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International Women's Day: जानिए कैसे टीचर प्रमिला राय ने गणित पढ़ाने की चुनौती स्वीकारी और बदली समाज की सोच

प्राथमिक स्कूल शिक्षिका प्रमिला राय ने गणित पढ़ाने की चुनौती स्वीकार की, अपनी मेहनत और समर्पण से समाज की सोच बदली और यह साबित किया कि महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं।

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Sakshi Rai
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Photograph: (original photo)

Primary School Teacher Pramila Rai Took on the Math Challenge and Changed Mindsets: अगर सच्ची लगन और जुनून हो, तो कोई भी मुश्किल आपको रोक नहीं सकती। – यही मेरी माँ की कहानी का सार है। उनकी यात्रा सिर्फ एक शिक्षक की नहीं, बल्कि समाज की सोच को बदलने वाली एक महिला की है, जिसने यह साबित कर दिया कि महिलाएँ कुछ भी कर सकती हैं – यहाँ तक कि गणित भी पढ़ा सकती हैं।

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Primary School Teacher प्रमिला राय ने गणित पढ़ाने की चुनौती स्वीकारी और बदली समाज की सोच

सपना डॉक्टर बनने का, लेकिन तक़दीर ने बनाया शिक्षक

माँ, प्रमिला राय हमेशा से डॉक्टर बनना चाहती थीं। उन्होंने विज्ञान को चुना, खूब मेहनत की, लेकिन तक़दीर ने उन्हें एक प्राथमिक विद्यालय का शिक्षक बना दिया (2002)। जब पहले दिन उन्होंने स्कूल जॉइन किया तो वे बहुत निराश हो गईं, स्कूल और बच्चों को देखकर।

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गणित और विज्ञान पढ़ाने वाला कोई दूसरा शिक्षक नहीं हुआ करता था। बच्चों को पेड़ के नीचे बैठाकर पढ़ाना पड़ता था। एक दिन, हेडमास्टर ने माँ को गणित पढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी। उन्होंने घबराते हुए सोचा, क्या मैं यह कर पाऊँगी? क्योंकि तब माँ के लिए भी गणित पढ़ाना बहुत कठिन था। बस दिन बीतते गए और जैसे-तैसे चलता गया।

गणित पढ़ाने की चुनौती और समाज की सोच

कुछ समय बाद, उनका प्रमोशन हुआ (2013) और उन्हें एक स्कूल में 8वीं कक्षा के बच्चों को गणित पढ़ाने का ज़िम्मा मिला। लेकिन यहाँ भी वही स्थिति थी-गणित का कोई शिक्षक नहीं था। उन्होंने बच्चों को पढ़ाने की पूरी कोशिश की, लेकिन बच्चे समझ नहीं पा रहे थे। इससे उनका आत्मविश्वास डगमगाने लगा।

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समाज की मानसिकता भी उनके खिलाफ थी। गाँव में लोगों की सोच थी कि "गणित लड़कों का विषय है, महिलाएँ इसे नहीं पढ़ा सकतीं।" धीरे-धीरे बच्चे कक्षा में आना बंद करने लगे। कुछ ने तो दूसरे स्कूलों में दाखिला ले लिया।

लेकिन जब माँ को यह पता चला कि गाँव के माता-पिता इसलिए बच्चे को स्कूल नहीं भेज रहे हैं क्योंकि गणित एक महिला पढ़ा रही है।हम उन्हें तब तक स्कूल नहीं भेजेंगे जब तक कोई पुरुष शिक्षक नहीं आ जाता। महिलाओं को गणित नहीं आता।" ये सुनने के बाद माँ को बहुत बुरा लगा। तभी उनके अंदर एक जुनून जाग गया। अब उन्हें सिर्फ एक शिक्षक के रूप में सफल नहीं होना था, बल्कि यह साबित करना था कि महिलाएँ गणित पढ़ा सकती हैं – और बेहतरीन तरीके से पढ़ा सकती हैं!

खुद को साबित करने का जुनून

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तभी तकनीक ने उनकी राह आसान की। एंड्रॉयड फोन का दौर आ चुका था। उन्होंने खुद को तैयार करने की ठान ली। उन्होंने यूट्यूब का सहारा लिया-खान सर की वीडियो देखीं, PW रितिक सर की क्लासेज़ लीं, दिन-रात मेहनत की, और 8वीं कक्षा की पूरी गणित को समझ लिया। अब गणित उन्हें कठिन नहीं, बल्कि मज़ेदार लगने लगा। और जब शिक्षक को मज़ा आए, तो बच्चे भी रुचि लेने लगते हैं। यही हुआ! दिन बदले, पढ़ाने का तरीका बदला, और बच्चे भी सीखने में आनंद लेने लगे। अब बच्चों को और उनके माता-पिता को गणित सिर्फ माँ से ही पढ़वाना था, जीतने के जज़्बे से सब कुछ बदल दिया।

सफलता की पहली पहचान

एक दिन जब माँ कक्षा में पहुँचीं, तो उन्होंने ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिखा देखा - 

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"Best Math Teacher in the World – Our Favorite Pramila Ma’am!"

यह उनके लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं था। जो बच्चे पहले गणित से डरते थे, वे अब इसे पसंद करने लगे थे। धीरे-धीरे, स्कूल में नामांकन बढ़ने लगा। अब माँ को अपनी नौकरी में मज़ा आने लगा, क्योंकि अब वे सिर्फ पढ़ा नहीं रही थीं, बल्कि बच्चों के भविष्य को सँवार रही थीं।

आज का गर्व का दिन

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आज उनकी कक्षा के छात्रों ने राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति परीक्षा (National Means-cum-Merit Scholarship) पास कर ली है। यह सिर्फ छात्रों की नहीं, बल्कि माँ की मेहनत और समर्पण की भी जीत है। माँ हमेशा कहती हैं-
"किसी भी बच्चे की पढ़ाई में कमजोरी उसकी गलती नहीं होती, बल्कि शिक्षक की ज़िम्मेदारी होती है। जब शिक्षक दिल से पढ़ाएगा, तभी बच्चे सीखेंगे।"

महिलाओं के लिए एक प्रेरणा

माँ की यह कहानी सिर्फ गणित सिखाने की नहीं है। यह हिम्मत, लगन और सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने की कहानी है। यह उन सभी महिलाओं के लिए एक संदेश है जो कभी सोचती हैं कि वे किसी काम के लिए सक्षम नहीं हैं।

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अगर एक महिला गणित पढ़ा सकती है, तो महिलाएँ कुछ भी कर सकती हैं।

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