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Dowry: हमें दहेज़ इतना पसंद क्यों है? कैसे हुई दहेज़ प्रथा शुरू और अब कहाँ तक जा चुकी है?

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Swati Bundela
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Dowry: जब एक लड़का और एक लड़की की शादी होती है तब लड़की को लड़की होने की कीमत दहेज़ के रूप में चुकानी पड़ती है। हमारे समाज में दहेज़ की कीमत एक लड़की की जान से भी बढ़कर होती है। पहले के ज़माने में शादियां कम उम्र में हो जाया करती थी और लड़के के लड़की के परिवार वाले पैसे दिया करते थे ताकि उनकी फैमिली की शुरुवात हो सके और धंधा पानी सब सेट हो जाए।

धीरे धीरे यह इतना बढ़ गया कि हम रोज़ आजकल न्यूज़ में देखते हैं कि दहेज़ के लिए लड़की को परेशान किया गया मारा पीटा गया या फिर जान ले ली गयी। दहेज़ बार बार मिलने की लालच में कई लड़के एक बार से ज्यादा बार शादी भी कर लेते हैं।

दहेज़ बुरा क्यों है?

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लड़की के पिता सब कुछ बेंच कर लोगों से उधार लेकर शादी करते हैं जिसे फिर वो बाद में सालों तक चुकाते रहते हैं। इसके बाद दहेज़ के नाम पर लड़की को न सिर्फ शादी के पहले बल्कि शादी के बाद भी परेशान किया जाता है। कई बार लड़की की उम्र ज्यादा होने के कारण या फिर थोड़ा बहुत रंग सावंला होने के कारण या फिर पढ़ी लिखी कम होने के कारण से ज्यादा दहेज़ की मांग की जाती है।

दहेज़ का डर अब सभी के मन में इतना बैठ गया है कि वो लड़की पैदा करने से भी डरते हैं। प्रेगनेंसी के दौरान छुपकर पता करने की कोशिश करते हैं अवैद्य तरीके से कि लड़की है या लड़का ताकि उसका एबॉर्शन करवाया जा सके। जिस घर कि बहु लड़की को जन्म देती उसकी इज़्ज़त कम हो जाती और उसको अच्छा नहीं माना जाता है। बार बार बच्ची के पेरेंट्स और परिवार को यह कहकर सहानभूति दी जाती है कि लड़की है लक्ष्मी का रूप है।

दहेज़ प्रथा कैसे बंद की जा सकती है?

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दहेज़ जैसी प्रथा अगर बंद करना है तो सबसे पहले महिलाओं को पढ़ा लिखकर काबिल बनाने की जरुरत है। क्योंकि आज भी ऐसी कई महिलाएं जो अपनी बेसिक जरूरतों के लिए भी अपने हस्बैंड पर या पिता पर निर्भर होती है। ऐसे में दहेज़ के खिलाफ आवाज उठाना दोगुना मुश्किल हो जाता है।

 

 



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