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Sellappan Nirmala, Image Credit: BBC
1985 में, भारत में पहली बार HIV संक्रमण की पहचान 32 वर्षीय माइक्रोबायोलॉजी छात्रा डॉ. सेलप्पन निर्मला ने की थी। वे उस समय अपने शोध कार्य के लिए विषय खोज रही थीं, जब उनकी प्रोफेसर और मेंटर डॉ. सुनीति सोलोमन ने उन्हें HIV पर शोध करने के लिए प्रेरित किया।
उस दौर में भारत HIV को केवल पश्चिमी देशों की बीमारी मानता था। लेकिन डॉ. निर्मला की रिसर्च ने इस धारणा को तोड़ दिया और यह साबित कर दिया कि यह बीमारी भारत में भी मौजूद थी।
भारत में पहली बार HIV की पहचान करने वाली वैज्ञानिक डॉ. सेलप्पन निर्मला की कहानी
भारत में पहली बार HIV की पहचान कैसे हुई?
शुरुआत में, डॉ. निर्मला HIV पर शोध करने को लेकर अनिश्चित थीं, लेकिन प्रोफेसर सोलोमन के आग्रह पर उन्होंने यह चुनौती स्वीकार कर ली। उस समय चेन्नई में यौनकर्मियों से संपर्क करना आसान नहीं था, इसलिए उन्होंने अस्पतालों में जाकर उन मरीजों से बात की जो पहले से यौन संक्रामक रोगों का इलाज करा रहे थे।
इसी दौरान उन्हें एक विजिलेंस होम के बारे में पता चला, जहां सरकार द्वारा हिरासत में ली गईं महिलाओं को रखा जाता था। यहीं से उन्होंने करीब 80 रक्त सैंपल इकट्ठा किए। उनके पति ने भी इस शोध में उनकी मदद की और उन्हें इस स्थान तक छोड़ने के लिए अपनी गाड़ी का इस्तेमाल किया ताकि बस का किराया बचाया जा सके।
शोध के नतीजे और भारत में HIV की पुष्टि
सैंपल एकत्र करने के बाद, उन्हें चेन्नई से 200 किलोमीटर दूर एक लैब में जांच के लिए भेजा गया। उस समय तक किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि भारत में HIV के मामले मिलेंगे। लेकिन जब परीक्षण के दौरान कई सैंपल पीले रंग में बदलने लगे, तो सभी को समझ आ गया कि भारत भी इस खतरनाक वायरस की चपेट में आ चुका था।
हालांकि, परिणाम की पुष्टि के लिए उसी विजिलेंस होम से दोबारा रक्त सैंपल लिए गए और उन्हें अमेरिका में परीक्षण के लिए भेजा गया। वहां भी नतीजे वही रहे भारत में HIV के मामलों की मौजूदगी की पुष्टि हो चुकी थी।
सामाजिक आलोचना और ऐतिहासिक बदलाव
जब यह खबर फैली, तो डॉ. निर्मला और डॉ. सोलोमन को भारी आलोचना का सामना करना पड़ा। कई लोगों ने उन पर तमिलनाडु की परंपराओं और संस्कृति को ‘कलंकित’ करने का आरोप लगाया। लेकिन जब पूरे भारत में लाखों लोग HIV से संक्रमित पाए गए, तब जाकर लोगों को इस बीमारी की गंभीरता का एहसास हुआ।
आज भारत में 25 लाख से अधिक लोग HIV संक्रमित हैं। हालांकि, मेडिकल साइंस और सरकारी प्रयासों की वजह से इसके प्रति जागरूकता बढ़ी है। फिर भी, HIV मरीजों के साथ भेदभाव आज भी जारी है, और वे समाज में अछूतों जैसा जीवन जीने को मजबूर होते हैं।
डॉ. निर्मला और डॉ. सोलोमन की ऐतिहासिक भूमिका
अगर आज HIV से बचाव और इलाज की दिशा में कोई कदम उठाए जा रहे हैं, तो इसका श्रेय उन दो महिलाओं को जाता है, जिन्होंने भारत की आँखें खोलीं और दिखाया कि यह बीमारी सिर्फ पश्चिमी देशों की समस्या नहीं है।
उनकी रिसर्च ने भारत में HIV और एड्स की रोकथाम की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव लाया। आज भी, उनकी इस खोज को मेडिकल साइंस के सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक माना जाता है।