Stories Of Strength: हर महिला को सावित्रीबाई फुले की कहानी क्यों पढ़नी चाहिए?

सावित्रीबाई फुले सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि एक प्रेरणा हैं। उन्होंने शिक्षा और महिला अधिकारों के लिए जो संघर्ष किया वह हर महिला को जानना चाहिए। उनकी कहानी आज भी महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनी हुई है।

author-image
Vedika Mishra
New Update
Savitribai Phule(Amar Ujala)

File Image

किसी समाज या देश की प्रगति तब तक संभव नहीं, जब तक कि वहां कि महिलाएं शिक्षित ना हों
 -सावित्रीबाई फुले

Advertisment

आज जब एक लड़की स्कूल जाती है, किसी ऑफिस में बॉस बनकर बैठती है या अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद लेती है तो यह सिर्फ एक व्यक्तिगत जीत नहीं बल्किक्रांति की विरासत है यह क्रांति उस दौर में शुरू हुई थी जब लड़कियों को पढ़ाना समाज को गवारा नहीं था। यह क्रांति शुरू हुई थीसावित्रीबाई फुले की हिम्मतसे, जिन्होंने न सिर्फ भारत की पहली महिला शिक्षिका बनकर इतिहास रचा बल्कि हर उस रूढ़िवादी सोच को ध्वस्त कर दिया जो औरत को केवल घर की चारदीवारी तक सीमित रखना चाहती थी।

अगर आप अब भी सोचती हैं कि आप अकेली हैं तो सावित्रीबाई की कहानी ज़रूर पढ़ें। अगर आप अब भी डरती हैं कि दुनिया क्या कहेगी तो सवित्रीबाई की आग को महसूस करिए और अगर आप अब भी झुकती हैं दुनिया के सामने तो याद रखिए -वह दुनिया के डर से झुकी नहीं रुकी नहीं बल्कि उन्होंने डटकर पूरी दुनिया का सामना किया!

कौन थीं सावित्रीबाई फुले?

सावित्रीबाई फुले सिर्फ एक नाम नहींएक विद्रोह- एक गर्जना थीं 3 जनवरी 1831 को जन्मी सवित्रीबाई नेसमाज की बेड़ियों को तोड़ा और हर महिला के लिए एक नई सुबह की शुरुआत की। उस दौर में, जब महिलाएं शिक्षा से वंचित थीं उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 1848 में पहले महिला विद्यालय कीशुरुवातकी|

लेकिन सोचिए क्या यह इतना आसान था? नहीं 

Advertisment

हर दिन उन्हें समाज के ज़हर का सामना करना पड़ा। जब वह स्कूल जाती थीं तो लोग उन पर गोबर फेंकते, पत्थर मारते, अपशब्द कहते और धमकाते। उन्हें बार-बार कहा गया कि "लड़कियों को पढ़ाने वाली औरत पापी होती है" लेकिन क्या उन्होंने हार मानी? नहीं!

सावित्रीबाई का विद्रोह: हर महिला को इसलिए पढ़नी चाहिए सावित्रीबाई फुले की कहानी

एक सशक्त शिक्षित स्त्री सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है, इसलिए उनको भी शिक्षा का अधिकार होना चाहिए- सावित्रीबाई फुले

शिक्षा के लिए पहला संघर्ष

Advertisment

जब समाज ने कहा कि "लड़कियों को पढ़ाना बेकार है," तब सावित्रीबाई ने यह धारणा तोड़ दी । 1848 में, उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर भारत का पहला बालिका विद्यालय खोला। यह सिर्फ एक स्कूल नहीं बल्कि हज़ारों लड़कियों के लिए नए सपनों की पहली सीढ़ी थी।

सवित्रीबाई का मानना था कि  "अगर एक लड़की शिक्षित होती है, तो वह पूरे समाज को शिक्षित कर सकती है।"

समाज की बेड़ियों को तोड़ा

उस दौर में, विधवाओं को घर से निकाल दिया जाता था, अछूतों को शिक्षा तक नहीं दी जाती थी और बलात्कार पीड़िताओं को दोषी माना जाता था। सावित्रीबाई ने इन रूढ़ियों को ठुकरा दिया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया, दलितों और अछूतों के लिए स्कूल खोले और बलात्कार पीड़िताओं के लिए शेल्टर होम बनाए।

महिलाओं के लिए पहला विद्रोह

Advertisment

उन्होंने पितृसत्ता की उस सोच को तोड़ा जो कहती थी कि "औरत सिर्फ घर संभालने के लिए बनी है।" उन्होंने साबित किया कि औरतें सिर्फ घर नहीं बल्कि समाज, देश और इतिहास की दिशा बदलने की ताकत रखती हैं।वे मानती थी कि "हमारा हक कोई हमें देगा नहीं, हमें उसे छीनना होगा।"

आज की महिलाओं के लिए सावित्रीबाई की सीख

आज भी जब लड़कियों को उनके कपड़ों, फैसलों, करियर और शादी के लिए जज किया जाता है तो हमें सावित्रीबाई की कहानी याद करनी चाहिए।

  • डरो मत, अपनी आवाज़ उठाओ।
  • शिक्षा को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाओ।
  • जो गलत है, उसके खिलाफ खड़ी हो जाओ।
  • हर लड़की को अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए।
Advertisment

हर महिला को सवित्रीबाई की कहानी पढ़नी चाहिए क्योंकि यह सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि हर उस लड़की का भविष्य है जो अपने सपनों के लिए लड़ना चाहती है। अगर आज भी आपको लगता है कि आप अकेली हो, दुनिया तुम्हें नहीं समझती और ये समाज आपको रोक रहा है - तो याद रखिए एक ऐसी महिला ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया था जिन्होंने सबकुछ सहकर भी हार नहीं मानी।

तो उठो, जागो और सावित्रीबाई की क्रांति को आगे बढ़ाओ क्योंकि तुम कमज़ोर नहीं, तुम खुद एक क्रांति हो।

Stories of Strength