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Women laws Photograph: (Freepik)
Laws that state equal pay for equal work: जाने क्या हैं वो कानून जो इक्वल पे की बात करते हैं। ये सिर्फ एक सवाल नहीं, बल्कि समाज में बराबरी की वो हिस्सेदारी है, जो हमेशा से उठती आ रही है। जब हम 'इक्वल पे' यानी समान वेतन की बात करते हैं, तो इसका मतलब है कि महिलाओं और पुरुषों को एक जैसे काम के लिए एक जैसी सैलरी मिलनी चाहिए बिना किसी भेदभाव के। लेकिन क्या असलियत में ऐसा होता है? इसी सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हमें झाँकना पड़ता है उन कानूनी प्रोवीजन में, जो इक्वल पे की गारंटी देते हैं। भारत में भी ऐसे कई कानून बनाए गए हैं जो न सिर्फ इक्वल पे की बात करते हैं, बल्कि उसके उल्लंघन पर सज़ा भी तय करते हैं। तो चलिए देखते हैं इन कानूनों के बारे में।
जाने क्या हैं वो कानून जो इक्वल पे की बात करते हैं
1. इक्वल रिम्यूनरेशन एक्ट 1976
ये एक्ट ये बताता है कि हर एक महिला या पुरुष को एक जैसे काम के लिए एक जैसा पैसा ही मिलेगा। इस एक्ट में ये भी लिखा है कि एंप्लॉयर किसी भी महिला या पुरुष से जेंडर के आधार पर सैलरी, अलावांसेज और कोई भी वर्किंग सिचुएशन में भेदभाव नहीं कर सकते।
2. कांस्टीट्यूशन के दूसरे एक्ट
हमारे संविधान में आर्टिकल 14 में ये बताया गया है कि कोई भी व्यक्ति हो वो कानून के लिए समान है। आर्टिकल 15 में ये बताया गया है कि किसी भी व्यक्ति से लिंग, रंग, क्षेत्र, जाती के आधार पर कोई भेद भाव नहीं किया जाएगा।
3. एंप्लॉयर की जिम्मेदारी
एक जैसे काम या काम के वैल्यू के लिए समान वेतन दें। वर्क प्लेस पर जेंडर बैलेंस और इक्वल ऑपर्च्युनिटी सुनिश्चित करें। रेगुलर चेकिंग और रिकार्ड की जाँच इन बातों की निगरानी करती है।
4. पालन न करने पर सज़ा
कोई भी एंप्लॉयर अगर इसका पालन नहीं करते हैं तो उसे 5,000 रूपए का जुर्माना देना होगा और एक साल तक की सज़ा या दोनों ही। इसके साथ ही कर्मचारी को सैलरी भी देनी पड़ेगी।
5. चैलेंजेस
एक्ट होने के बावजूद भी कई जगहों पर महिलाओं को पुरुषों के कंपैरिजन में कम सैलरी मिलती है एक ही काम के लिए। इसका कारण है हमारा समाज, कानून व्यवस्था का ठेक से काम न करना और समाज में चल रही रूढ़िवादी विचारों का।