New Update
प्रोनिंग ऑक्सीजन के लेवल में सुधार करने में मदद करता है। फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए योग व प्राणायाम करने का सुझाव भी दिया जाता है। प्राणायाम करने से फेफड़ों का विस्तार होता है।
1) भस्त्रिका प्राणायाम 5 तरह के प्राणायाम
* पद्मासन (कमल) की स्थिति में आंखें बंद करके बैठें और रीढ़ की हड्डी सीधी रखें।
* अपने नॉस्ट्रिल्स से गहरी श्वास लें। फिर अपने नॉस्ट्रिल्स से जोर से साँस छोड़ें, डायाफ्राम का उपयोग करके 'पंप' करें।
* लगभग 10 बार जोर से श्वास लेते और छोड़ते हुए इस प्रक्रिया को करें।
* फिर गहरी साँस लें, जब तक साँस रोक सकते हैं, तब तक रोकें और फिर साँस को धीरे-धीरे छोड़ें।
भस्त्रिका प्राणायाम से चिंता और सहनशीलता के साथ-साथ PTSD में भी मदद मिलती है।
2) कपालभाति प्राणायाम
* अपने हाथों को अपने घुटनों पर रखें।
* अपने पेट के प्रति जागरूकता लाते हुए दोनों नॉस्ट्रिल्स से गहरी साँस लें और जोर से साँस छोड़ें।
* साँस छोड़ने पर ध्यान दें। शुरू करने के लिए, प्रति मिनट 45-50 चक्रों का लक्ष्य रखें।
शारीरिक लाभ की दृष्टि से यह डायफ्राम और पेट की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करता है। मानसिक लाभों के संदर्भ में, यह फोकस बढ़ाने और चिंता को कम करने में मदद करता है।
3) अनुलोम विलोम प्राणायाम
* ध्यान की मुद्रा में बैठें, अपनी स्पाइन और गर्दन को सीधा रखें। अब अपनी आँखें बंद करें।
* अपने दाहिने हाथ की पहली और मध्यम उंगली को मोड़ें।
* अपने दाहिने नॉस्ट्रिल को अपने अंगूठे से बंद करें और अपने बाएं नॉस्ट्रिल से धीरे-धीरे और गहराई से साँस लें।
* अपना अंगूठा छोड़ें। अपने दाहिने हाथ की तीसरी उंगली से अपने बाएं नॉस्ट्रिल को बंद करें। दाहिनी नासिका से धीरे-धीरे साँस छोड़ें।
* बाएं नॉस्ट्रिल से साँस भरते हुए इसे दोहराएं।
श्वास तकनीक शरीर के ऊर्जा चैनलों को शुद्ध करने में मदद करती है। अनुलोम विलोम प्राणायाम से चिंता कम होती है, ध्यान बढ़ता है और धूम्रपान छोड़ने की क्षमता भी बढ़ती है।
4) भ्रामरी प्राणायाम 5 तरह के प्राणायाम
* एक आरामदायक स्थिति में बैठें।
* उंगलियों और अंगूठे की मदद से अपने कान और आंखें बंद करें।
* गहराई से श्वास लें, फिर धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए मधुमक्खी की तरह भिनभिनाहट की ध्वनि निकालें।
* इसे 5-10 बार दोहराएं।
भ्रामरी प्राणायाम के वाइब्रेशंस से मन और शरीर शांत होता है। इसके अभ्यास से एकाग्रता में वृद्धि होती है, याददाश्त में सुधार होता है और तनाव भी दूर होता है।
5) उद्गीत प्राणायाम
उद्गीत प्राणायाम को “ओमकारी जप” भी कहा जाता है।
* पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठ जाएं।
* सामान्य गति से साँस शरीर के अंदर लें और उसके बाद ओमकारी जप के साथ साँस को बाहर छोड़े।
* यह ध्यान में रखें कि इस अभ्यास में लंबी साँस सामान्य गति से अंदर लेनी है और जब साँस बाहर छोड़े तब ओमकार(ओउम) जप के साथ उसी सामान्य गति से साँस बाहर निकालनी है।
उद्गीत प्राणायाम से सकारात्मकता बढ़ती है और वातावरण खुशनुमा हो जाता है। चिंता, ग्लानि, दुख और भय से मुक्ति दिलाता है। इस प्राणायाम के अभ्यास से स्मरण शक्ति और ध्यान-शक्ति बढ़ती है। व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है। शरीर में ब्लड सर्कुलेशन की प्रक्रिया ठीक से होने लगती है।
गैस, एसिडिटी और अन्य पेट के रोग उद्गीत प्राणायाम से दूर हो जाते है।
** Disclaimer - यह सार्वजनिक रूप से एकत्रित की हुई जानकारी है। यदि आपको किसी विशिष्ट सलाह की आवश्यकता है, तो कृपया डॉक्टर से परामर्श करें।