Story of Shreya Sarda Who Made a Series of 70 Episodes: रामायण को हम सब ने टीवी पर देखा है या फिर हमारे ग्रंथों में पढ़ा है लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि बच्चों के लिए एक अलग रामायण हो सकती हैं। आज हम She The People Hindi की इंटरव्यू सीरीज में आपके सामने एक ऐसी महिला की कहानी लेकर आए हैं जिन्होंने 70 एपिसोड्स की एनिमेटेड सीरीज खास तौर युवा पीड़ी के लिए बनाई। आइये इस सफर की पीछे की कहानी उनसे ही जानते हैं।
70 एपिसोड की सीरीज बनाने वाली श्रेया सारदा की कहानी
जीवन के सफर और जुंबाया के पीछे की कहानी के बारे में श्रेया सारदा बताती हैं कि वे राजस्थान के एक छोटे से शहर से संबंधित हैं जहाँ इतने मौके नहीं थे लेकिन माँ-बाप डॉक्टर थे और नानी ऑक्सफ़ोर्ड के लिए कहानियां लिखती थीं और उनके लेख अलग-अलग भाषाओं में छपते थे। माँ-बाप और नानी के साथ भी जितना समय बिताया उन्होंने भी कहानियां सुनाईं। दादा की तरफ से स्टोरी बुक गिफ्ट की जाती थी तो कहानियों से बचपन में ऐसे ही कन्नेक्शन बन गया।
यहाँ तक जुंबाया को को-फाउंड करने की बात है उसके पीछे भी यही बचपन में सुनी कहानियों का असर और उनसे जुड़ाव है। इसके साथ ट्रैवेलिंग भी बहुत की है। इससे पहले जब वो पढाई के लिए IIT और NID में गईं वहां ऐसे लोगों से उनका परिचय हुआ जिनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा। वहां पर उनका साथ ऐसे लोगों से हुआ जिन्हें अपने काम के साथ प्यार था। वे और स्ट्रांग हो गईं। यह चीज़ जुंबाया को शुरू करने की प्रेरणा बनी। इसके बाद कोविड के समय उन्होंने अपने आस पास देखा तो सभी बच्चे इंटरनेट पर लगे हुए थे कहनियाँ तो कोई पढ़ता नहीं था। एक और पॉइंट इसके साथ सारदा डिज़ाइन स्कूल में बच्चों को क्राफ्ट और कैसे किसी सब्जेक्ट पर कहनियाँ बुनी जाती हैं इसे सिखाती थीं इस चीज़ ने भी जुंबाया की शुरूआत में हिस्सा डाला।
आर्किटेक्चर एक मेल डोमिनेटेड प्रोफेशन है उसमें कैसे आपने एक अलग ज़ोन बनाया?
इस पर शारदा अपनी माँ की उदारहण देते हुए कहती हैं मैंने उनसे शुरू से यही सुना है कि हम सब बराबर हैं। जब उनके पास महिला मरीज़ भी आती थीं उन्हें भी यही सलाह देती थीं। मुझे कभी डर नहीं लगा की मैं महिला हूँ तो कर नहीं सकती। इसके साथ किरण बेदी जी का हवाला देते हुए कहती हैं कि अगर वो तिहार जेल में परिवर्तन कर सकती हैं हम क्यों नहीं? जीवन में समस्याएं तो आएंगी, प्रोफेशन में मेल डोमिनेटेड माहौल भी मिलेगा आप जो सोच लो वो कर सकते हैं।
Same Language Subtitling की शुरुआत का बच्चों की Reading Ability और Story Engagement पर क्या प्रभाव पड़ा?
इस का उत्तर देते हुए सारदा बताती हैं कि आज के बच्चे कहानियां पढ़ना नहीं, देखना ज्यादा पसंद करते हैं जैसे शॉर्ट्स और सीरीज। किताबें शायद उनके लिए बोरिंग है। इसलिए वे कुछ ऐसा करना चाहती थीं जिससे रीडिंग और वाचिंग साथ में हो । इस पर उन्होंने कुछ Same Language Subtitling पर हुई रिसर्चस का हवाला दिया जिसमें से काफी भारत में भी हो चुकी हैं। इसके साथ उन्होंने बताया कि रीडिंग का कोई विकल्प नहीं है इसलिए उन्होंने अपने कंटेंट में Same Language Subtitling की शुरुआत की जिससे उनके दोनों उद्देश्यों का हल हो गया और टेक्नॉलजी का भी सही इस्तेमाल हो रहा है।
आपकी कहानियों में विभिन्न कल्चर पेर्स्पेक्टिव नजर आते हैं उसके बारे में बताएं?
