बच्चों पर हाथ उठाना इतना कॉमन है कि इसे रोकना तो दूर, लोग इसे जस्टिफ़ाय भी करते हैं। माँ-बाप की मार भी बच्चों को प्रसाद की तरह खाना पड़ता है। इससे बच्चों की मानसिक स्थिति पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ सकता है। कई बच्चे इतना डर जाते हैं कि वो पेरेंट्स की किसी भी बात पर कभी सवाल नहीं उठाते और अपनी परेशानियों को छुपाना शुरू कर देते हैं। कितने बच्चे अपने साथ हुए छेड़-छाड़ की घटना पेरेंट्स से छुपाते हैं। बच्चों से उनका बचपना छिन जाता है।
समाज आपकी ऐसी परवरिश करता है कि आप गलती से भी अपने पेरेंट्स को दुखी करने का नहीं सोच सकते इसलिए आपकी लाइफ में कोई बड़ी प्रॉब्लम हो तो भी आप पेरेंट्स से शेयर नहीं कर पाते। सपोर्ट तो दूर, पेरेंट्स को पता चला तो क्या होगा इस बात की टेंशन हो जाती है। ये समस्या लड़कियों के जीवन में और ज़्यादा रहती है।
आज भी कई लोग अपने प्यार की कुर्बानी देकर अपने पेरेंट्स की मर्ज़ी से शादी कर लेते हैं क्योंकि उन्हें पेरेंट्स से सपोर्ट नहीं मिलता।
प्यार और डर दो अपोज़िट फीलिंग्स हैं। या तो आप किसी से प्रेम कर सकते हैं या उससे डर सकते हैं, दोनों एक साथ सम्भव नहीं। जब पेरेंट्स बच्चों को हमेशा डरा कर रखने लगते हैं तो बच्चों के मन में उनके प्रति घृणा जन्म लेने लगती है और आगे चल के दोनों के रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है।
पेरेंट्स ये भूल जाते हैं कि वो भी इंसान हैं और अपने बारे में सोच लेने से उनका हमारे लिए प्यार कम नहीं हो जाएगा। वो अपनी ज़िंदगी की सारी ख्वाहिशें बच्चों पर लुटा देते हैं और जब बच्चे खुद को पेरेंट्स से अलग करने की कोशिश करते हैं, इंडिपेंडेंट होने लगते हैं तो पेरेंट्स को धक्का लग जाता है। इससे न तो वो ख़ुद जी पाते हैं, न अपने बच्चों को जीने देते हैं।
ये सच है कि हर पेरेंट अपने बच्चों का भला ही चाहता/चाहती है लेकिन इस मकसद से बच्चे की लाइफ़ कंट्रोल करना बेहद गलत है। पेरेंट्स को ये समझना होगा कि उन्हें बच्चों का भगवान बनने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें खुद को और बच्चों को स्पेस देना चाहिए ताकि बच्चों की ग्रोथ हो सके। जेनेरेशन गैप होने की वजह से पैरेंट्स को सब कुछ समझा पाना मुश्किल है, लेकिन न समझते हुए भी सपोर्ट किया जा सकता है, अपने बच्चों के फै़सले पर भरोसा किया जा सकता है। ऐसा करने से पेरेंट्स और बच्चों का रिश्ता ज़्यादा मज़बूत हो सकेगा।
पेरेंट्स के इस स्वरूप से क्या समस्याएं होती हैं?
