Breaking Barriers: भारत की पहली महिला सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश फातिमा बीवी कैसे बनीं बदलाव की मिसाल?

फातिमा बीवी भारत की पहली महिला सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश, जिन्होंने न्यायपालिका में नई राह बनाई और बदलाव की मिसाल कायम की,जानिए उनकी प्रेरणादायक कहानी।

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Sakshi Rai
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Photograph: (janchowk)

Fathima Beevi India's First Female Supreme Court Judge Who Made History: हर बड़े बदलाव की शुरुआत घर से होती है। जब भी कोई नया रास्ता बनाता है, सबसे पहले उसका परिवार और समाज उस पर सवाल उठाता है। फातिमा बीवी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ होगा। एक ऐसे दौर में, जब महिलाओं को उच्च शिक्षा हासिल करने और करियर बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ता था, उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की और न्यायपालिका में अपनी जगह बनाई। यह आसान नहीं था, क्योंकि समाज की मानसिकता यही थी कि न्याय का क्षेत्र पुरुषों के लिए है, महिलाओं के लिए नहीं।

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कई परिवारों में लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती थी, लेकिन फातिमा बीवी का परिवार उनका समर्थन करता रहा। उनके माता-पिता ने यह समझा कि शिक्षा ही असली ताकत है और इसी के दम पर उनकी बेटी कुछ बड़ा कर सकती है। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने न्यायिक क्षेत्र में कदम रखा और अपनी काबिलियत से सबको साबित किया कि महिलाएं भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं।

भारत की पहली महिला सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश फातिमा बीवी कैसे बनीं वो बदलाव की मिसाल?

फातिमा बीवी का जन्म 30 अप्रैल 1927 को केरल के पथानामथिट्टा जिले के पंडालम में हुआ था। उनके पिता अन्नवीटिल मीर साहिब ने उन्हें कानून के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया, जो उस समय महिलाओं के लिए असामान्य था।

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1950 में, उन्होंने तिरुवनंतपुरम के लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री प्राप्त की और उसी वर्ष बार काउंसिल में शामिल हुईं। इसके बाद, उन्होंने कोल्लम जिला अदालत में वकालत शुरू की। 1958 में, वे केरल न्यायिक सेवा में मुंसिफ के पद पर नियुक्त हुईं और 1974 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश बनीं। 1983 में, उन्हें केरल उच्च न्यायालय की न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

1989 में, फातिमा बीवी ने इतिहास रचा जब वे भारत की सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनीं। उनकी यह उपलब्धि न केवल भारत में, बल्कि पूरे एशिया में महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी। सुप्रीम कोर्ट में उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में न्याय प्रदान किया, जो आज भी मिसाल के रूप में देखे जाते हैं।

साल 1989 में एम. फातिमा बीवी ने इतिहास रच दिया, जब उन्हें भारत की सर्वोच्च अदालत में पहली महिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने 29 अप्रैल 1992 तक इस महत्वपूर्ण पद पर अपनी सेवाएं दीं।

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1992 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्होंने 1993 से 1997 तक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्य के रूप में सेवा की। इसके बाद, 1997 में, उन्हें तमिलनाडु की राज्यपाल नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने 2001 तक अपनी सेवाएं दीं।

सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज, दिवंगत न्यायाधीश एम. फ़ातिमा बीवी को मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। यह सम्मान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 9 मई, 2024 को दिया था।

न्यायमूर्ति फातिमा बीवी का जीवन संघर्ष, समर्पण और उत्कृष्टता का प्रतीक है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सामाजिक बाधाओं के बावजूद, दृढ़ संकल्प और परिवार के समर्थन से किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। उनकी उपलब्धियां न केवल भारतीय न्यायपालिका में, बल्कि समाज के हर वर्ग में महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

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