शारदा बताती हैं कि बचपन से ही उनके मन पर बराबरता की गहरी छाप है इसके बाद उनके पति की जॉब ऐसी थी कि अलग-अलग जगह जाना पड़ता था जिसकी वजह से उन्हें अलग-अलग लोगों को जानने का मौका मिला और दोस्त भी बने। जब आप उनकी कहानियां सुनते हो फिर आप ऐसे प्लेटफॉर्म पर आकर खड़े हो जाते हो यहाँ सब सामान हैं। सबसे बड़ी बात बच्चे को जितनी जल्दी कहानी से बात समझ आएगी उतनी बताने पर नहीं आएगी। इसके साथ ही शारदा यह भी कहती हैं कि आज के समय SLS की ज्यादा जरुरत है क्योंकि अब ज्यादा असमानता आ गई है। इसलिए बच्चों के यह बताना जरुरी हो गया है कि हम सब समान है। इस कारण वह अपनी कहानियों में अलग-अलग धर्मों के चरित्र दिखाती हैं जो एक साथ मिलकर त्यौहार मनाते हैं।
आपकी लीडरशिप टीम में सीईओ, CTO और हेड ऑफ़ प्रोडक्ट सभी पुरुष हैं, आप उनके बीच महिला हैं इससे आपको कैसा महसूस होता है?
इसके जवाब में शारदा ने कहा, हम सभी ने हमेशा बराबर मिलकर काम किया है। सभी के मूल्य और सोच को बराबर अहमियत दी जाती है। जब ज्यादा लोग किसी चीज़ पर मिलकर फैसले लेते हैं तो एक साथ कई विचार निकलकर आते हैं। किसी भी संस्था का यह बेसिक है कि आप कितना मिलकर काम करते हैं और सामने वाले की कितनी रिसपेक्ट करते हैं। शारदा कहती हैं कि उनका मानना है महिलाएं प्रकिर्तिक रूप से ही ज्यादा सवेंदनशील होती हैं इसलिए मैं पेर्स्पेक्टिव को टीम में लेकर आती हूँ बाकी पुरुष इस बात को मानते और समझते हैं।
महिला लीडर के तौर पर क्या मुश्किलें आती हैं और कंटेंट क्रिएशन एवं टेक्नोलॉजी में महिलाओं का क्या फ्यूचर है?
स्टडीज कहती हैं कि एक महिला का ध्यान एक समय चारों तरफ होता है, वहीं मर्द एक समय में एक चीज़ पर ही ध्यान देते हैं। जब कंटेंट क्रिएशन और टेक्नोलॉजी की बात आती है आज की समस्याएं इतनी काम्प्लेक्स हो चुकी हैं कि आप एक दृष्टिकोण से उसका हल नहीं निकाल पाएंगे। महिलाएं इस चीज़ में प्रकिर्तिक रूप से एक्सपर्ट होती हैं कि वो एक साथ कई काम कर लेती हैं। टेक्नोलॉजी किसी ने डेवलप की है लेकिन उसका इस्तेमाल आप पर निर्भर करता है और इस चीज़ पर महिलाएं निश्चित तौर पर आगे आ रही हैं।
चैलेंजेस पर बात करते हुए शारदा ने कहा मैं एक गृहणी भी हूँ, पारिवारिक ज़िम्मेदारी भी मेरे ऊपर है। मुझे अपना घर और ऑफिस दोनों संभालने पड़ते हैं। एक परिवार की होलिस्टिक डेवलपमेंट सिर्फ एक महिला ही कर सकती है और परिवार की ख़ुशी भी महिलाओं से आती हैं। कुछ सफल महिलाओं का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि जो महिलाएं वर्क और होम दोनों को मैनेज कर पाईं वही आगे तक गई हैं। परिवार का सपोर्ट बहुत जरुरी है।
घर और परिवार को मैनेज करने पर सारदा कहती हैं उनके जानने वाली कई महिलाओं ने ऐसी जॉब ले ली जहाँ उन्हें ट्रेवल कम करना पड़े। मैं खुद दोनों चीज़ें मैनेज करती हूँ। इनको मिक्स मत होने दें। जब आप ऑफिस में है तब पूरा ध्यान वहां दे। इसी तरह घर पर हैं तो काम को घर पर मत लाएँ। ऐसे आप जो भी कर रही हैं उसे अच्छे से कर पाएंगी। इसके साथ मैडिटेशन बहुत जरुरी है और इसके साथ-साथ दिमाग को भी शांत रखें।
आने वाले पांच साल में जुंबाया के लिए क्या विज़न है?
हम बच्चों के लिए क्राफ्ट टॉयज बना रहे हैं। इसके साथ वोकेब्लैरी डेवलपमेंट और ऐसी गेम्स जो बच्चों के दिमाग का विकास करें। इसके महिलाओं को भी फायदे हैं जब वो अपना काम कर रही हैं तब ये प्रोडक्ट्स बच्चे को दे सकती हैं इससे बच्चा भी स्क्रीन से दूर रहेगा। इसके साथ फॉरेन और रीजनल भाषाओं में भी कंटेंट आ रहा है। इसके साथ शारदा ने यह भी बताया वह चाहती हैं कि विश्व के सभी बच्चे अच्छे नागरिक बनें और अपने गृह को बचाने के लिए काम करें।