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International Women's Day: गाँव की बेटी अनुष्का की उड़ान और मजबूरियों की कहानी

गाँव की बेटी अनुष्का की प्रेरणादायक कहानी, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए जिम्मेदारियों और संघर्षों के बीच हिम्मत और हौसले से आगे बढ़ रही है।

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Sakshi Rai
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vg

Photograph: (Pinterest)

The Village Daughter Anushka's Dreams Taking Flight Amidst Chains of Struggles:गाँव की छोटी-सी दुनिया में पली-बढ़ी अनुष्का की कहानी हर उस लड़की की झलक दिखाती है, जो सपने तो बड़े देखती है लेकिन मजबूरियों की जंजीरों में जकड़ी होती है। घर की जिम्मेदारियों के बोझ तले दबकर भी वह अपने सपनों की उड़ान भरने की कोशिश कर रही है। उसकी माँ नहीं है, पिता शराब पीते हैं, और चार छोटे-भाई बहनों की देखभाल की ज़िम्मेदारी भी उसी पर है। स्कूल जाने से पहले घर का सारा काम निपटाकर पढ़ाई के लिए निकलना उसकी रोज़ की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है। लेकिन संघर्षों के बीच भी वह कभी हार नहीं मानती, क्योंकि उसे पता है कि अगर आज हिम्मत नहीं जुटाई, तो उसके सपने हमेशा अधूरे रह जाएंगे।

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गाँव की बेटी अनुष्का: सपनों की उड़ान और मजबूरियों की जंजीर

अनुष्का सिर्फ सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक लड़की है, लेकिन उसकी ज़िंदगी किसी बड़े इंसान से कम संघर्षपूर्ण नहीं है। उसकी माँ नहीं है, घर में चार भाई-बहन हैं, और पिता शराब के आदी हैं। इसलिए घर की सारी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ गई है। सुबह सबसे पहले उठकर घर का सारा काम करना, भाई-बहनों का ध्यान रखना और फिर स्कूल जाना – यह उसकी रोज़ की दिनचर्या बन चुकी है।

लेकिन इस सबके बावजूद, वह पढ़ना चाहती है, कुछ बनना चाहती है। हालात उसे हर दिन एक नया इम्तिहान देते हैं, लेकिन वह हर दिन नया हौसला लेकर आगे बढ़ती है। एक दिन उसकी टीचर ने कहा था, "कल दूसरी कॉपी लेकर आना," लेकिन वह नहीं ला पाई। जब टीचर ने पूछा, तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया – "जब तक मेरे पापा रुला नहीं देते, तब तक मुझे कुछ नहीं मिलता।"

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उसके शब्दों में छुपी सच्चाई ने दिल को झकझोर दिया। गरीबी सिर्फ पैसों की नहीं होती, यह सपनों की भी होती है। लेकिन अनुष्का हार मानने वालों में से नहीं है।

एक बार उसके छोटे भाई, जो अभी पाँचवीं कक्षा में पढ़ता है, स्कूल में झगड़े के दौरान घायल हो गया। उसकी चोट इतनी गहरी थी कि उसे स्कूल से अस्पताल ले जाना पड़ा। उस पूरी राह में अनुष्का ने अपने भाई को अपनी गोद में उठा रखा था। टीचर्स ने उसे कहा कि वह उसे छोड़ दे, लेकिन वह रोते हुए भी अपने भाई को खुद से दूर नहीं कर रही थी। कहते हैं न, "बड़ी बहन माँ के समान होती है।" उस दिन वह बस एक बहन नहीं थी, बल्कि एक माँ की तरह अपने भाई की तकलीफ को महसूस कर रही थी। उम्र में वह छोटी थी, लेकिन हालात ने उसे जिम्मेदारियों को समझने की परिपक्वता दे दी थी।

यह सिर्फ अनुष्का की कहानी नहीं है, बल्कि उन अनगिनत बच्चों की हकीकत है, जो बचपन में ही बड़े हो जाते हैं। हर परिवार में समस्याएँ होती हैं, लेकिन कुछ घरों में ये समस्याएँ बच्चों के सपनों पर भारी पड़ जाती हैं। अनुष्का जैसी बेटियाँ हर मुश्किल से जूझते हुए भी उम्मीद की किरण बनी रहती हैं। उनके छोटे-छोटे संघर्ष हमें यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि क्या हर बच्चे को अपने सपने पूरे करने का हक़ नहीं मिलना चाहिए?

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