Domestic Violence: अब बस, घरेलू हिंसा के खिलाफ उठती आवाज़ें

घरेलू हिंसा के इश्यूज पर उठती आवाज़ों को समझें, जो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और इस गंभीर समस्या के खिलाफ समाज में बदलाव की ओर इशारा कर रही हैं।

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Sakshi Rai
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Domestic Violence

Photograph: (Canva)

Enough is Enough! : Rising Voices Against Domestic Violence: भारत जैसे देश में, जहां पारंपरिक और सांस्कृतिक धारा ने अक्सर महिलाओं को दबाया है, घरेलू हिंसा एक गंभीर और चुपचाप सहन की जाने वाली समस्या रही है। हालांकि, अब महिलाएं और समाज इसके खिलाफ उठ खड़े हुए हैं। "अब बस!" यह एक घोषणात्मक आवाज़ है, जो घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं और समाज के हर वर्ग से उठ रही है। यह आवाज़ सिर्फ एक शोर नहीं है, बल्कि यह एक बदलाव की प्रतीक है, जो घरेलू हिंसा को समाप्त करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ रहा है।

अब बस! : घरेलू हिंसा के खिलाफ उठती आवाज़ें

घरेलू हिंसा: एक चुप्पी का मुद्दा

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घरेलू हिंसा वह शारीरिक, मानसिक या मानसिक उत्पीड़न है जो किसी व्यक्ति, विशेष रूप से महिलाओं, को उनके घर में ही सहन करना पड़ता है। यह हिंसा न केवल शारीरिक चोटों के रूप में होती है, बल्कि मानसिक उत्पीड़न, भावनात्मक शोषण और आर्थिक दबाव के रूप में भी सामने आती है। महिलाओं को समाज में यह मान्यता दी जाती है कि वे अपने घरों में होने वाली हिंसा को चुपचाप सहन करें। यही कारण है कि यह मुद्दा लंबे समय तक अनदेखा किया गया था।

आवाज़ें उठ रही हैं: बदलाव की शुरुआत

आजकल, महिलाएं अपनी आवाज़ उठाने में संकोच नहीं करतीं। अब वे चुप नहीं रहतीं, वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ी हो रही हैं। यह आवाज़ें न केवल सोशल मीडिया, बल्कि सड़कों, कार्यस्थलों और समुदायों तक भी पहुंच रही हैं। महिलाएं अब अपने साथ होने वाली हिंसा को सार्वजनिक रूप से उजागर कर रही हैं और इसके खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं। कई सामाजिक संगठनों और महिला अधिकार समूहों ने भी इस दिशा में अहम भूमिका निभाई है।

कानूनी कदम और जागरूकता

भारत में घरेलू हिंसा के खिलाफ कई कानूनी प्रावधान हैं, जिनमें ‘घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005’ शामिल है, जो महिलाओं को हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने के लिए बना है। यह कानून महिलाओं को उनके अधिकारों का संरक्षण और घरेलू हिंसा के खिलाफ न्याय दिलाने का प्रयास करता है। इसके अलावा, महिला हेल्पलाइन नंबर और पुलिस की मदद से महिलाएं अब अपनी परेशानियों को बेहतर तरीके से सामने ला सकती हैं। हालांकि, जागरूकता की कमी और कड़े सामाजिक दवाब के कारण बहुत सी महिलाएं इस सहायता को प्राप्त करने में संकोच करती हैं।

समाज की भूमिका और बदलता नजरिया

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समाज का बदलता नजरिया भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। अब धीरे-धीरे यह धारणा बदल रही है कि घरेलू हिंसा एक निजी मामला है। महिलाएं समझने लगी हैं कि यह एक गंभीर अपराध है, और समाज को इस पर खड़ा होकर इसके खिलाफ काम करना चाहिए। पुरुषों को भी इस बदलाव का हिस्सा बनने की आवश्यकता है। यदि समाज के हर वर्ग का समर्थन और सहयोग मिलेगा, तो हम घरेलू हिंसा को समाप्त करने में कामयाब हो सकते हैं।

"अब बस!" यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि एक संदेश है। यह आवाज़ उठाने का समय है। महिलाओं को अब चुप नहीं रहना है, बल्कि अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना है। घरेलू हिंसा को समाप्त करने के लिए हर एक कदम, हर एक आवाज़ मायने रखती है। यह समाज की जिम्मेदारी है कि वे महिलाओं को सही सुरक्षा, समर्थन और न्याय प्रदान करें। अब समय आ गया है कि हम इसे केवल एक मुद्दा न समझकर एक सामाजिक क्रांति के रूप में देखें, जो हर महिला को उसके अधिकार दिलाने के लिए काम करे।

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