1. बच्चे स्वतंत्र नहीं रह पाते।
आपके सारे फंडामेंटल राइट्स घर के अंदर कदम रखते ही छिन जाते हैं। हज़ारों की भीड़ को प्राइवेसी पर लेक्चर देना, मम्मी को कमरे में नॉक करके आने के लिए बोलने से आसान है। बचपन से आपके हर काम में पैरेंट्स इतनी दखल देते हैं कि आप कभी भी खुद को पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं देख पाते। आप बालिग होकर भी नाबालिग ही रह जाते हैं। लगभग एक तिहाई उम्र इस तरह से रहने के बाद जब आप अपनी ज़िंदगी का कोई बड़ा फैसला बिना पेरेंट्स को इन्वॉल्व किये लेते हैं तो आप पूरी तरह से कांफिडेंट नहीं हो पाते।
2. बच्चों को सब कुछ चुप चाप सहना पड़ता है।
भारत में बच्चों पर हाथ उठाना इतना कॉमन है कि इसे रोकना तो दूर, लोग इसे जस्टिफ़ाय भी करते हैं। माँ-बाप की मार भी बच्चों को प्रसाद की तरह खाना पड़ता है। इससे बच्चों की मानसिक स्थिति पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ सकता है। कई बच्चे इतना डर जाते हैं कि वो पेरेंट्स की किसी भी बात पर कभी सवाल नहीं उठाते और अपनी परेशानियों को छुपाना शुरू कर देते हैं। कितने बच्चे अपने साथ हुए छेड़-छाड़ की घटना पेरेंट्स से छुपाते हैं। बच्चों से उनका बचपना छिन जाता है।
3. बच्चों की लाइफ में सपोर्ट की कमी रहती है।
समाज आपकी ऐसी परवरिश करता है कि आप गलती से भी अपने पेरेंट्स को दुखी करने का नहीं सोच सकते इसलिए आपकी लाइफ में कोई बड़ी प्रॉब्लम हो तो भी आप पेरेंट्स से शेयर नहीं कर पाते। सपोर्ट तो दूर, पेरेंट्स को पता चला तो क्या होगा इस बात की टेंशन हो जाती है। ये समस्या लड़कियों के जीवन में और ज़्यादा रहती है।
आज भी कई लोग अपने प्यार की कुर्बानी देकर अपने पेरेंट्स की मर्ज़ी से शादी कर लेते हैं क्योंकि उन्हें पेरेंट्स से सपोर्ट नहीं मिलता।
4. रिश्तें में कड़वाहट आ जाती है।
प्यार और डर दो अपोज़िट फीलिंग्स हैं। या तो आप किसी से प्रेम कर सकते हैं या उससे डर सकते हैं, दोनों एक साथ सम्भव नहीं। जब पेरेंट्स बच्चों को हमेशा डरा कर रखने लगते हैं तो बच्चों के मन में उनके प्रति घृणा जन्म लेने लगती है और आगे चल के दोनों के रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है।
5. पेरेंट्स की अपनी कोई लाइफ़ नहीं रहती।
पेरेंट्स ये भूल जाते हैं कि वो भी इंसान हैं और अपने बारे में सोच लेने से उनका हमारे लिए प्यार कम नहीं हो जाएगा। वो अपनी ज़िंदगी की सारी ख्वाहिशें बच्चों पर लुटा देते हैं और जब बच्चे खुद को पेरेंट्स से अलग करने की कोशिश करते हैं, इंडिपेंडेंट होने लगते हैं तो पेरेंट्स को धक्का लग जाता है। इससे न तो वो ख़ुद जी पाते हैं, न अपने बच्चों को जीने देते हैं।
ये सच है कि हर पेरेंट अपने बच्चों का भला ही चाहता/चाहती है लेकिन इस मकसद से बच्चे की लाइफ़ कंट्रोल करना बेहद गलत है। पेरेंट्स को ये समझना होगा कि उन्हें बच्चों का भगवान बनने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें खुद को और बच्चों को स्पेस देना चाहिए ताकि बच्चों की ग्रोथ हो सके। जेनेरेशन गैप होने की वजह से पैरेंट्स को सब कुछ समझा पाना मुश्किल है, लेकिन न समझते हुए भी सपोर्ट किया जा सकता है, अपने बच्चों के फै़सले पर भरोसा किया जा सकता है। ऐसा करने से पेरेंट्स और बच्चों का रिश्ता ज़्यादा मज़बूत हो सकेगा।