स्कूल में सेक्स एजुकेशन क्यों है ज़रूरी ?

author-image
Swati Bundela
New Update

Advertisment

1. किशोरावस्था में सेफ ऑप्शंस जानना है ज़रूरी


बच्चें सेक्स से परहेज़ इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें इसके सेफ ऑप्शंस पता नहीं होते हैं। घर में सेक्स एजुकेशन से इन ऑप्शंस के बारे में उन्हें जितनी जानकारी मिलेगी उससे ज़्यादा उन्हें स्कूल में अपने सहपाठियों के साथ ही मिलेगी। रिसर्च ये बताते हैं कि सेफ ऑप्शंस के बारे में ना पता होने के कारण कन्सेप्शन केसेस में बढ़ोतरी ही होती है। इसलिए स्कूल में सेक्स एजुकेशन ज़रूरी है।
Advertisment

2. सेक्स एजुकेशन से सेक्स के चान्सेस बढ़ते नहीं है


शोध बताते हैं कि सेक्स एजुकेशन होने से किशोरों में सेक्स करने कि इच्छा बढ़ नहीं जाती है। शोध ये भी बताते हैं अगर स्कूल में कंडोम और बर्थ कण्ट्रोल पिल्स हो और ये बच्चों को प्रोवाइड किया जाए तो इससे भी उनके सेक्स ड्राइव में अत्यधिक उछाल नहीं होता है। इसलिए ये मानना बिलकुल गलत है कि स्कूल में सेक्स एजुकेशन के बारे में बात करने से स्कूल किशोरों को सेक्स के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
Advertisment

3. सेफ शुरुवात है ज़रूरी


एक शोध के अनुसार जो बच्चें
Advertisment
किशोरावस्था में कंडोम का प्रयोग शुरू कर देते हैं वो आगे भी अपने सेक्सुअल लाइफ में बहुत हेल्दी रहते हैं। अपने पहले इंटरकोर्स से ही जब आप कंट्रासेप्शन का इस्तेमाल शुरू कर देते हैं तो आपको सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीसेस का खतरा भी कम रहता है।

4. स्कूल में सेक्स एजुकेशन से ना का मतलब समझ में आता है

Advertisment

बच्चों को जब सेक्स एजुकेशन मिलती है तो वो हर इंसान के ना का मतलब समझने में ज़्यादा सक्षम हो पाते हैं। इस कारण उन्हें "कंसेंट" का मतलब भी भली भांति समझ में आता है। इसलिए व्यापक सेक्स एजुकेशन से ना सिर्फ आपके बच्चें सेक्स के बारे में जान पाते हैं बल्कि इससे वो एक बेहतर इंसान भी बन पाते हैं।

5. स्कूल में सेक्स एजुकेशन से बच्चों कि मोरल वैल्यूज में इजाफा होता है

Advertisment

एक बार बच्चें सेक्स के बारे में शिक्षित हो जाते हैं तो वो अपने आस पास के हर इंसान को बेहतर समझ सकते हैं। एक शोध के अनुसार जब बच्चें जब किशोरावस्था में सेक्स के बारे में सही जानकार बन जाते हैं तो फिर उनकी उनके माँ-बाप से बहस भी कम होती है। इसलिए व्यापक तरीका से स्कूल में सेक्स एजुकेशन को बढ़ावा देना बहुत ज़रूरी है।
पेरेंटिंग