Hima Das: असम की इस बेटी ने एक साल की ट्रेनिंग में ही कमाल कर दिखाया

सिर्फ एक साल की ट्रेनिंग में हिमा दास ने शानदार प्रदर्शन कर देश का नाम रोशन किया। असम की इस होनहार बेटी की कहानी हर युवा के लिए प्रेरणादायक है।

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Sakshi Rai
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Photograph: (olympics)

This daughter of Assam achieved greatness with just one year of training: जब कोई साधारण परिवार की लड़की असाधारण सफलता हासिल करती है, तो वो सिर्फ अपनी नहीं, पूरे समाज की सोच को बदल देती है। हिमा दास, असम के एक छोटे से गांव की बेटी, ने ऐसा ही कमाल कर दिखाया। बिना किसी खास संसाधन या लंबे प्रशिक्षण के, उन्होंने सिर्फ एक साल की प्रोफेशनल ट्रेनिंग में वो मुकाम पाया, जो कई सालों की मेहनत के बाद भी हर किसी को नहीं मिलता। उनका जज़्बा, मेहनत और आत्मविश्वास आज लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुका है।

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असम की इस बेटी ने एक साल की ट्रेनिंग में ही कमाल कर दिखाया 

हमारे देश में जब कोई बच्चा खेल-कूद में अच्छा होता है, तो घरवाले अक्सर पढ़ाई पर ध्यान देने को कहते हैं। उन्हें लगता है कि खेल से भविष्य नहीं बनता। खासकर जब लड़की हो और वो दौड़ने-कूदने जैसे खेलों में आगे बढ़ना चाहे, तो चिंता और भी बढ़ जाती है। हर परिवार सबसे पहले यही सोचता है क्या इसमें करियर बनेगा?, क्या लड़की सुरक्षित रहेगी?, क्या कभी नाम होगा?

हिमा दास का सफर भी कुछ ऐसा ही था। असम के एक छोटे से गांव में जन्मी हिमा, एक किसान परिवार से आती हैं। उनके पास ना महंगे जूते थे, ना बढ़िया ट्रैक, ना कोई कोचिंग शुरू से। लेकिन उनके अंदर जो जुनून था, वो कहीं ज़्यादा मजबूत था। उन्होंने सिर्फ एक साल की प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली थी और उसी के बाद उन्होंने ऐसा प्रदर्शन किया कि पूरा देश उनका नाम जान गया।

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जब उन्होंने IAAF World U20 Championships में गोल्ड मेडल जीता, तो सब चौंक गए। इतनी कम उम्र, इतना छोटा गांव, और इतनी जल्दी इतनी बड़ी सफलता ये कोई आम बात नहीं थी। उनके गांव में तो कई लोगों को पता भी नहीं था कि वो जिस प्रतियोगिता में गई हैं, वो कितनी बड़ी है। खुद उनकी मां ने जब सुना कि वो कॉमनवेल्थ गेम्स में जा रही हैं, तो उन्होंने पूछा, क्या टीवी पर आओगी?

हिमा की कहानी यही बताती है कि जब किसी को सही दिशा और थोड़ी सी मदद मिल जाती है, तो वो किसी भी हालात में अपना रास्ता बना सकता है। हर परिवार शुरुआत में डरा रहता है खासकर तब, जब रास्ता अनजाना हो। लेकिन जब एक बार सफलता दिखती है, तो वही परिवार सबसे बड़ा सहारा बन जाता है।

हिमा दास ने सिर्फ एक साल में ये दिखा दिया कि जुनून, मेहनत और सच्चा इरादा हो, तो बड़ी से बड़ी मंज़िल भी पाई जा सकती है।

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